18वीं लोकसभा के पहले सत्र का आज दूसरा दिन है. लोकसभा सत्र शुरू होने के बाद पहला बड़ा मुद्दा स्पीकर के चुनाव का है. अभी तक सत्ता पक्ष की ओर से स्पीकर के नाम का ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन कहा जा रहा है कि एनडीए की तरफ से एक बार फिर ओम बिरला का नाम तय किया जा सकता है. इस बार स्पीकर के पद को लेकर इसलिए चर्चा ज्यादा हो रही है, क्योंकि इस बार हर बार की तरह सर्वसम्मति से स्पीकर नहीं चुना गया है और चुनाव के जरिए इसका फैसला किया जाएगा.
लोकसभा स्पीकर के पद को लेकर हो रही राजनीति के बीच जानते हैं कि आखिर ये पद कितना अहम है और स्पीकर का पद मंत्री और सांसदों से कितना ज्यादा पावरफुल है. साथ ही जानते हैं लोकसभा स्पीकर का क्या काम होता है और क्या उन्हें सुविधाएं भी दूसरे सांसदों से अलग मिलती है.
कौन होता है स्पीकर?
लोकसभा स्पीकर मौजूदा सांसदों में से चुने जाते हैं और इनका काम सदन कामकाज का संचालन करना है. लोकसभा स्पीकर सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है. संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है और अध्यक्ष का चुनाव चुनाव सदन शुरू होने के बाद "जितनी जल्दी हो सके" किया जाना चाहिए. हालांकि, इसके चयन के लिए कोई तय सीमा नहीं है.
कैसे होता है चयन?
अध्यक्ष को साधारण बहुमत से चुना जाता है. सांसद अपने में से दो सांसदों को सभापति और उप-सभापति चुनते हैं. अभी तक परपंरा रही है कि सत्ता पक्षा एक सांसद का नाम ऐलान करता है और उस पर सहमति बन जाती है और वो लोकसभा स्पीकर बन जाता है. लेकिन, अब बार वोट के जरिए स्पीकर का चुनाव होना है. ऐसे में जिस उम्मीदवार को उस दिन लोकसभा में मौजूद आधे से ज्यादा सांसद वोट देते हैं, वह लोकसभा अध्यक्ष बनता है.
कितनी पावर होती है?
लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे पर अपनी राय घोषित नहीं करते. साथ ही संसद का अच्छे से संचालन करवाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह तटस्थ रहकर कामकाज चलाएं. लोकसभा स्पीकर वोटिंग की स्थिति में वोट नहीं देते हैं, लेकिन अगर बराबर वोट रहे तो कुछ स्थिति में वे निर्णायक वोट देते हैं.
- अगर उनकी पावर की बात करें तो अगर उन्हें किसी सांसद का व्यवहार सदन के अनुकूल नहीं लगता है तो वो उसे निलंबित कर सकते हैं. साथ ही वो किसी भी सांसद पर सदन के नियमों के हिसाब से दंडात्मक कार्रवाई कर सकते हैं.
- जब भी सदन में कोई बिल पेश होता है तो इस पर स्पीकर ही फैसला लेते हैं कि वो मनी बिल है या नहीं.
- सदन में अविश्वास प्रस्ताव आदि को लेकर भी स्पीकर ही अनुमति देता है.
- साथ ही यह फैसला भी स्पीकर के पास ही होता है कि कौन सांसद कहां बैठेगा. दरअसल वे सीट अरेंजमेंट को लेकर फैसला लेते हैं.
- सदन की जितनी भी समितियां होती हैं, वो अध्यक्ष के हिसाब से कार्य करती हैं. इन सभी समितियों का गठन अध्यक्ष द्वारा अथवा सभा द्वारा किया जाता है.
- साथ ही लोकसभा सचिवालय से जुड़े निर्देश भी लोकसभा स्पीकर की ओर से दिए जाते हैं. अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद भवन में कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता और कोई नया निर्माण भी उनके आदेश के बिना नहीं हो सकता है.
वहीं, उन्हें सांसद के हिसाब से ही सैलरी मिलती है, लेकिन कुछ भत्तों में बदलाव होता है. उन्हें हर सांसद को मिलने वाले भत्तों से ज्यादा भत्ते दिए जाते हैं. साथ ही उन्हें मंत्रियों के हिसाब ट्रैवलिंग अलाउंस, घर, स्टाफ आदि मिलता है.