'किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई...' अपने हिंदी और उर्दू के शब्दों से लोगों पर जादू करने वाली एक मकबूल आवाज शांत हो गई. मशहूर शायर मुनव्वर राना का देर रात कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया. वे कई दिनों से बीमार थे, उनका इलाज लखनऊ के पीजीआई में चल रहा था. 9 जनवरी को तबीयत बिगड़ने पर आईसीयू में भर्ती करवाया और 14 जनवरी को देर रात 71 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
मशहूर शायर होने के साथ-साथ मुनव्वर राना कवि, लेखक और गीतकार भी थे. वे हिंदी और उर्दू दोनों में लिखते थे, उनकी गिनती देश-विदेश के सबसे लोकप्रिय और प्रंशसित कवियों में होती है. भारत के अलावा वे विदेशों के मुशायरा हल्कों में एक प्रमुख नाम रहे.वैसे तो उन्होंने कई ऐसी रचानाएं कीं जिन्होंने सुनने वालों का दिल जीता है लेकिन इनमें सबसे प्रसिद्ध कविता 'मां' है जिसमें उन्होंने गजल शैली का बखूबी इस्तेमाल करके जीवन में मां के गुणों को बताया है.
मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम अनवर राना और उनकी मां का नाम आयशा खातून है. 1947 में भारत विभाजन के समय उनके करीबी रिश्तेदार, दोस्त, चाचा-चाची, दादी पाकिस्तान चले गए थे. लेकिन उनके परिवार ने भारत के प्रति प्रेम की वजह से वहां नहीं गए. मुनव्वर की स्कूलिंग रायबरेली में हुई. इसके बाद उनका परिवार कोलकाता चला गया और ट्रांसपोर्ट का काम किया. यहां मुनव्वर ने उमेशचंद्रा कॉलेज, लालबाजार (कोलकाता) से अपनी बैचलर डिग्री प्राप्त की.
युवा मुनव्वर राना की कविताएं हिंदी, उर्दू और बंगाली तीनों भाषाओं प्रकाशित हैं. उन्हें करीब दो दर्जन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था, इनमें रईस अमरोहवी पुरस्कार, रायबरेली (1993), दिलकुश पुरस्कार (1995), सलीम ज़ाफरी पुरस्कार (1997), सरस्वती समाज पुरस्कार (2004), ग़ालिब अवार्ड, उदयपुर (2005), डॉ. ज़ाकिर हुसैन पुरस्कार, नई दिल्ली (2005), शहूद आलम अफ्कुफी पुरस्कार, कोलकाता (2005), कविता का कबीर सम्मान, इंदौर (2006), मौलाना अब्दुल रज्जाक मलीहाबादी पुरस्कार, पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी (2011), ऋतुराज सम्मान पुरस्कार (2012), साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014), आमिर खुसरो पुरस्कार , इटावा (2006), मौलाना अब्दुल रज्जाक मलीहाबादी पुरस्कार, पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी (2011), ऋतुराज सम्मान पुरस्कार (2012) और साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014) आदि शामिल हैं. हालांकि, असहिष्णुता बढ़ने का आरोप लगाते हुए साल 2015 में उन्होंने इस अवॉर्ड को वापस कर दिया था.