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एक भारतीय राजा, एक शेर और फिर सिंगापुर के नाम रखे जाने की कहानी...

Singapore Name Origin Story: सिंगापुर के नाम और इसके प्रतीक चिह्न से लगता है कि सिंगापुर का कनेक्शन शेरों से होगा, लेकिन सिंगापुर में एक भी शेर नहीं है.

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सिंगापुर का नाम किसी भारतीय राजा ने ही रखा था.
सिंगापुर का नाम किसी भारतीय राजा ने ही रखा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगापुर दौरे की वजह से सिंगापुर की काफी चर्चा हो रही है. सिंगापुर के नाम और इस प्रतीक चिह्न से लगता है कि सिंगापुर का कनेक्शन शेरों से होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. भले ही सिंगापुर को लायन सिटी कहा जाता हो, लेकिन सिंगापुर का शेर से कोई कनेक्शन नहीं है. यहां तक कि सिंगापुर के प्रतीक चिह्न मरलायन में भी शेर ही दिखाई देता है. तो सवाल है कि आखिर दूर-दूर तक शेर ना होने के बाद भी सिंगापुर के नाम में शेर कैसे आया? किसने दिया था दिल्ली से छोटे इस देश को नाम, जो आज पूरी दुनिया में काफी मशहूर है. 

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क्या है सिंगापुर के नाम की कहानी?

अगर सिंगापुर के नाम की बात करें तो यह संस्कृत से लिया गया है और एक शेर की वजह से ही ये नाम रखा गया है. खास बात ये है कि भारत के ही एक राजा ने सिंगापुर को ये नाम दिया था. दरअसल, सिंगापुर का भारत से पुराना कनेक्शन है. बताया जाता है कि ऐतिहासिक मलय दस्तावेजों के हिसाब से कलिंग के राजा शुलन ने दक्षिण भारत के एक राजा चुलन के साथ मिलकर चीन को जीतने का अभियान शुरू किया था.

अपनी इस जंग में वे दोनों मलय राज्य के एक द्वीप तक पहुंचे, जिसे स्थानीय भाषा में टमासेक कहा जाता था.यहां तक जाने के बाद शुलन और उनकी सेना ने आगे का प्लान कैंसिल कर दिया था. ये भी कहा जाता है कि उन्होंने आगे जाने का प्लान इसलिए कैंसिल कर दिया, क्योंकि उन्हें बताया गया कि चीन से काफी दूर है. इसके बाद शुलन वहां ही रहने लगे और टेमासेक में ही एक राजकुमारी से शादी कर ली. 

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लल्लनटॉप की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1299 में राजा शुलन के वंशज राजकुमार संग निला उतामा टमासेक ने द्वीप पर एक शेर देखा. इसी कारण उन्होंने इस द्वीप का नाम सिंहपुर रख दिया और यही नाम आगे जाकर सिंगापुर में तब्दील हो गया. 

क्या है आधे शेर, आधी मछली वाले जीव की कहानी?

जब भी आप सिंगापुर के टूरिस्ट प्लेस पर जाते हैं तो आपको हर जगह मरलायन की तस्वीरें और स्टैच्यू देखने को मिलेगी. मरलायन उसे ही कहा जाता है, जिसका मुंह तो शेर जैसा है और शरीर मछली जैसा है. ये ये जीव कोई असली जीव नहीं है जबकि ये मिथकल क्रिएचर है. यानी ये एक कल्पना मात्र है और सिंगापुर के कल्चर को दिखाने का एक तरीका है. बता दें कि सबसे पहली बार 1964 में सिंगापुर टूरिस्ट प्रमोशन बोर्ड (एसटीपीबी) के कॉर्पोरेट लोगो के लिए इसे बनाया गया था. 
 

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