आज 23 सितंबर है. आज के दिन ही 1965 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अपनी सैन्य कार्रवाई रोक दी थी. युद्ध नहीं रुका होता तो आज लाहौर भारत के कब्जे में होता. बार-बार उकसाने और हमले के परिणाम स्वरूप जब भारत ने जवाब देना शुरू किया, तो पाकिस्तान के हाथ से लाहौर निकलने लगा था. फिर संयुक्त राष्ट्र की पहल पर 23 सितंबर 1965 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोक दिया गया था. अगर ऐसा नहीं हुआ होता, तो आज लाहौर तक भारत की हनक रहती.
वर्ष 1965 में दोनों देशों के बीच भीषण युद्ध हुआ और संयुक्त राष्ट्र की पहल पर 23 सितंबर के दिन ही युद्ध विराम हुआ. यह पहला ऐसा युद्ध था, जब दोनों देशों को बीच हर जगह मोर्चा खुल गया था. वैसे तो यह लड़ाई मुख्य रूप से पैदल सेना और टैंक डिविजन के बीच लड़ी गई. लेकिन, इसमें नौसेना ने भी अपना योगदान दिया और यह पहला मौका था जब दोनों देशों की वायु सेना जंग के मैदान में उतरी थी.
जब भारत ने कर दिया लाहौर पर हमला
भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1965 में हुए युद्ध को कश्मीर के दूसरे युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. यह युद्ध 5 अगस्त 1965 को शुरू हुआ था और 23 सितंबर 1965 को खत्म हो गया. इस युद्ध में दोनों देशों के हजारों लोग मारे गए थे. 6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर लाहौर पर हमला किया था. इस हमले ने युद्ध की दिशा बदल दी और दुनिया का ध्यान इस पर आ गया.
तो आज भारत के पास होता लाहौर
संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम की घोषणा की थी और इसके बाद ताशकंद में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था. इस समझौते में दोनों देशों ने क्षेत्रीय दावों को छोड़ दिया और विवादित इलाके से अपनी सेनाएं वापस ले ली. इस युद्ध में भारत को पाकिस्तान की जमीन लौटानी पड़ी. भारतीय फौज पाकिस्तान के लाहौर के करीब पहुंच चुकी थी. तब जाकर 23 सितंबर 1965 को युद्ध विराम की घोषणा की गई. इस युद्ध में भारत की जीत ने दुनिया में भारत का कद बढ़ाया और उसे नई पहचान दिलाई. अगर दोनों देशों के बीच 23 सितंबर को युद्ध विराम नहीं हुआ रहता और ताशकंद समझौते की शर्तें नहीं मानी गई होतीं, तो आज भारत के पास लाहौर होता.
कैसे शुरू हुआ 1965 का युद्ध
20 मार्च 1965 में पाकिस्तान ने जानबूझ कर कच्छ के रण में झड़पें शुरू कर दी. शुरू में इनमें केवल सीमा सुरक्षा बल ही शामिल थे. बाद में दोनों देशों की सेना भी शामिल हो गयी. फिर 1 जून 1965 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री हैरोल्ड विल्सन ने दोनों पक्षों के बीच लड़ाई रुकवा कर इस विवाद को हल करने के लिए एक निष्पक्ष मध्यस्थ न्यायालय की स्थापना कर दी.
फिर शुरू हुआ ऑपरेशन जिब्राल्टर
कच्छ के रण में मिली सफलता से उत्साहित पाकिस्तान के राजनेताओं खासकर तत्कालीन विदेशमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने राष्ट्र्पति और सेनाध्यक्ष जनरल अयूब खान पर दबाव डाला कि वे कश्मीर पर ऐसा ही हमला करवाएं. भारत उस समय चीन से युद्ध हार चुका था और उनका मानना था कि भारत उस समय युद्ध करने की स्थिति में नहीं था. उनका मानना था कि पाकिस्तान के सैनिकों को घुसपैठियों के वेश में कश्मीर भेजा जाए और कश्मीर के लोगों को विद्रोह के लिए उकसाया जाए. आखिरकार जनरल अयूब खान इस दबाव में आ गये और उन्होंने गुप्त सैनिक अभियान ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू करने का आदेश दे दिया.
कश्मीरियों के भेष में पाकिस्तानी सैनिकों ने किया घुसपैठ
5 अगस्त 1965 को 26000 से 30000 के बीच पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर की स्थानीय आबादी की वेषभूषा में नियंत्रण रेखा को पार कर किया. 1 सितम्बर 1965 को पाकिस्तान ने ग्रैंड स्लैम नामक एक अभियान के तहत अखनूर जम्मू और कश्मीर पर कब्जे के लिये आक्रमण कर दिया. युद्ध के इस चरण में पाकिस्तान मजबूत स्थिति में था. अखनूर के पाकिस्तानी सेना के हाथ में जाने से भारत के लिये कश्मीर घाटी में हार का खतरा पैदा हो सकता था. लेकिन, पाकिस्तान का ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम विफल हो गया.
भारत को मिले 24 घंटे के समय ने पलटी बाजी
ग्रैंड स्लैम के विफल होने की दो वजहें थी. सबसे पहली और बड़ी वजह यह थी कि पाकिस्तान की सैनिक कमान ने जीत के मुहाने में पर अपने सैनिक कमांडर को बदल दिया. ऐसे में पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने में एक दिन की देरी हो गयी. इन 24 घंटों में भारत को अखनूर की रक्षा के लिए अतिरिक्त सैनिक और सामान लाने का मौका मिल गया.एक दिन की देरी के बावजूद भारत के पश्चिमी कमान के सेना प्रमुख यह जानते थे कि पाकिस्तान बहुत बेहतर स्थिति में है. उसको रोकने के लिए उन्होंने यह प्रस्ताव तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी को दिया कि पंजाब सीमा में एक नया मोर्चा खोल कर लाहौर पर हमला कर दिया जाए.
ऐसे लाहौर के पास पहुंच गई भारतीय सेना
जनरल चौधरी इस बात से सहमत नहीं थे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनकी बात अनसुनी कर इस हमले का आदेश दे दिया. 6 सितम्बर को लाहौर पर हमले में भारतीय सेना के प्रथम पैदल सैन्य खन्ड (इनफैंट्री डिविजन) के साथ द्वितीय बख्तरबंद उपखन्ड (ब्रिगेड) के तीन टैंक दस्ते शामिल हुए. वे तुरंत ही सीमा पार करके इच्छोगिल नहर पहुंच गये. इस तरह भारतीय सेना लाहौर की ओर काफी अंदर तक घुस चुकी थी. तब तक पाकिस्तानी सेना ने पुलियों पर रक्षा दस्ते तैनात कर दिये. जिन पुलों को बचाया नहीं जा सकता था उनको उड़ा दिया गया. फिर भी भारतीय फौज आगे बढ़ती रही.
पहली बार यु्द्ध में उतरी थी दोनों देशों की वायुसेना
इस युद्ध में आजादी के बाद पहली बार भारतीय वायु सेना (आईएएफ) और पाकिस्तानी वायु सेना (पीएएफ) के विमानों ने एक दूसरे का मुकाबला किया. इससे पहले इन दोनों वायु-सेनाओं ने 1940 के दशक में प्रथम कश्मीर युद्ध में हिस्सा लिया था. उस समय ये केवल परिवहन तक ही सीमित था.भारतीय वायु सेना के पास बड़ी संख्या में हॉकर हंटर, भारत में निर्मित फॉलैंड नैट, दे हैविलैंड वैंपायर, इ इ कैनबरा बमवर्षक और मिग-21 की एक स्क्वाड्रन थी.पाकिस्तानी वायु सेना के फाडटर प्लेन थे- 102 F-86F सैबर और 12 F-104 स्टारफाइटर, और 24 B-57 कैनबरा बमवर्षक.
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संयुक्त राष्ट्र ने रुकवाया युद्ध
भारत ने 6 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को पार कर पश्चिमी मोर्चे पर हमला कर युद्ध की आधिकारिक शुरुआत कर दी. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने करीब 17 दिन बाद युद्ध विराम की घोषणा कर दी. फिर दोनों ही देशों को रुकना पड़ा. फिर भी भारतीय फौज पाकिस्तान के अंदर एक बड़े हिस्से तक पहुंच चुकी थी. इसके बाद ताशकंद में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ और दोनों को एक दूसरे की जमीनें लौटानी पड़ी.
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अन्य प्रमुख घटनाएं
1739 में रूस और तुर्की ने बेलग्रेड शांति संधि पर हस्ताक्षर किए.
1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने असाये की लड़ाई में मराठा सेना को हराया.
1857 में रूस का जंगी जहाज़ लेफ़ोर्ट, फिनलैंड की खाड़ी में तूफ़ान में घिरकर लापता हो गया था, जिसमें 826 लोगों की मौत हो गई थी.
2009 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारतीय उपग्रह ओशन सैट-2 समेत सात उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया
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