यहां हम उस शख्स की कहानी बता रहे हैं, जो था तो यहूदी, लेकिन खुद को पहले सच्चा भारतीय बताता था. जी हां, यह किस्सा है भारतीय सेना के अफसर लेफ्टिनेंट जनरल जैक फर्ज राफेल जैकब का, जिन्हें जेएफआर जैकब भी कहा जाता था. जैकब ने 2010 में कहा कि मुझे यहूदी होने पर गर्व है, लेकिन मैं पूरी तरह से भारतीय हूं.
जैकब का जन्म कलकत्ता में एक बेहद धार्मिक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था, जो मूल रूप से इराक से था और 19वीं सदी के मध्य में कलकत्ता में आकर बस गया था. उनके पिता एलियास इमैनुएल एक संपन्न व्यवसायी थे.जेएफआर जैकब का जन्म 2 मई 1921 हुआ था और उनका निधन 13 जनवरी 2016 को हुआ.
दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के नरसंहार से सेना में भर्ती होने की मिली प्रेरणा
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोपीय यहूदियों के नरसंहार की रिपोर्टों से प्रेरित होकर जैकब ने 1942 में ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए. जेएफआर जैकब ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. कहा जाता है कि उस वक्त वह भारतीय सेना की पूर्वी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में कार्यरत थे. सेना में अपने 36 साल के लंबे करियर के दौरान, जैकब ने द्वितीय विश्व युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़ाई लड़ी थी.
पूर्वी कमान के सीओएस के रूप में हुई थी तैनाती
1969 में जनरल सैम मानेकशॉ ने जेएफआर जैकब को पूर्वी कमान का चीफ ऑफ स्टाफ (सीओएस) नियुक्त किया. सीओएस के रूप में जैकब के तत्काल वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा थे , जो पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) भी थे. इन्हीं के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को सरेंडर करने पर मजबूर किया था.
पाकिस्तानी सेना के सरेंडर में निभाया अहम रोल
जैकब की जब पूर्वी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में तैनाती हुई तो इसी कमान ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना को हराने में मदद की. मार्च 1971 में, पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को रोकने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया. उस वक्त जैकब समझ गए थे कि एक लंबा युद्ध भारत के हित में नहीं होगा.
16 दिसंबर को, युद्ध में एक खामोशी के दौरान, जैकब की पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी से मिलने ढाका गए थे. इसके बाद नियाजी से बिना शर्त आत्मसमर्पण करवाया गया. ढाका के लोगों के सामने ढाका रेसकोर्स में सार्वजनिक रूप से नियाजी को करीब एक लाख सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण करवाया गया था.