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मां को मजदूरी के नहीं मिले जायज पैसे....बेटे ने IAS बन लिया हिसाब 

राजस्थान के हेमंत पारिक (Hemant Pareek) ने IAS बनकर अपने परिवार का नाम रौशन किया है. उनकी मां मनरेगा में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी, अपनी मां को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने IAS बनने का सोचा.

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IAS Hemant Pareek
IAS Hemant Pareek

कहते हैं न कि सिद्दत से मेहनत करने वाले व्यक्ति को एक दिन सफलता जरूर मिलती है. ये कहानी राजस्थान के एक ऐसे किसान के बेटे की है, जिसकी मां मनरेगा में दिहाड़ी का काम करती थीं और पिताजी एक किसान हैं. बहुत मुश्किल से उनका घर चल पाता था. हेमंत की मां को मजदूरी के 200 रुपये मिलने होते थे, लेकिन कभी 60 तो कभी 80 रुपये मिलते थे. एक दिन मां ने बेटे को अपना यह दर्द बताया. जब हेमंत ने उन लोगों से जवाब मांगा तो उन्होंने पूछा कि तू कहीं का कलेक्टर है क्या? हेमंत ने उस दिन के पहले कलेक्टर शब्द भी नहीं सुना था. हेमंत का इरादा ग्रेजुएशन के बाद नौकरी कर घर की जिम्मेदारी उठाने की थी, लेकिन अपनी मां को उनका हल दिलाने के लिए उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना का सपना देखा और उसे पूरा भी किया. तो चलिए जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी....

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IAS Hemant Pareek

साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं हेमंत 
मेरा नाम हेमंत है, मेरा जन्म गांव वीरान तहसील भादरा जिला हनुमानगढ़ राजस्थान में एक मजदूर परिवार में हुआ है. मेरी माता जी मनरेगा में दिहाड़ी करती थीं और मेरे पिताजी थोड़ा बहुत कर्मकांड का कार्य करते हैं. मैंने अपनी 10th तक की पढ़ाई महर्षि दयानंद स्कूल से हिंदी माध्यम से की है, वहां पर केवल एक टीचर थे. मुझे दसवीं कक्षा में 60% मार्क्स मिले. उसके बाद 12th मैंने आर्य समाज स्कूल छानी बड़ी से एग्रीकल्चर में हिंदी माध्यम से की है और मुझे 70% मार्क्स मिले. 
इसके बाद मैंने JET की परीक्षा दी और उसमें मैं फेल हो गया. फिर, मैंने अगले साल फिर से JET की परीक्षा दी और और पास हुआ. लेकिन मेरे पास शुरुआती फीस के पैसे नहीं थे, इसलिए मुझे वह सीट छोड़ना पड़ा. फिर मुझे किसी ने कहा कि JBT का डिप्लोमा कर कर टीचर की नौकरी कर लो और मैंने JBT में एडमिशन ले लिया. लेकिन फर्स्ट ईयर में मैं इंग्लिश में फेल हो गया.

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English में fail होकर भी इंग्लिश मीडियम से की पढ़ाई
फिर अगले साल फिर मुझे मेरे दोस्त ने कहा कि तुम ICAR का फॉर्म भर दो, क्या पता तुम्हारा सिलेक्शन हो जाए और साथ में JBT 2nd year की परीक्षा दे देना. फिर आईसीएआर की परीक्षा हुई और मेरा एग्जाम अच्छा नहीं हुआ, फिर भगवान ने साथ दिया और परीक्षा रद्द कर दी गई. उसके बाद परीक्षा का पुनः आयोजन 3 महीने बाद किया गया. इसी दौरान मुझे जो इंग्लिश में फेल किया गया था,  उस पर मैंने विचार किया और घरवालों से टीचर की तैयारी के नाम पर नाम पर झूठ बोलकर पैसे मांगे और इंग्लिश सीखनी शुरू कर दी और तीन से चार महीने में इंग्लिश को अच्छा कर लिया. इसके बाद ICAR की परीक्षा पुनः आयोजित की गई और भगवान की कृपा से मुझे श्री करण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर जयपुर में दाखिला मिल गया. वहां से मैं अपना ग्रेजुएशन एग्रीकल्चर में शुरू किया. यहां से मैंने अपना माध्यम हिंदी से इंग्लिश कर लिया. 

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न्याय मांगने पर मिले ताने
यहीं से एक किस्सा शुरू होता है......एक दिम मैं घर पर था और मेरी माता जी मेरे गले लगा कर रोने लगी, जब मैंने पूछा कि क्या हुआ मां रो क्यों रही हो, तो उन्होंने कहा कि बेटा पीछे से सरकार हमें 220 रुपए देती है और यहां पर हम दिन भर मजदूरी करते हैं और हमें 50-60 रुपए मिलते हैं और इस बार तो मैं अपनी ड्यूटी पानी के लिए लगवाई थी जिससे मुझे ₹20 ज्यादा मिलने थे लेकिन अब भी मुझे 60-70 RS मिले हैं,  तो मुझे यह बात बुरी लगी और मैं कार्यालय पहुंच गया. वहां पर कुछ देर तो वहां के मैनेजर ने मुझे समझाया कि यह करना पड़ता है क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है. इस तरह से फिर जब मैंने उनसे कहा कि एक बार आप मुझे रिकॉर्ड दिखा दीजिए. तभी उनमें से एक ने कहा कि ज्यादा कलेक्टर मत बन.... उस समय मुझे ये भी पता नहीं थी कि कलेक्टर और कंडक्टर में क्या फर्क होता है. वहां से फिर मैं मायूस होकर घर लौट आया. उसके बाद मैं एक दिन कॉलेज गया तो वहां पर उस दिन रैगिंग चल रही थी, सीनियर सभी से पूछ रहे थे कि किसको क्या बनना है, लाइफ में क्या करना है?

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लोगों ने IAS का सपना सुनकर उड़ाया मजाक
मेरे क्लास में कोई कह रहा था कि मैं एग्रीकल्चर सुपरवाइजर की तैयारी करूंगा, कोई बोला प्राइवेट कंपनी जॉइन करूंगा.तभी जब  मेरी बारी आई तब मुझसे उन्होंने पुछा की आपको लाइफ में क्या बनना है तो मैंने कहा- मुझे कुछ आईडिया नहीं था कि मुझे क्या बनना है. तब मैंने सर से कहा कि मुझे पता नहीं है कि आगे कहां जा सकते हैं तो आप मेरा मार्गदर्शन कर दीजिए. तभी उन्होंने टॉन्ट मारा और कहा IAS बन जाएगा और मैंने कहा हां सर मैं बन जाऊंगा.  मुझे बता दीजिए इसके कितने एग्जाम होते हैं और क्या पढ़ना पड़ता है.  उसके बाद वहां पर मौजूद सभी सीनियर और मेरे क्लासमेट मुझ पर हंसने लग गये. फिर मैं रूम पर आया और अपने भैया को फोन कर पूछा कि भाई यह IAS क्या होता है, मुझे IAS बनना है.  

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मेरे भाई ने समझाया कि कोई और नौकरी की तैयारी कर लो, पर मैंने कहा कि नहीं मुझे IAS ही बनना है. तब फिर उन्होंने मुझे कुछ यूट्यूब चैनल के लिंक भेजें.  मैंने यूट्यूब पर सर्च किया फिर पता लगा कि IAS से कलेक्टर बनते हैं और फिर  उनकी बात याद आ गई., जब मैं माता जी के लिए न्याय मांगने गया था और उन्होंने ताना दिया था कि तू ज्यादा कलेक्टर मत बन. फिर, उसी दिन मैंने ठान लिया की एक दिन में कलेक्टर ही बनूंगा.उस दिन के बाद में UPSC-IAS की तैयारी में लग गया और फिर मुझे समय-समय पर बहुत अच्छा मार्गदर्शन मिलता रहा. कॉलेज में शुरुआती दिनों में शिक्षकों और अन्य दोस्तो का पूरा सहयोग मिला.

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JET पास करने के बाद एडमिIAS Hemant Pareekशन के नहीं थे पैसे 
उस समय मेरी माता जी मनरेगा में काम करती थी तो आर्थिक समस्या जो है उसने सबसे ज्यादा परेशान किया है. मुझे आज भी वह दिन याद है जब JET का एग्जाम पास होने के बावजूद मुझे सीट छोड़ना पड़ा क्योंकि मेरे पास एडमिशन फीस के पैसे नहीं थे. उसके बाद 4 साल तक जयपुर कॉलेज में सर्वाइव करना सबसे बड़ा चैलेंज था क्योंकि आर्थिक रूप से मैं समृद्ध नहीं था और मेरी स्कॉलरशिप भी नहीं आ रही थी.

IAS Hemant Pareek

मुझे आज भी याद है कि जब 1st year के 2nd सेमेस्टर में कॉलेज छोड़ने पर मजबूर हो गया था, तभी मुझे कुछ लोगों ने सहायता प्रदान की और मेरी 2 वर्ष की फीस उन्होंने भर दी. उसके बाद 3rd year ओर 4th year में मेरे सीनियर ओर दोस्तों ने फीस भर दी. अब जो मुझे दिक्कत आई वह यह थी कि कॉलेज की पढ़ाई के बाद घर जाऊं या कोई 10000- 15000 की नौकरी करूं या दिल्ली अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तैयारी करूं. तब मैंने अपने सारे इकट्ठे किए हुए पैसे देखें तो मेरे पास 1400 रुपए थे. फिर, मैंने अपने पापा को फोन किया और कहा पापा मुझे IAS बनना है और उन्हें इसका पता भी नहीं था कि यह क्या होता है.

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दोस्तों और परिवार ने दिया साथ
पिता जी ने कहा बेटा तुझे जो बनना है....बन जा. फिर,  मैंने कहा पापा इसके लिए लाखों रुपए फीस लगती है और दिल्ली में रहना पड़ता है. तभी उन्होंने कहा कि बेटा हमारे पास घर है, हम इसको बेच देंगे. लेकिन तू दिल्ली जा और मन लगाकर पढ़ाई कर. तभी मैंने मन में सोचा घर तो नहीं बिकने दूंगा. फिर मैं अपने ₹1400 लेकर जयपुर से दिल्ली की बस में रवाना हो गया और दिल्ली में रह रहे एक मित्र जोगेंद्र सियाग से फोन कर मदद मांगी. उनको बताया कि मैं दिल्ली आ रहा हूं कुछ समय के लिए आपके पास रुकना है .उन्होंने कहा कि आपको  जितना समय रुकना है आप रुकिए और अच्छे से मन लगाकर पढ़ाई कीजिए. फिर मैंने NISHANT SINGH (LEVEL UP IAS ) से मुलाकात की और मैंने उनको अपनी स्थिति बताई और कहा कि मुझे सोशियोलॉजी की पढ़ाई करनी है और अभी मेरे पास फीस के पैसे नहीं है.  मैं परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद आपकी फीस लौटा दूंगा और उन्होंने मुझ पर भरोसा किया और मुझे बिना फीस के क्लास में एडमिशन दे दिया. 

उसके बाद मैं प्रारंभिक परीक्षा में पास हो गया और मेरा नाम लिस्ट में था. इसके बाद मैंने  मुख्य परीक्षा की तैयारी की और तीन महीने बाद मेरा रिजल्ट आ गया. उसके बाद फिर इंटरव्यू की तैयारी में मैं लग गया. जब 6 फरवरी को मेरा इंटरव्यू हुआ और जब 16 फरवरी को फाइनल रिजल्ट निकाला तो उस लिस्ट में मेरा नाम 884 में नंबर पर था. लगातार मेहनत के बाद 2023 यूपीएससी में दूसरे अटेंप्ट में ऑल इंडिया 884 रैंक हासिल किया. इसी के साथ अंत में मैं कहना चाहता हूं कि कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता बस बड़ा होना चाहिए तो उसे पाने के लिए हौसला बड़ा होना चाहिए जज्बा होना चाहिए जुनून होना चाहिए. 

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