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इस स्कूल मास्टर से थर्राते थे अंग्रेज, फांसी से पहले उखाड़े नाखून-तोड़े दांत, पढ़ें स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन की कहानी

Surya Sen: सूर्य सेन 'मास्टर दा' ने 63 युवा क्रांतिकारी की एक फौज खड़ी की और 18 अप्रैल, 1930 को चटगांव ब्रिटिश आर्मरी पर हमला किया था. इस घटना के करीब चार साल बाद 12 जनवरी, 1934 को 40 के सूर्य सेन बेरहम यातनाओं के बाद फांसी दी गई थी.

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Surya Sen Death Anniversary
Surya Sen Death Anniversary

Surya Sen Death Anniversary: भारत की आजादी के लिए अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून बहाया है जिनमें से एक सूर्य सेन भी थे. जिन्होंने मरते दम तक न सिर्फ ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि कई बार गहरी चोट भी दी. इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने एक स्कूल टीचर और महान क्रांतिकारी सूर्य सेन को असहनीय यातनाएं दी थीं. आखिरी वक्त में वंदेमातरम का उदघोष न कर सके इसलिए दांत तोड़ दिए थे.

सूर्य सेन का जन्म 22 मार्च 1894 को हुआ था और उन्हें 12 जनवरी, 1934 को फांसी दी गई थी. सूर्य सेन को प्यार से 'मास्टर दा' के नाम से जाना जाता था. उन्हें 1930 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चटगांव शस्त्रागार पर हमला करने के लिए जाना जाता है. सूर्य सेन चटगांव के नाओपोरा (अब बांग्लादेश) में एक स्कूल टीचर थे. उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा चटगांव में ही हुई थी. उनके पिता रामनिरंजन भी चटगांव के नोओपारा में एक टीचर थे. सूर्य सेन ने 22 साल की उम्र में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की और बहरामपुर कॉलेज में बीए कोर्स में एडमिशन लिया था.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सूर्य सेन का उदय
अपने शिक्षक से प्रेरित होकर, सूर्य सेन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए, जो शरत चंद्र बसु के नेतृत्व में एक क्रांतिकारी संगठन था. शरत चंद्र बसु, भारत में ब्रिटिश राज को खत्म करने के लिए हिंसा की विचारधारा को सही मानते थे. सूर्य सेन ने बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने वाले एक अन्य क्रांतिकारी चित्तरंजन दास के साथ भी काम किया. बहरामपुर में ही वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन युगांतर से जुड़े. 1918 में चंटगांव वापस आकर उन्होंने स्थानीय युवाओं को अपने साथ मिलाया और युगांतर पार्टी की स्थापना की.

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अंग्रेजों के शस्त्रागार को लूटा
धन और हथियारों की कमी को दूर करने के लिए सूर्य सेन ने गणेश घोष, लोकनाथ बाल, अनंत सिंह जैसे युवा क्रांतिकारियों का एक ग्रुप बनाया. उन्होंने चटगांव में दो प्रमुख ब्रिटिश शस्त्रागारों पर कब्जा करने और अन्य क्रांतिकारियों को हथियार देने की योजना बनाई. 18 अप्रैल, 1930 की आधी रात को चटगांव शस्त्रागार पर हमला किया गया जिसका नेतृत्व खुद सूर्य सेन कर रहे थे. गणेश घोष के नेतृत्व में छह समूहों में से एक ने पुलिस शस्त्रागार को निकाल लिया, जबकि लोकनाथ पॉल के नेतृत्व में 10 सदस्यों में से अन्य ने सहायक बल आर्मरी पर कब्जा कर लिया, जिसमें लुईस बंदूकें और 303 सेना राइफलें थीं. शहर को अलग-थलग करने के लिए अंग्रेजों के टेलीफोन और टेलीग्राफ सिस्टम खत्म कर दिए. कई रेल मार्गों को ब्लॉक कर दिया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूर्य सेन के नेतृत्व में 1930 से 1932 तक 22 ब्रिटिश अधिकारियों और 200 से ज्यादा सहायकों की हत्याएं की गई थीं जिसने ब्रिटिश सरकार को झकझोर दिया था.

साथी का विश्वासघात
सूर्य सेन, ब्रिटिश सरकार के लिए बड़ा खतरा बन गए थे. इसलिए अंग्रेज शासकों ने उन्हें पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की, कई पैतरें अपनाएं. वे बचते-बचाते भारत की आजादी का जज्बा लिए आगे बढ़ते रहे लेकिन एक दिन ऐसा आया जब अपनों के विश्वासघात ने उन्हें जेल पहुंचा दिया. सूर्य सेन के एक साथी नेत्र सेन ने ब्रिटिश सरकार को सूचित किया कि जिस क्रांतिकारी की उन्हें तलाश है वह उसके घर में छिपा हुआ है. सूर्य सेन को 16 फरवरी, 1933 को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि इस घटना के बाद नेत्र सेन के इस विश्वासघात के लिए उसका सिर कलम कर दिया गया था.

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जेल में सूर्य सेन को दीं बेरहम यातनाएं
जल्द ही, सेन के साथी क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कई साल जेल की सजा सुनाई गई. 12 जनवरी, 1934 को फांसी दिए जाने से पहले, अंग्रेजों ने बेरहमी की सारी हदें पार कर दी थीं. रिपोर्ट्स की मानें तो फांसी से पहले सूर्य सेन की हड्डियां, अंग और जोड़ हथौड़े से चकनाचूर कर दिए गए थे, उनके सारे नाखून खींच लिए गए और अपने आखिरी वक्त में वंदेमातरम का उदघोष न कर सके इसलिए उनके दांत तोड़ दिए गए थे.

 

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