पश्चिम बंगाल में हुए ट्रेन एक्सीडेंट के बाद अब ट्रैक बिछाने का काम जारी है. ट्रेन हादसे के बाद अब चर्चा इस बात पर है कि पूरे मामले में आखिर गलती किसकी है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि लोको पायलट की लापरवाही से ये हादसा हुआ है.माना जा रहा है कि लोकोपायलट ने सिग्नल को फॉलो नहीं किया, जिस वजह से ऐसा हुआ है. लोकोपायलट को इस स्थिति में क्या करना चाहिए था या क्या नहीं करना चाहिए था... जैसे सवालों के बीच जानते हैं कि आखिर लोकोपायलट का क्या काम होता है?
क्या काम करता है लोको पायलट?
लोकोपायलट का काम ट्रेन चलाने का होता है, लेकिन उसका हर एक्शन कंट्रोल रुम से मिल रहे सिग्नल पर आधारित होता है. दरअसल, लोको पायलट, ट्रेन मैनेजर, कंट्रोल रुम आपस में कॉर्डिनेशनल बनाकर काम करते हैं. ट्रेन मैनेजर ट्रेन के सबसे आखिरी सेक्शन में बैठा होता है, जिसे आम भाषा में गार्ड रुम भी कहते हैं. लोकोपायलट रहे एक रेलवे कर्मचारी ने आजतक को बताया कि लोको पायलट का काम सिग्नल के हिसाब से ट्रेन को कंट्रोल करना होता है.
जब भी लोको पायलट ट्रेन लेकर आगे बढ़ते हैं तो उन्हें एक Caution Order दिया जाता है, जिसमें यह लिखा होता है कि उन्हें कहां से कहां तक ट्रेन को किस स्पीड से चलाना है. ये स्लॉट खंभों के हिसाब से बंटे होते हैं और एक खंभे से दूसरे खंभे के बीच की स्पीड लिमिट लिखी होती है और खंबे पर लिखे नंबर के आधार पर ट्रेन की स्पीड को कंट्रोल किया जाता है. इसलिए लोको पायलट का अहम काम ट्रेन की स्पीड को बरकरार रखना होता है, जो पहले से तय होता है.
इसके अलावा वो ट्रेन मैनेजर के दिशा-निर्देश को ट्रेन को आगे बढ़ाता है, इसमें ट्रेन को मोड़ने या रूट निर्धारण का काम कंट्रोल रुम का होता है. वहीं बात करें ब्रेक की तो लोकोपायलट के पास तीन ब्रेक होते हैं, जिसमें ट्रेन ब्रेक, लोको ब्रेक और इमरजेंसी ब्रेक होता है. इमरजेंसी ब्रेक असिस्टेंट लोको पायलट के पास होता है, वो किसी इमरजेंसी में अप्लाई किए जाते हैं. इसकी जानकारी भी आगे से मिलती है और कभी कोई ट्रेक पर कुछ ओब्जेक्ट आ जाए तो लोकोपायलट इसका इस्तेमाल करते हैं.
ऐसे में लोकोपायलट सिर्फ दिशा निर्देशों का ही पालन करता है और अपने हिसाब से ट्रेन को रोकने या चलाने का फैसला नहीं ले सकता. लेकिन लोको पायलट के पास ट्रेन को रोकने या चलाने को लेकर काफी अधिकार होता है.