पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और बुशरा बीबी का निकाह अचानक चर्चा का मुद्दा बन गया है. इसकी वजह है इद्दत का वक्त पूरा न होना. इमरान खान और बुशरा बीबी के निकाह करवाने वाले काज़ी मौलवी मुफ्ती सईद का कहना है कि ये शादी इस्लामिक शरिया कानून के मुताबिक नहीं हुई थी.
मौलवी मुफ्ती सईद का कहना है कि 2018 में ये निकाह बुशरा बीबी की इद्दत के दौरान हुआ था, जो जायज़ नहीं है. इस बात को समझने के लिए पहले ये जानना होगा कि इस्लाम के मुताबिक इद्दत क्या है और क्यों इमरान खान और बुशरा बीबी के निकाह को गैर-इस्लामिक बताया जा रहा है?
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में डिपार्टमेंट ऑफ इस्लामिक स्टडी के प्रोफेसर, जुनैद हारिस ने इस मामले पर खास बातचीत में विस्तार से बताया कि इद्दत क्या है?
क्या है इद्दत?
इस्लाम में शरियत के मुताबिक, किसी मुस्लिम महिला के शौहर का इंतेक़ाल यानी मृत्यु के बाद कुछ वक्त के लिए दूसरी शादी करने पर पाबंदी होती है, यही इद्दत है. इद्दत के वक्त यानी एक तय समय के लिए महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती. इस तय किए गए वक्त को ही इद्दत का वक्त कहा जाता है. ये वक्त 4 महीने 10 दिन का होता है. इस दौरान महिला पर गैर मर्दों से पर्दा भी जरूरी होता है.
प्रोफेसर जुनैद हारिस के मुताबिक, लोगों में एक आम धारणा में तलाक के बाद कुछ वक्त तक शादी पर रोक को भी इद्दत का वक्त कहा जाता है. हालांकि, इसके लिए सही लफ्ज़ क़ुरू, यानी क़ुरू का वक्त है.
इद्दत क्यों जरूरी?
इद्दत का वक्त इस संदेश को मिटाने के लिए तय किया गया है कि महिला प्रेग्नेंट तो नहीं है. क्योंकि इद्दत का वक्त पूरा न हो और फिर प्रेग्नेंसी का पता चले तो उस बच्चे पर सवाल उठ सकते हैं. बच्चे पर सवाल न उठें, इसलिए भी इद्दत का वक्त तय किया गया है. अगर महिला प्रेग्नेंट है तो वो बच्चे के जन्म तक दूसरी शादी नहीं कर सकती.
किसलिए जरूरी इद्दत?
प्रेग्नेंसी पर संदेह के साथ इद्दत का वक्त महिला का भावनात्मक रूप से संभलने के लिए भी जरूरी है. जब शौहर का मृत्यु हो जाती है, तो महिला के लिए ये वक्त भावनात्मक रूप से मुश्किल होता है और ऐसी स्थिति में दूसरे शौहर से रिश्ते बनाना किसी भी महिला के लिए मुश्किल हो सकता है. महिला को शौहर के जाने के ग़म से उभारने के लिए भी कुछ वक्त दिया गया है, जो इद्दत का वक्त है.
इद्दत के वक्त किस-किस से पर्दा
इद्दत के दौरान महिला को किसी ना-महरम से मिलने की इजाजत नहीं होती, वो सिर्फ महरम से मिल सकती है या बात कर सकती है. ना-महरम हर वो शख्स होता है, जिससे इस्लाम के मुताबिक, महिला की शादी हो सकती है. बता दें कि इस्लाम में महिला के लिए उसका पिता और उसका भाई महरम है. अन्य सभी मर्द ना-महरम हैं.
इद्दत के वक्त के दौरान क्या पाबंदियां
इद्दत के दौरान मेकअप या किसी अन्य तरीके से खुद को संवारने पर पाबंदी है. इस दौरान चमकीले कपड़े पहनने पर मनाही है. इद्दत के वक्त के दौरान महिला को सादे लिबास में रहना चाहिए. इद्दत की अवधि पूरी होने तक घर से बाहर निकलने पर पाबंदी रहती है. जब तक कि कोई आपात स्थिति न हो. कुछ लोग चांद या शीशा देखने पर पाबंदी की बात कहते है, जबकि ऐसी कोई पाबंदी नहीं है.
इद्दत के दौरान महिला को ये छूट
इद्दत के दौरान महिला को पति का घर छोड़ने की इजाज़त नहीं होती लेकिन अगर वो अकेली कमाने वाली हो और उसके पास अपनी आजीविका चलाने के लिए आय का कोई अन्य स्रोत न हो तो उसे घर से बाहर जाने की इजाजत है लेकिन उसे केवल दिन के समय काम करने की इजाजत है और रात होने से पहले उसे घर लौट जाना चाहिए. उसे खुद को एक कमरे में कैद रखने या चुप रहने की जरूरत नहीं है, वो घर का काम कर सकती है या खुद को नेक कामों में लगा सकती है या अल्लाह की इबादत कर सकती है.
पति की मृत्यु या इद्दत के वक्त प्रेग्नेंसी पता चलने पर
पति की मृत्यु के वक्त अगर महिला प्रेगनेंट है तो इद्दत का वक्त तब तक चलेगा, जब तक महिला बच्चे को जन्म नहीं दे देती. यानी महिला की दूसरी शादी बच्चे की पैदाइश के बाद ही मुमकिन है. इद्दत का वक्त पूरा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि प्रेग्नेंसी पर किसी तरह का संदेह न रह पाए. 4 महीने से ज्यादा के वक्त में संदेश की गुंजाइश खत्म हो जाती है.
पति की मृत्यु के बाद महिला की जिम्मेदारी
पति की म़त्यु के बाद उसकी जायदाद पर महिला का हक़ होता है. इद्दत के बाद अगर महिला दूसरी शादी करती है तो भी पहले पति के हिस्से पर महिला का हक़ रहेगा. वहीं, अगर पति की मृत्यु के दौरान पत्नी प्रेग्नेंट है और इद्दत की अवधि के दौरान डिलीवरी हो जाती है यानी बच्चे को जन्म दे देती है तो इसके साथ ही इद्दत पूरी हो जाएगी.
क़ुरू क्या है?
अगर शौहर और बीवी के बीच तलाक या ख़ुला हो जाता है, तो तय समय तक महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती. ये तय वक्त महिला की तीन पीरियड साइकिल का है. यानी महिला माहवारी की तीन साइकिल के बाद ही दूसरी शादी कर सकती है. ये आमतौर पर 3 महीने का वक्त होता है.
कुरू की वजह
तलाक होने पर तीन पीरियड साइकिल का वक्त इसलिए तय किया गया है, ताकि इस वक्त में ये तय हो सके कि महिला प्रेगनेंट तो नहीं है. कई बार एक महीने ये प्रेग्नेंसी क्लियर नहीं होती इसलिए संदेह की स्थिति खत्म करने के लिए तीन पीरियड साइकिल का वक्त तय किया गया है. इसकी वजह ये भी है कि क़ुरू का वक्त ना गुजारा जाए तो और तलाक के बाद प्रेग्नेंसी की पता चले तो दोनों ही शौहर उस बच्चे की जिम्मेदारी लेने से पीछे हट सकते हैं. इसके साथ ही ये वक्त इसलिए भी दिया गया है कि अगर महिला तलाक नहीं चाहती तो इस वक्त में दोनों साथ रहकर तलाक का इरादा बदल सकें.
इस दौरान बच्चा होने पर..
कुरू के वक्त अगर महिला प्रेग्नेंट है तो इन दोनों के बीच तब तक तलाक नहीं होता जब तक बच्चा पैदा न हो जाए. बच्चा पैदा होने के बाद ही दूसरी शादी की जा सकती है और इस बच्चे की जिम्मेदारी शौहर पर होगी.
कुरू के वक्त में महिला की जिम्मेदारी किस पर?
इस वक्त में महिला की जिम्मेदारी उसके शौहर पर होती है. इस दौरान दोनों को साथ रहना होता है और बीवी की सारी जिम्मेदारी शौहर पर लाज़िम है. हालांकि क़ुरू के वक्त के बाद दोनों पूरी तरह अलग हो जाते हैं.