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क्या पॉसिबल है एक दिन में 14 घंटे काम करना? क्यों अधिकतर जगह होती है 8-9 घंटे की शिफ्ट?

पुराने जमाने में इंसानों के कामकाज का तरीका काफी अलग था, लेकिन आधुनिक नौकरियों ने इंसानों की रोजमर्रा की लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव किया है. आजकल कई बिजी वर्किंग आवर वाली नौकरियों में लोग 14-15 घंटे तक दफ्तर में बिताते हैं.

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Image Source-Pexel.com
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इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक साल पहले ही युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी. अब कर्नाटक में आईटी कंपनियों ने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ाकर 14 घंटे करने की मांग की गई है.

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इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, राज्य सरकार 'कर्नाटक शॉप्स एंड कमर्शियल इस्टैबलिशमेंट एक्ट, 1961' में संशोधन पर विचार कर रही है. आईटी कंपनियां चाहती हैं कि काम के घंटे कानूनी तौर पर 12 घंटे + 2 घंटे ओवरटाइम के साथ 14 घंटे हो जाए.

इस खबर के बाद कर्नाटक राज्य आईटी/आईटीईएस कर्मचारी संघ (केआईटीयू) ने कड़ा विरोध जताया है. सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है कि क्या 8-9 घंटे की शिफ्ट के बाद युवा 14 घंटे का लोड उठा पाएंगे. क्या भारत में वर्क-लाइफ बैलेंस सच में मौजूद है, या एआई के दौर में काम के घंटों पर सवाल उठाना गैरवाजिब है? 

इंसान पहले भी 14 घंटे से ज्यादा की शिफ्ट करते थे

1760 और 1840 के बीच औद्योगिक क्रांति के दौरान, श्रमिकों को दिन में 16 घंटे तक काम करना पड़ता था. उन्हें बेहद कठिन और लंबे समय तक काम करना पड़ता था, जिससे उनकी उत्पादकता और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता था. ब्रिटिश मानवाधिकार कार्यकर्ता रॉबर्ट ओवेन ने "8 घंटे काम, 8 घंटे मनोरंजन, 8 घंटे आराम" का नारा देकर परिवर्तन की पहल की.

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फोर्ड मोटर कंपनी का बड़ा कदम

1914 में, फोर्ड मोटर कंपनी ने 8-घंटे के कार्यदिवस को अपनाया. अपने कर्मचारियों के वेतन को दोगुना कर दिया. इसका नतीजा ये सामने आया की लेबर की प्रोडेक्टिविटी और कंपनी के मुनाफे में बढ़ौतरी हुई. इस सफलता ने अन्य कंपनियों को भी इसी रणनीति को अपनाने के लिए प्रेरित किया. कहा जाता है यहां से 8 या 9 घंटे की शिफ्ट का कल्चर शुरू हुआ. 

काम के घंटे कम करने में आधुनिक तकनीक का भी योगदान 

पुराने जमाने में इंसानों के कामकाज का तरीका काफी अलग था, लेकिन आधुनिक नौकरियों ने इंसानों की रोजमर्रा की लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव किया है. आजकल कई बिजी वर्किंग आवर वाली नौकरियों में लोग 14-15 घंटे तक दफ्तर में बिताते हैं.

डेटा के मुताबिक, 19वीं शताब्दी तक इंसानों के लिए तय वर्किंग आवर नहीं होते थे. लेकिन समय के साथ काम के घंटे घटते गए, खासकर अमीर देशों में. अब रोज 6 घंटे और हफ्ते में 4 दिन काम करने का रुझान बढ़ रहा है.

1870 में अमेरिका में सालाना वर्किंग आवर 3000 घंटे तक था, जो हर हफ्ते 60 से 70 घंटे होता था. आज यह घटकर 1700 घंटे रह गया है, जो 5-डे वीकली सिस्टम से रोजाना औसतन 7 से 8 घंटे है.

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इकॉनामिक्स हिस्टोरियन माइकल ह्यूबरमैन और क्रिंस मिन्स की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, 1870 की तुलना में आज जर्मनी में वर्किंग आवर 60% तक घटा है. ब्रिटेन में यह 40% तक घटा है.

लेबर लॉ ने भी डाला असर

लेबर लॉ में हुए बदलावों के पहले लोग जनवरी से जुलाई तक ही इतने घंटे काम कर लेते थे, जितने आज पूरे साल में करते हैं. ज्यादा औद्योगिकरण वाले देशों में लेबर लॉ में बड़े बदलाव हुए हैं, जिससे वर्किंग आवर घटे हैं.गरीब देशों में अब भी बदलाव की गति धीमी है.

कर्मचारियों के लिए छुट्टियों में भी वृद्धि हुई है, जिससे उनकी लाइफस्टाइल में सुधार आया है. ये बिंदु बताते हैं कि कैसे आधुनिक नौकरियों और लेबर लॉ में हुए बदलावों ने इंसानों की कामकाजी जीवनशैली को प्रभावित किया है.

क्या पॉसिबल है एक दिन में 14 घंटे काम करना?

Indeed ने एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया, जो कोरोना काल के दौरान हुआ जब अधिकांश कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे. इस अध्ययन में पाया गया कि ऑफिस की तुलना में घर से काम करने के घंटे अधिक होते हैं.

Indeed के सर्वेक्षण के अनुसार, 9 घंटे से ज्यादा काम करने वाले 52% कर्मचारियों को बर्नआउट का अनुभव होता है.अत्यधिक काम करने से स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे नींद की कमी, स्ट्रोक, हृदय रोग का बढ़ता जोखिम, और अवसाद.

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CNBC की रिपोर्ट के अनुसार, 50% कर्मचारी कम कर्मचारियों वाली कंपनियों में काम कर रहे हैं, जहां उच्च प्रदर्शन बनाए रखने के दबाव के कारण उन्हें अतिरिक्त घंटे काम करना पड़ता है. इसके चलते कर्मचारियों को न केवल अपने कार्य बल्कि अन्य टीम सदस्यों के कार्य भी पूरे करने के लिए अधिक समय देना पड़ता है. ऐसे में हर रोज ज्यादा काम से कई तरह की मुश्किलें भी हो सकती हैं.

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