scorecardresearch
 

'मैंने दरवाजा खोल दिया है', कहानी जस्टिस फातिमा बीवी की, जो बनीं सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जस्टिस

फातिमा बीवी भारतीय इतिहास में एक बड़ा नाम हैं. एक ऐसा नाम जिससे ज्यूड‍िशरी से जुड़ा तकरीबन हर शख्स परिचित है. वो भारत की सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थीं. वो उच्च न्यायपालिका में पहली मुस्लिम महिला और एशियाई देशों में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली भी पहली महिला थीं.

Advertisement
X
जस्ट‍िस फातिमा बीवी (Credit: India Today Archive)
जस्ट‍िस फातिमा बीवी (Credit: India Today Archive)

फातिमा बीवी एक ऐसा नाम हैं जो न सिर्फ ज्यूड‍िशरी बल्क‍ि देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंक‍ित हैं. वो भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थीं. फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 को त्रावणकोर (वर्तमान में भारतीय राज्य केरल) के पठानमथिट्टा में खडेजा बीबी और एक सरकारी कर्मचारी अन्नावीतिल मीरा साहिब के घर हुआ था. वो छह बहनों और दो भाईयों में सबसे बड़ी थीं.

उन्होंने 1943 में कैथोलिकेट हाईस्कूल, पठानमथिट्टा से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की. वो अपनी उच्च शिक्षा के लिए त्रिवेंद्रम चली गईं, जहां छह साल तक रहीं. इसके बाद बी.एस.सी. यूनिवर्सिटी कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से करके गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से कानून की पढ़ाई के लिए अपना नामांकन कराया. 

पहले वो विज्ञान का अध्ययन करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता जस्ट‍िस अन्ना चांडी (भारत की पहली महिला न्यायाधीश और उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली भारत की पहली महिला) की सफलता से प्रेरित थे. ये उनके घर के पास काम कर रही थीं. इसलिए उन्होंने अपनी बेटी फातिमा बीवी को भी साइंस की जगह कानून का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया. फातिमा बीवी लॉ स्कूल में अपनी कक्षा की केवल पांच छात्राओं में से एक थीं, जो बाद में घटकर तीन रह गईं. 

Advertisement

साल 1950 में अपनी कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा दी और परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला बनीं. उन्होंने बार काउंसिल का स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया, जो उनकी ऐतिहासिक उपलब्धियों में से पहला था. 

फातिमा बीवी ने एक वकील के रूप में दाखिला लिया और 14 नवंबर, 1950 को केरल में निचली न्यायपालिका में अपना करियर शुरू किया. आठ साल बाद, उन्होंने केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ की नौकरी ली. जैसे-जैसे साल बीतते गए, वह केरल के अधीनस्थ न्यायाधीश (1968-72), मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (1972-4), जिला और सत्र न्यायाधीश (1974-80), एक न्यायिक सदस्य के रूप में उल्लेखनीय रूप से आगे बढ़ती गईं. आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (1980-83) और 1983 में केरल उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनीं. 

अपने लंबे करियर के दौरान, उन्होंने दंगा और हत्या सहित विभिन्न सत्रों और दीवानी मामलों को संभाला. आखिर में  6 अक्टूबर, 1986 को, केरल उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के छह महीने के भीतर, वह भारत की सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त होने वाली पहली महिला बनीं. इस उपलब्धि का महत्व उनके अपने शब्दों में वर्णित है, 'मैंने दरवाजा खोल दिया है', उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा. सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होकर उन्होंने महिलाओं के लिए पुरुष प्रधान न्यायपालिका में करियर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया. 

Advertisement

2016 के एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या भारतीय न्यायपालिका पितृसत्तात्मक है तो इस पर उन्होंने खुले मन से हामी भरी. उन्होंने कहा, हां बिल्कुल है, इसके बारे मे कोई शक नहीं. वह समाज के उस विरोध के खिलाफ मुखर रही हैं, जो कानून का पालन करने वाली महिलाओं का सामने आता है. उन्होंने न्यायपालिका, विशेषकर उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने कहा कि अब मैदान में कई महिलाएं हैं, दोनों बार और बेंच में महिलाएं हैं,  हालांकि, उनकी भागीदारी नगण्य है. उनका प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर नहीं है. इसका एक ऐतिहासिक कारण भी है.... महिलाएं देर से मैदान में उतरीं. 

महिलाओं को न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व मिलने में समय लगेगा. एक साक्षात्कार में न्यायपालिका में लैंगिक विविधता की कमी के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये सर्वोच्च न्यायालय में सक्षम महिलाओं की नियुक्ति के लिए किसी भी कमी के कारण नहीं है. ऐसी सक्षम महिलाएं हैं जिन पर विचार किया जा सकता है और उन्हें नियुक्त किया जा सकता है. यह कार्यपालिका को करना है. वो उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के लिए आरक्षण के लिए भी खड़ी हैं ताकि अधिक से अधिक महिलाओं को संस्था का हिस्सा बनने का मौका मिल सके. 

Advertisement

साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद बीवी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (1993) के सदस्य और केरल पिछड़ा वर्ग आयोग (1993) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. 

तमिलनाडु की राज्यपाल बनीं 

25 जनवरी 1997 को, उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था. राज्यपाल के रूप में उन्होंने जो एक बड़ा फैसला लिया, वह राजीव गांधी हत्याकांड में चार दोषियों द्वारा दायर दया याचिकाओं को खारिज करना था. साल 2001 में उन्होंने अन्नाद्रमुक महासचिव जयललिता को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया. इस निर्णय की आलोचना की गई क्योंकि भले ही जयललिता की पार्टी को साधारण बहुमत प्राप्त हुआ था, फिर भी जयललिता को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था.

फातिमा बीवी का कहना है कि यह एक सहज निर्णय नहीं था, उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीशों से परामर्श किया था. जयललिता को बरी कर दिया गया था और न्यायमूर्ति बीवी द्वारा नियुक्त किए जाने पर उन्हें कोई दोषी नहीं ठहराया गया था. इसके बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यपाल को अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहने के लिए राष्ट्रपति को वापस बुलाने की सिफारिश करने का फैसला किया. न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने इस्तीफा देने का फैसला किया, इस प्रकार तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में उनका महत्वपूर्ण कार्यकाल 2001 में एक विवादास्पद अंत में परिणत हुआ. आखिरकार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जयललिता को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने के फातिमा बीवी के फैसले को पलट दिया. 

Advertisement

1992 में सुप्रीम कोर्ट से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद बीवी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (1993) के सदस्य और केरल पिछड़ा वर्ग आयोग (1993) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. साल 1990 में डी लिट और महिला शिरोमणि पुरस्कार मिला. उन्हें भारत ज्योति पुरस्कार और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (USIBC) लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.  तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में भी कार्य किया. साल 2002 में, वाम दलों ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में फातिमा बीवी के नामांकन पर चर्चा की हालांकि एनडीए सरकार ने डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम का प्रस्ताव रखा. 

 

Advertisement
Advertisement