scorecardresearch
 

16 साल की उम्र में लड़का बनकर की अंग्रेजों की जासूसी, दिलचस्‍प है देश की पहली महिला स्‍पाई की कहानी

Saraswathi Rajamani: लेखकों और इतिहासकारों द्वारा बड़े पैमाने पर कुछ ऐसे सेनानियों की अनदेखी की गई, जिन्‍होंने अपनी जान पर खेलकर अंग्रेजों से लोहा लिया और देश की आजादी की नींव रखी. ऐसी ही एक अनजानी नायिका हैं, सरस्‍वती राजामणि. जिन्‍होंने 16 साल की उम्र में ही सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर अंग्रेजों के किले में सेंध लगा दी थी.

Advertisement
X
Saraswati Rajamani
Saraswati Rajamani

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिले लंबा समय बीत चुका है, मगर अभी भी कई स्वतंत्रता सेनानियों के साहस और योगदान को सही मूल्‍य मिलना अभी भी बाकी है. लेखकों और इतिहासकारों द्वारा बड़े पैमाने पर कुछ ऐसे सेनानियों की अनदेखी की गई, जिन्‍होंने अपनी जान पर खेलकर अंग्रेजों से लोहा लिया और देश की आजादी की नींव रखी. ऐसी ही एक अनजानी नायिका हैं सरस्‍वती राजामणि, जिन्‍होंने 16 साल की उम्र में ही सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर अंग्रेजों के किले में सेंध लगा दी थी.

Advertisement

कौन थीं सरस्‍वती राजमणि?
सरस्वती राजमणि का जन्म 1927 में बर्मा में, स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार में हुआ था. उनके पिता, त्रिची के एक समृद्ध खनिक और स्वतंत्रता संग्राम के कट्टर समर्थक थे. वह ब्रिटिश अधिकारियों की गिरफ्तारी से बचने के लिए बर्मा में बस गए थे. राजमणि एक उदार परिवार में पली-बढ़ीं जहां लड़कियों के लिए बहुत कम या कोई प्रतिबंध नहीं था. 

सुभाषचंद्र बोस से हुईं प्रभावित
जब वह सिर्फ 16 वर्ष की थीं, तब सुभाषचंद्र बोस ने INA के लिए पैसा इकट्ठा करने और स्वयंसेवकों की भर्ती के लिए रंगून का दौरा किया. गांधी जी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विपरीत, बोस ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए हर किसी से हथियार उठाने का आग्रह किया. उनके उग्र भाषण से प्रभावित होकर, राजमणि ने अपने सभी कीमती सोने और हीरे के आभूषण उतार दिए और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय सेना को दान कर दिया.

Advertisement

उनके इस जज्‍बे को बच्‍ची का भोलापन समझकर, अगले दिन बोस उनके आभूषण लौटाने उनके पिता के पास पहुंचे, मगर सरस्‍वती ने उन्‍हें वापस लेने से मना कर दिया. उलटे, उन्‍होंने बोस से उन्‍हें अपनी सेना में भर्ती करने का आग्रह किया. वह इतनी उत्‍सुक थीं कि अगले ही दिन, बोस ने राजमणि और उसके चार दोस्तों को आईएनए की खुफिया शाखा में जासूस के तौर में भर्ती कर लिया.

लड़का बनकर की अंग्रेजों की जासूसी
जासूस लड़कियों ने ब्रिटिश सैन्य शिविरों और अधिकारियों के घरों में काम करने वाले लड़कों के रूप में काम करना शुरू कर दिया. दुश्मन के किले के अंदर गुप्त एजेंट्स के रूप में, वे ब्रिटिश अधिकारियों से सरकारी आदेशों और सैन्य खुफिया सूचनाओं को चुराने और इन्हें आईएनए तक पहुंचाने का काम करने लगीं.

जब किया जेल तोड़ने का साहसी प्रयास
अपने सहयोगियों को जेल से आजाद कराने के लिए उन्‍होंने एक प्‍लान तैयार किया. उन्‍होंने खुद को एक नाचने वाली लड़की के रूप में तैयार किया और जेल पहुंचकर अधिकारियों को नशीला पदार्थ पिला दिया. जैसे ही लड़कियां भाग रही थीं, अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं और राजमणि के दाहिने पैर में गोली लग गई. वह घायल पैर के साथ भी भागती रहीं और अपनी एक साथी के साथ पेड़ पर चढ़ गईं. उन्होंने तीन दिनों तक यहीं डेरा डालकर रखा जबतक अंग्रेजों ने अपना तलाशी अभियान जारी रखा.

Advertisement

जीनी पड़ी गुमनामी की जिंदगी
नेताजी बोस उनकी बहादुरी और सूझबूझ से इतने प्रभावित हुए कि उन्‍हें आईएनए की झांसी रानी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया. वह देश की पहली महिला जासूस थीं जिन्‍होंने सीधे अंग्रेजी किले में घुसकर अपनी जान की बाजी लगाई. आजादी के बाद, लंबे समय तक वह चेन्नई में एक जर्जर और तंग एक कमरे के अपार्टमेंट में अकेली रहती रहीं जो केवल नेताजी बोस की तस्वीरों से सजा था. 13 जनवरी 2018 को उनकी मौत हो गई.

 

Advertisement
Advertisement