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बार-डिस्को-पब वगैरह में घुसने पर अक्सर रोशनी बेहद धीमी होती है. माहौल ऐसा कि कुछ फीट की दूरी पर खड़े अपने खास दोस्त को भी पहचान न पाएं. क्या इसका मकसद वहां मौजूद लोगों को प्राइवेसी देना भर है? क्या यह किसी किस्म की परंपरा है कि शराब हमेशा कम रोशनी में ही परोसी जाए. जी नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसा करने के पीछे पूरा विज्ञान है.
कम रोशनी के पीछे वैज्ञानिक कारण
70 के दशक में डॉक्टर जॉन फ्लिन ने रोशनी और इसके मनोविज्ञान को लेकर बड़ी रिसर्च की है. उन्होंने अपने अध्ययन में समझा कि कोई शख्स कैसा रिएक्ट करेगा, यह बहुत हद तक वहां की रोशनी पर निर्भर करता है. इस अध्ययन का लब्बोलुआब यह है कि किसी जगह की रोशनी से इंसानी मूड अच्छा भी हो सकता है और खराब भी. रोशनी से माहौल खुशनुमा बन सकता है और अरुचिकर भी. फ्लिन ने अपने अध्ययन में इंसानी प्रतिक्रिया के आधार पर रोशनी को कई श्रेणियों में बांटा है, जो निम्नलिखित हो सकती हैं.
pleasant या unpleasant
public या private
spacious या confined
relaxed या tense
visually clear या hazy
इस अध्ययन के मुताबिक, किसी भी एरिया की लाइटिंग यह तय करती है कि वहां मौजूद शख्स किस तरह से रिएक्ट करेंगे. रोशनी से ही मन में विचार बनता है कि कमरे में पर्याप्त जगह है कि नहीं. रोशनी ही तय करती है कि वहां मूड रिलैक्स्ड होगा या नहीं. हम जानते हैं कि कम रोशनी ज्यादा रिलैक्स्ड रखती है. यहां तक कि घर पर भी सुकून के पलों में रोशनी को कम ही रखा जाता है. बार की रोशनी कम होने से वहां जाने वाले शख्स की प्राइवेसी और इंटिमेंसी सुनिश्चित होती है क्योंकि कम रोशनी में लोग ठीक से कम देख पाते हैं. इस वजह से यहां रोशनी उतनी ही रखी जाती है कि लोग मेन्यू पढ़ सकें और बिलकुल पास के लोगों को ठीक से देख सकें. इसके उलट तीखी ब्राइट रोशनी का मकसद ध्यान खींचना है. शायद तभी शॉपिंग मॉल्स से लेकर दुकानों तक में तेज रोशनी के इंतजाम होते हैं.
कम रोशनी में ज्यादा शराब पीते हैं लोग!
रिसर्च से यह साबित हो चुका है कि बार-पब आदि में घुसने पर किसी भी शख्स पर पहला इंप्रेशन वहां की रोशनी और माहौल का ही पड़ता है. बार में कम रोशनी होने का एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि भारतीय अक्सर शराब का सेवन रात को ही करते हैं. बार या पब की कम रोशनी लोगों को रात के उसी माहौल को महसूस करने में मदद करती है. वहीं, रोशनी यह भी तय करती है कि लोग वहां कितना वक्त बिताएंगे. ऐसे में जब लोग कम रोशनी वाले सुकून भरे माहौल में होते हैं तो वे ज्यादा वक्त बिताते हैं और ज्यादा शराब भी ऑर्डर करते हैं. कई स्टडीज में भी साबित हो चुका है कि बार, पब आदि की रोशनी का सीधा असर उनके व्यवसाय और कमाई पर भी पड़ता है.
रोशनी के असर का मनोविज्ञान समझें
धीमी और तेज रोशनी के मनोविज्ञान को हम एक दूसरे उदाहरण से भी समझ सकते हैं. उदाहरण के तौर पर फास्ट फूड जॉइंट्स और पिज्जा शॉप्स पर रोशनी अमूमन तेज होती है. दरअसल, इन दुकानों का मकसद ग्राहकों को दुकान में ज्यादा देर तक रोकने के उलट ज्यादा से ज्यादा बिक्री पर होता है. वहीं, जब आप किसी महंगे 'फाइन डाइन' रेस्तरां में जाते हैं तो अक्सर वहां की रोशनी मद्धम होती है. इन रेस्तरां का मकसद ग्राहकों को ज्यादा देर तक रेस्तरां में रोकना होता है ताकि वे ज्यादा से ज्यादा महंगे ऑर्डर दे सकें.