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एजुकेशन न्यूज़

कोरोना का कहर: यूज्ड मास्क, ग्लव्स, पीपीई किट....मुसीबत बना चार गुना बढ़ा बायोमेडिकल कचरा

प्रतीकात्मक फोटो
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देश में कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को डर के साये में जीने से मजबूर कर दिया है. वहीं दूसरी ओर कोरोना का कहर बायोमेडिकल वेस्ट की तादाद से भी दिख रहा है. फरवरी की तुलना में मई की 10 तारीख तक औसतन प्रतिदिन चार गुना ज्यादा कचरा निकला है. जानिए- ये किस तरह प्रकृति और इंसान के लिए खतरा बन रहा है. 

प्रतीकात्मक फोटो (AFP)
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पहले देश भर में ही कोरोना की पहली लहर फरवरी के महीने पर उतार पर थी.  इसके चलते अस्पतालों, आइसोलेशन सेंटर और होम आइसोलेशन में रहने वालों की संख्या भी बेहद कम हो गई थी. बायोमेडिकल वेस्ट जिसमें इस समय मुख्य तौर पर कोरोना का कचरा शामिल है, उस समय बेहद कम हो गया था. 

प्रतीकात्मक फोटो (AFP)
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केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक उस समय देश भर में हर दिन औसतन 53 टन प्रति दिन बायोमेडिकल वेस्ट निकलता था. इसकी तुलना अगर मई महीने के शुरुआती दस दिनों से करें तो भारी उछाल देखने को मिला है. मई महीने के शुरुआती दस दिनों में औसतन 203 टन प्रति दिन कचरा निकला है. 

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प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
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यह वह समय भी है जब कोरोना के मरीजों की संख्या भी सबसे ज्यादा रही है और इस बीमारी से मरने वालों की तादाद भी सबसे ज्यादा रही है.  हालांकि, दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में अप्रैल की तुलना में इस अवधि में धीरे-धीरे संक्रमण की दर में थोड़ा सुधार भी दर्ज किया गया है. जीव वैज्ञानिक फैयाज कुदसर ने कहा कि कोरोना से निकला बायोमेड‍िकल वेस्ट पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. अगर ये बायोमेड‍िकल कचरा सही ढंग से निस्तारित नहीं होता तो ये प्रकृति के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है. इससे पशुओं और पक्ष‍ियों में भी संक्रमण बढ़ने का खतरा ज्यादा रहता है. 

प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
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खासतौर पर पांच अप्रैल के बाद देशभर में कोरोना संक्रमण की लहर बेहद तेज हो गई. सिर्फ राजधानी दिल्ली में पीक पर यानी संक्रमण दर 32 फीसदी तक पहुंच गई. बायो कचरे की मात्रा पर भी इसका साफ असर देखा जा सकता है. सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक मई महीने के पहले दस दिनों में बायो कचरे के मामले में दिल्ली चौथे स्थान पर रही है.  वहीं केरल पहले, गुजरात दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा है. 

प्रतीकात्मक फोटो (PTI)
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क्या होता है बायोमेडिकल वेस्टः
अस्पतालों, नर्सिंग होम, आइसोलेशन सेंटर, होम क्वारंटाइन आदि से निकलने वाला कचरा बेहद संक्रामक होता है. इसमें मरीज और डाक्टर द्वारा इस्तेमाल किए गए तमाम ऐसी चीजों हो सकती हैं जिनमें कोरोना या अन्य खतरनाक वायरस-बैक्टीरिया चिपके हो सकते हैं.  इसलिए इस पूरे बायोमेडिकल कचरे को खासतौर पर बनाए गए कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में बहुत ही ज्यादा तापमान पर जला दिया जाता है. ताकि, इनमें मौजूद हानिकारक वायरस-बैक्टीरिया व फंगस को समाप्त किया जा सके.  

प्रतीकात्मक फोटो (PTI)
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देश में मौजूद हैं 198 ट्रीटमेंट प्लांटः
बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए देश भर में 198 कॉम बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट हैं. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 29 प्लांट है. राजधानी दिल्ली में इस तरह के दो ट्रीटमेंट प्लांट हैं.  हालांकि, कोरोना महामारी के चलते इन संयंत्रों को अपनी क्षमता से भी ज्यादा पर काम करना पड़ रहा है. दिल्ली में दो और संयंत्रों को स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. लेकिन, अभी तक इस संबंध में कंपनियों ने खास रुचि जाहिर नहीं की है. 

प्रतीकात्मक फोटो (PTI)
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किस महीने निकला कितना कचराः
जनवरी—74 टन प्रति दिन
फरवरी---53 टन प्रति दिन
मार्च---75 टन प्रति दिन
अप्रैल---139 टन प्रति दिन
मई (10 तारीख तक)---203 टन प्रति दिन

 

प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)
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इन पांच राज्यों में सबसे ज्यादा बायो कचराः
केरल---23.71 टन प्रति दिन
गुजरात---21.98 टन प्रति दिन
महाराष्ट्र----19.02 टन प्रति दिन
दिल्ली---18.79 टन प्रति दिन
कर्नाटक---16.91 टन प्रति दिन
(मई महीने की 10 तारीख तक)

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