दिल्ली सरकार नर्सरी से आठवीं तक की जूनियर कक्षाओं के लिए स्कूलों को 1 नवंबर से चरणबद्ध ढंग से फिर से खोलने की तैयारी कर रही है. दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की ओर से भी इसे लेकर लगातार बैठकें हो रही हैं. लेकिन वहीं दिल्ली के पेरेंट्स अभी भी बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर कनफ्यूज हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वो बच्चों को स्कूल भेज पाएंगे कि नहीं, एक तरफ त्योहार बाद कोरोना मरीजों के बढ़ने और थर्ड वेव का डर सता रहा तो दूसरी तरफ बच्चों के भविष्य की चिंता खाए जा रही, आइए जानें- कुछ पेरेंट्स की राय...
दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की प्रेसीडेंट अपराजिता गौतम ने aajtak.in से कहा कि दशहरा के बाद डीडीएमए इस पर फैसला करेगा किस कक्षा को किस चरण से शुरू करना चाहिए. लेकिन इससे पहले पेरेंट्स का यही कन्सर्न है कि स्कूल किस तरह कोविड 19 प्रोटोकॉल का 100 फीसदी अनुपालन करेंगे. स्कूल में बच्चों को कोरोना संक्रमण न हो, इसके लिए सरकार किस तरह तैयारी और अपनी जवाबदेही को सुनिश्चित करेगी.
ज्योति गुप्ता का बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता है. ज्योति ने कहा कि मेरा बेटा अभी 4th में पढ़ता है, उसको मैं अभी भी स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं हूं क्योंकि हम देख रहे हैं कि स्कूल जो बड़े बच्चों को बुला रहे हैं, उनके लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं. अभी हाल ही में जो बच्चों की वेक्सीन भी आई है, उसे भी इमरजेंसी में प्रयोग करने की अनुमति है. इसका साफ मतलब है कि 18 से कम के बच्चे की सुरक्षा पर पेरेंट्स को ही ध्यान देना है.
मनीष शर्मा के बच्चे दूसरी और चौथी क्लास में पढ़ते हैं, उनका मानना है कि जब तक कोविड के ज़ीरो केस नहीं हो जाते और जब तक बच्चों की वैक्सीन नहीं लगती. तब तक मैं अपने बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं. इसके अतिरिक्त मैं कई ऐसे पेरेंट्स को जानता हूं जो आज स्कूल के दबाव और सरकार की चुप्पी के चलते अपने बच्चों को बिना अनुमति के भेजने को मजबूर हैं. अगर बच्चे को कुछ भी होता है उसकी जिम्मेदारी कोई भी लेने को तैयार नहीं, तो ऐसे में मैं कैसे अपने बच्चों को खतरे में डालूं.
अनीशा शर्मा ने कहा कि मेरा बच्चा पांचवीं में है, मैं सिंगल मदर हूं. अभी बच्चे को स्कूल भेजने को लेकर बहुत कनफ्यूज हूं. एक तरफ ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को समझ नहीं आ रही, वहीं दूसरी तरफ बच्चों को स्कूल भेजने से डर लग रहा है. त्यौहारों के बाद हालातों को देखकर अंदाजा लगेगा कि कोरोना के मरीज बढ़े या नहीं. अगर सब ठीक रहा तो शायद मैं अपनी बेटी को भेज दूं. लेकिन इससे पहले स्कूलों को पूरी तरह सेनेटाइज कराकर वहां कोविड-19 प्रोटोकॉल का पूरी तरह अनुपालन कराएं.
दूसरी और सातवीं कक्षा के बच्चों के अभिभावक रवि किशन ने कहा कि मेरे दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं जहां पिछले डेढ़ साल से ठीक से पढ़ाई नहीं हुई. टीचर क्लास नहीं लेते बस व्हाट्सएप पर मैसेज आ जाता है. ऐसे पढ़ाई नहीं होती, मैं तो चाहता हूं कि स्कूल जल्दी से खुले और मेरे बच्चे स्कूल जाकर ही पढ़े.
प्रीति नांगिया जिनके बच्चे चौथी और आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं, उन्होंने कहा कि मैंने कोरोना की दूसरी लहर में अपने पति और ससुरजी को खोया है. इस बीमारी की दहशत आज भी हमारे दिलों में घर किये हुए है. सरकार का असंवेदनशील व्यवहार देखते हुए मैं बच्चों को स्कूल भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही. जब तक एक भी केस आ रहा है सरकार को स्कूल नहीं खोलने चाहिए.