भारत में बिजली उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल कोयले का ही होता है और ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन केंद्रों में कोयले का स्टॉक बहुत कम हो चुका है. एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार चार दिनों के भीतर देश में बिजली संकट आ सकता है, इससे आपके घरों में भी पॉवर कट हो सकता है. आइए जानते हैं कि भारत में कितने कोयले की खपत से कितनी बिजली बनती है. यह बिजली कहां और कैसे बनाई जाती है, बिजली उत्पादन पर यह गंभीर संकट क्यों आया है.
अगर कोयले से बिजली के उत्पादन के बारे में बात करें तो भारत की कुल बिजली मांग का करीब 70 फीसदी कोयले से बिजली बनाकर ही पूरा किया जाता है. भारत में कोयले की कुल खपत का तीन-चौथाई हिस्सा बिजली उत्पादन पर खर्च होता है. देश में कुल 135 थर्मल पावर प्लांट्स हैं जहां कोयले से बिजली का उत्पादन होता है. बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की मात्रा 1.5 मिलियन टन 40 दिन के लिए स्टोर करके रखा जाता है क्योंकि कोयला घटने पर बिजली प्लांट बंद हो जाएगा और घरों में बिजली कट हो जाएगी.
आसान भाषा में कोयले से बिजली उत्पादन के तरीके को इस तरह समझ सकते हैं. बता दें कि कोयले से चलने वाले बिजली घरों को थर्मल पावर प्लांट कहते हैं. इसमें कोयला पीसने के बाद इसे फर्नेस (furnace) में जलाया जाता है जिसके ऊपर बोइलर होता है जहां पानी भरा होता है. यहां कोयला जितना अच्छा होगा उसमें उतनी ज्यादा उष्ण ऊर्जा पैदा होगी इसलिए कोयले को एकदम पाउडर बना दिया जाता है. यहां पानी भाप बनकर बहुत ही मोटे पाईप से निकल कर टर्बाइन में जाता है या फिर ऐसा भी होता है की फर्नेस में ही मोटे मोटे पाईप घूमते हैं जिनमें पानी बहता रहता है.
यह मिश्रण गर्म होकर भाप बन जाता है और इन पाईप का एक सिरा टर्बाइन से जुड़ा होता है. भाप की ऊर्जा से टर्बाइन घूमती है. टर्बाइन एक बड़ी सी चकरी होती है जिसमें ब्लेड लगे होते हैं. भाप के वेग से यह जोर से घूमने लगती है. यह जितनी तेज़ घूमेगी बिजली वाले तार में भी उतनी गति से उतनी अधिक बिजली पैदा होगी. इसीलिए इस टर्बाइन पर भाप को बहुत ऊंचे दबाव और ऊंचे तापमान से लाया जाता है.
भारत में बिजली उत्पादन के लिए कोयले की खपत दिन पर दिन बढ़ रही है. ऊर्जा उत्पादन के दूसरे सोर्स से कहीं ज्यादा यहां चुनौतियां बढ़ी हैं. ऊर्जा मंत्रालय के एक आंकड़े के अनुसार 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट प्रति महीना थी जो 2021 में बढ़कर 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने तक पहुंच गया है. बिजली की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए 2021 के अगस्त-सितंबर महीने में कोयले की खपत 2019 के मुकाबले 18 प्रतिशत तक बढ़ी है.
भारत के पास 300 अरब टन का कोयला भंडार है. लेकिन फिर भी बड़ी मात्रा में कोयले का आयात इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से हो रहा है. अगर इंडोनेशिया की ही बात करें तो मार्च 2021 में कोयला की कीमत 60 डॉलर प्रति टन थी जो अब बढ़कर 200 डॉलर प्रति टन हो गई है. इस वजह से कोयले का आयात कम हुआ है. ऐसी कई वजहें हैं जिससे थर्मल पावर प्लांट्स की बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए कोयला नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से प्लांट के कोयला भंडार समय के साथ-साथ कम होता गया. अब हालत यह है कि 4 दिन बाद देश के कई इलाकों में अंधेरा हो सकता है.
ऊर्जा मंत्रालय ने देश में कोयले से बिजली संकट की बात कही है. इसके पीछे बड़ी वजह कोयले के उत्पादन और उसके आयात में आ रही दिक्कतें बताई जा रही हैं. मानसून की वजह से कोयला उत्पादन में कमी आई है. इसकी कीमतें बढ़ी हैं और ट्रांसपोर्टेशन में काफी रुकावटें आई हैं. ये ऐसी समस्याएं हैं जिसकी वजह से आने वाले समय में देश के अंदर बिजली संकट पैदा हो सकता है. वहीं कोरोना काल भी इसके पीछे एक बड़ी वजह के तौर पर सामने आया है. यही नहीं कोयले की खपत के भविष्य के अनुमान और भी ज्यादा हैं.