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एजुकेशन न्यूज़

रुकि‍ए, दुबला होने के ल‍िए खाने से परहेज कर रहे हैं, कहीं ये ड‍िसऑर्डर न बन जाए?

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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कनाडा फरवरी के पहले हफ्ते को ईटिंग डिसऑर्डर अवेयरनेस वीक मनाता है. अब सिर्फ पश्‍च‍िमी देश ही नहीं, बल्‍क‍ि एश‍ियाई देशों में भी यह डिसऑर्डर तेजी से फैल रहा है. कनाडा की एक वेबसाइट ने लिखा है कि कोविड-19 के दौरान किंग्‍सटन के युवाओं में बुल‍िम‍िया डिसऑर्डर बढ़ा है. लेक‍िन इससे उलट दुबला होने के ल‍िए खाने से परहेज एनोरेक्‍स‍िया नर्वोसा को जन्‍म देता है. अब आप सोच रहे होंगे कि कभी कम तो कभी ज्‍यादा खा लेना तो सामान्‍य बात है, इसमें भला डिसऑर्डर जैसी कोई मानसिक समस्‍या कहां से आ गई. लेकिन ऐसा नहीं है, कई बार खाने की समस्‍या भी आपके मनोभाव से सीधे जुड़ी हुई होती है. आइए विशेषज्ञ से जानते हैं इस डिसऑर्डर से जुड़ी बातें.

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इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाएड साइंसेस (IHBAS) के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश एक रिसर्च का हवाला देते हुए कहते हैं कि तमाम शोध इस बात की गवाही देते हैं कि ईटिंग ड‍िसऑर्डर एनोरेक्सिया नर्वोसा की मृत्‍यु दर किसी भी साइकेट्रिक डि‍सऑर्डर से होने वाली मौतों से सबसे अधिक है. इसका सबसे ज्‍यादा श‍िकार युवा महिलाएं होती हैं. इनकी मृत्‍युदर लगभग 0.3% है. डॉक्‍टर बताते है क‍ि एनोरेक्सिया नर्वोसा के श‍िकार लोग खाने से परहेज करते हैं, या खाने में प्रतिबंध लगाते हैं. कई बार बहुत कम या कुछ खाद्य पदार्थों को खाते ही नहीं है. यहां तक क‍ि जब वे खतरनाक रूप से अंडर वेट होते हैं, तब भी उन्‍हें लगता है कि वो अभी भी ओवर वेट हैं. वे बार-बार अपना वजन भी चेक करते हैं.

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डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि एनोरेक्सिया से पीड़ित 80-90% महिलाएं हैं. एनोरेक्सिया से पीड़ि‍त जो लोग अस्‍पताल पहुंचते हैं, उनमें युवा महिलाएं या किशोर होते हैं, इसके पीछे आम वजह वजन घटाना ही होती है. अधिकांश लोग इसके प्राथमिक उपचार और देखभाल से ठीक हो जाते हैं. लेकिन गंभीर एनोरेक्सिया नर्वोसा के कुछ मामलों में पेशेवर डॉक्‍टर्स की देखरेख में इलाज चलता है.

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 डॉ ओमप्रकाश इसे उदाहरण से इस तरह समझाते हैं कि मान लीजिए किसी बच्‍चे का वजन टीन एज में ज्‍यादा हो गया तो उस पर परिवार और दोस्‍त वजन घटाने का दबाव डालने लगे. धीरे धीरे उसने अचानक अपनी आदतों में कम खाने को लेक‍र इतना ज्‍यादा ढाल लिया कि उसका वजन अचानक बहुत कम हो जाता है. यहां तक कि बॉडी मास भी घट जाता है, यह अवस्‍था एनोरेक्सिया नर्वोसा कहलाती है. 

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डॉक्‍टर कहते हैं कि नर्वोसा से पीड़ित व्‍यक्‍त‍ि का दिमाग सामान्‍य इंसान की तुलना में कुछ अलग तरीके से व्यवहार करता है. लेकिन ये सिर्फ मोटापे के कारण नहीं है, कई लोग जन्म से ही इस बीमारी की संभावना के साथ पैदा होते हैं. ऐसे उदाहरण कम ही हैं जब लोग शरीर की चर्बी को घटाने के लिए हानिकारक तरीकों का सहारा लेते हैं, और अपनी ईटिंग हैबिट को बुरी तरह प्रभावित कर लेते हैं. 

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विडंबना यह है कि इस डिसऑर्डर की सबसे घातक स्‍थि‍ति यह होती है क‍ि सबसे पहले तो इसे पहचानना इतना आसान नहीं है. दूसरा इसके उपचार के लिए एनोरेक्सिया वाले रोगियों को जुटाना  मुश्किल है, इसलिए इसके शोध भी बहुत ज्‍यादा नहीं हो पाते. इस एनोरेक्स‍िया नर्वोसा की पहचान तीन तरह से होती है पहला शरीर पर भुखमरी का प्रभाव, दूसरा आनुवंशिक अध्ययन और तीसरा जीन विश्लेषण.

डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि हालिया रिपोर्टस बताती हैं कि भारतीयों में ईटिंग डिसऑर्डर (ईडी) की समस्‍या बढ़ी है. साल 1995 के बाद से ईडी के अस्पताल-आधारित अध्ययन और सर्वेक्षणों में सामने आया है क‍ि भारत में आर्थिक परिवर्तन, तेजी से बढ़ते शहरीकरण, कार्पोरेट में कर्मचारियों में वृद्धि, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी, वैश्वीकरण के प्रभाव और लक्षित विज्ञापनों द्वारा आहार पैटर्न में बदलाव के कारण ये समस्‍या बढ़ी है. इसके अलावा जीरो फिगर के चलन ने एनोरेक्‍स‍िया नर्वोसा को बढ़ाया है.

 

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हाल ही में इंडियन नेशनल सर्वे ऑफ मेंटल डिसऑर्डर में ईटिंग डिसऑर्डर के एनोरेक्सिया नर्वोसा (एएन) को एक विकार के रूप में परिभाषित किया गया है. जि‍समें रोगी अपनी एज और हाइट के अनुसार सामान्य वजन या उससे अधिक शरीर के वजन को बनाए रखने से इनकार करता है. उनमें वजन बढ़ने या मोटा होने का गहन भय होता है, भले ही वजन कम हो. जैसे ही उन्‍हें किसी के शरीर के वजन या आकृति का अनुभव होता है, वो परेशान महसूस करता है. यह परेशानी उसकी ईटिंग हैबिट को बुरी तरह प्रभावित करती है.

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अब बात करते हैं ईटिंग डिसऑर्डर के दूसरे प्रकार बुलिमिया की. बुलिमिया से पीड़ि‍त व्यक्ति बिना वजह जरूरत से ज्यादा खाता है. वो चाहकर भी अपने खान-पान को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं. एनोरेक्सिया और बुलीमिया आमतौर पर 15 वर्ष की उम्र से शुरू होता है. लेकिन कोविड-19 ड‍िजीज के माहौल में भी कई लोगों में ईटिंग डिसऑर्डर पनपे हैं. लोग तनाव को कम करने या घरों से काम करते वक्‍त बार बार खाने पीने की आदतों का श‍िकार हो जाते हैं. इसलिए अगर आप भी खाने पीने की आदत को अपने मन से कंट्रोल नहीं कर पाते तो आपको एक बार जरूर साेचना चाह‍िए क‍ि कहीं ये बुल‍िम‍िया तो नहीं है.

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ऐसे करें बचाव, ये 5 टिप्‍स अपनाएं

  • लाइफस्‍टाइल को हेल्‍दी और रूटीन पर रखें. कोश‍िश करें कि नाश्‍ता और खाना वक्‍त पर, पाचक और पौष्टिक हो.
  • अगर दोबारा या बार बार खाने का मन करता है तो कोश‍िश करें क‍ि हेल्‍दी चीज जैसे फल या पत्‍तेदार सलाद लें.
  • जब भूख लगे तब खाएं, न जबरदस्ती भूखे रहें, न पेट भरा होने पर कुछ खाने की आदत डालें.
  • किसी के कहने पर मोटा होने या पतला होने की टिप्‍स न अपनाएं, क‍िसी व‍िशेषज्ञ से बात करके ही वेट घटाएं या बढ़ाएं. 
  • अगर ईटिंग हैबिट से ज्‍यादा परेशान हैं, लगातार वजन गिरता जा रहा है या बढ़ रहा है तो मनोचिकित्‍सक से सलाह जरूर लें.
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