साल 2020 में जहां एक ओर पूरी दुनिया कोरोना पर चर्चा कर रही है, वहीं दूसरा सबसे ज्यादा रुचि का विषय है, वो है अमेरिका के राष्ट्रपति का चयन. सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश में जहां जनता अपने नेता का चयन करती है. ये चयन प्रक्रिया बेहद खास होती है. भारत से काफी अलग होते हैं अमेरिकी चुनाव. जानें इस चुनाव से जुड़ी खास बातें.
सबसे पहले जान लेते हैं कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नवंबर के पहले सोमवार को शुरू होता है. इसमें अमेरिकी नागरिक इलेक्टर का चुनाव करते हैं जो अमेरिका में खड़े होने वाले राष्ट्रपति के प्रत्याशी का समर्थन करते हैं. इसको वहां पर इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है.
इस चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए ये तीन आधारभूत अर्हताएं पूरी करना सबसे जरूरी है.
1. चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति पैदाइशी अमेरिकी हो.
2. उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होना जरूरी है.
3. उम्मीदवार बीते कम से कम 14 साल तक अमेरिका में रहा हो.
अमेरिकी चुनाव के नियमों के अनुसार कोई भी एक व्यक्ति केवल दो ही बार राष्ट्रपति बन सकता है. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट इसका एक अपवाद हैं. वो लगातार तीन बार राष्ट्रपति बने थे और उनका निधन भी पद पर रहते हुए ही हुआ.
अमेरिका में दो पार्टी का सिस्टम है पहली रिपब्लिकन और दूसरी डेमोक्रेट्स. दोनों पार्टियों को अपनी-अपनी तरफ से किसी एक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना होता है जिसे जनता वोट देती है. लेकिन इस उम्मीदवार को चुनने से पहले भी एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि राष्ट्रपति तो हर कोई बनना चाहता है लेकिन कोई उम्मीदवार कैसे बनेगा इसका चयन भी जनता या पार्टी के समर्थक करते हैं.
पिछली बार डेमोक्रेट्स की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन थीं जो राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से हार गई थीं. वहीं रिपब्लिकन पार्टी भी पुरानी पार्टी है. इसके अलावा यहां छोटी राजनीतिक पार्टियां लिब्रेटेरियन, ग्रीन और स्वतंत्र पार्टियां हैं जो कई बार अपना उम्मीदवार खड़ा करती हैं.
अमेरिका में पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकस. इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है, उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है. प्राइमरी चुनाव राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं जोकि खुले और बंद रूप से भी कराए जा सकते हैं. यानी अगर राज्य सरकार तय करती है कि खुले रूप से चुनाव करेगी तो उसमें पार्टी के समर्थक के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है. वहीं अगर बंद रूप से मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं.
कॉकस सिस्टम में चुनाव पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं इसमें पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठे होकर वो अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं. राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए खड़े हो रहे व्यक्ति की बात सुनते हैं उसके बाद उसी सभा में हाथ खड़े कर एक उम्मीदवार को समर्थन दे दिया जाता है हालांकि ऐसा बहुत ही कम राज्यों में होता है. बता दें कि अमेरिकी चुनावी सिस्टम में एक पेच यह भी है कि वहां पर एक वोटर को चुनाव से पहले कुछ समय के लिए एक पार्टी के लिए रजिस्टर करना पड़ता है तभी वह इस तरह के प्राइमरी या कॉकस चुनावों में हिस्सा ले सकता है.
अब कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में खास व्यवस्था की जा रही है. क्योंकि नियम के अनुसार अमेरिकी जनता हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करती है लेकिन यह मतदान सीधे उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है. अमेरिकी जनता सबसे पहले स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है. इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं. जनता सीधे तौर पर इन्हीं सदस्यों को चुनती है जो आगे जाकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. जब अमेरिकी जनता एक बार अपने इलेक्टर को वोट दे देती है तो उसका राष्ट्रपति पद के चुनाव में कोई हाथ नहीं रहता है. सिर्फ यह इलेक्टर पर निर्भर करता है कि वह किसे राष्ट्रपति बनाना चाहता है.
राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है.