बीते कुछ सालों में तमाम स्टडी और रिपोर्ट सामने आई हैं जिससे पता चलता है कि आजकल बच्चियों में कम उम्र में ही मेंशुरेशन यानी माहवारी शुरू हो जाती है. अर्ली एज में पीरियड्स शुरू होने पर बच्चों में चिंता बढ़ने के साथ साथ पेरेंट्स के भीतर भी कई तरह की अनिश्चितताएं घर कर जाती हैं. उनमें से एक है हाइट बढ़ने को लेकर चिंता. ज्यादातर पेरेंट्स मानते हैं कि पीरियड्स शुरू होने के बाद बच्चों में हाइट बढ़ना बिल्कुल बंद हो जाती है. आइए विशेषज्ञ डॉक्टरों से जानते हैं कि इसमें कितनी सच्चाई है. अगर ये सच है तो किस तरह माता-पिता बच्चों की हाइट बढ़ने को लेकर सजग होकर उनकी मदद कर सकते हैं.
पहली बार के मेंसुरेशन को मेडिकल साइंस की भाषा में मेनार्क (Menarche)कहा जाता है. साल 2018 की एनसीबीआई की एक स्टडी के मुताबिक 13 या इससे 1.1 साल कम या ज्यादा उम्र की बच्चियों के बड़े प्रतिशत ने पहली बार मेंशुरेशन फेस किया. लेकिन इसमें लंबाई न बढ़ने की बात को लेकर विशेषज्ञ डॉक्टर बहुत अलग नजरिये से देखते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इसमें थोड़ा सच है, लेकिन ये पूरी तरह से सच भी नहीं है जितना इसे बढ़ा-चढ़ाकर मान लिया जाता है.
सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा में प्रोफसर डॉ निधि कहती हैं कि अर्ली एज में पीरियड्स शुरू होने से लंबाई बढ़ने को लेकर जो कहा जाता है इसके पीछे फिजियोलॉजी का तर्क काफी ठोस है. जिसके अनुसार इसका जिम्मेदार एस्ट्रोजन हार्मोन होता है. वो बताती हैं कि हमारे शरीर के लांग बोन के जो एंड्स होते हैं वो कार्टिलेज एक तरह से सॉफ्ट टिश्यू के होते हैं जो कैल्शिफाई नहीं होते. लेकिन कई बार एस्ट्रोजन इन एंड्स को कैल्शिफाई करके रोक देता है. शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन बनने पर इस बात की चिंता बढ़ जाती है कि ये लंबाई को बढ़ने में बाधा बन सकता है.
डॉ निधि कहती हैं कि इस फिजियोलॉजिकल अफेक्ट से हम मुंह नहीं मोड़ सकते, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है वो ये कि एस्ट्रोजन हार्मोन आने से हाइट पर असर पड़ता है, इससे स्टैंडर्ड हाइट कुछ कम हो सकती है. लेकिन हमें ये भी पता होना चाहिए कि छोटी बच्चियों में एस्ट्रोजन का लेवल अचानक इतना भी नहीं बढ़ता कि उनकी हाइट पर बहुत ज्यादा असर डाले. वो कहती हैं कि हाइट को लेकर पेरेंट्स को जागरूक होना चाहिए लेकिन इससे डरने वाली जैसी बात नहीं है.
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज दिल्ली की प्रोफेसर डॉ मंजू पुरी कहती हैं कि ये बिल्कुल जरूरी नहीं है कि पीरियड्स हो जाए और हाइट बिल्कुल न बढ़े. बेसिकली बच्चे की हाइट पेरेंट्स की हाइट पर डिपेंड करती है. आजकल ज्यादा वेट और एक्सपोजर के कारण ही बच्चियां मेनार्की का सामना जल्दी करती हैं. फिर भी एक बार पीरियड्स आने के बाद माता-पिता को बहुत सजग होने की जरूरत होती है ताकि बच्चे की ग्रोथ पर बिल्कुल भी नकारात्मक असर न पड़े.
इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उनकी डाइट इस तरह प्लान करें जिससे उनका वेट न बढ़े. बच्चों को हाई प्रोटीन और कैल्शियम युक्त डाइट दें, विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, मिनरल्स, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम आदि तत्व भी बच्ची के लिए हेल्पफुल होंगे. साथ ही स्ट्रेचिंग और स्विमिंग जैसी एक्सरसाइज जरूर करने को कहें. बच्चे की मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग करके उसे फिट रहने के लिए प्रेरित करें. कोशिश करें कि बच्चे चिकनाईयुक्त भोजन या जंक फूड से पूरी तरह दूर रहें. डॉ पुरी कहती हैं कि वैज्ञानिक शोधों में ऐसा पाया गया है कि मोटापा एस्ट्रोजन बढ़ने की बड़ी वजह होती है.
डॉ पुरी कहती हैं कि तमाम रिपोर्ट्स बताती हैं कि पीरियड्स शुरू होने के बाद दो साल तक एस्ट्रोजन का लेवल इतना नहीं बढ़ता जो बच्चों की हाइट पर नकारात्मक असर डालें, इसलिए कोशिश यही करें कि मेंशुरेशन स्टार्ट होने के बाद अपनी सजगता भी बढ़ा दें. दो साल तक बच्चे को स्ट्रेचिंग और हाइट ग्रोथ के लिए पूरी तरह तैयार करें. बच्चे के पोषण का पूरा ध्यान रखें ताकि वो मोटे न होकर हेल्दी हों.
शरीर के सभी अंगों के पूरे डेवलेपमेंट के लिए बॉडी का पूरी तरह हाइड्रेट रहना बहुत जरूरी है. बच्चे को किसी तरह का स्ट्रेस देने से बचें. साथ ही विटामिन डी भी एक ऐसा तत्व है जो हाइट बढ़ने में काफी मददगार होता है. समय समय पर विटामिन डी टेस्ट कराएं और डॉक्टर की सलाह पर बच्चे को विटामिन डी जरूर देते रहें, इससे हड्डियों के विकास में मदद मिलती है. सुबह की धूप काफी फायदेमंद हो सकती है.
डॉ निधि कहती हैं कि लड़कियों में 18 साल की उम्र तक हड्डियों और जोड़ों के बीच में एक कार्टिलेज या नरम हड्डी का विकास होता है. माता-पिता को किसी के बहकावे में आकर बच्चों को किसी भी तरह की हार्मोनल दवाएं नहीं देनी चाहिए. विदेशों में ऐसे भी कई मामले देखे गए हैं जिसमें पेरेंट्स एस्ट्रोजन लेवल को कम करने के लिए हार्मोनल दवा देते हैं, इससे शरीर का नेचुरल हार्मोन लेवल गड़बड़ हो जाता है, जिससे कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इसलिए नेचुरल डाइट और एक्सरसाइज के जरिये ही हार्मोंस को कंट्रोल में रखने की कोशिश की जानी चाहिए.