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एजुकेशन न्यूज़

प्‍लाज्‍मा से बचती है कोरोना के गंभीर मरीजों की जान, बिना खतरे के दूसरी बार दे सकते हैं प्‍लाज्‍मा

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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अगर आप कोरोना से ठीक हो चुके हैं तो आपके पास मौका है किसी की जान बचाने का. आप अपनी एक छोटी-सी कोश‍िश से आईसीयू में भर्ती कोरोना मरीज की जान बचा सकते हैं. जानिए प्लाज्मा थ्योरी क्‍या है, इसके जरिये कैसे किसी की जान बचा सकते हैं. कोरोना की पहली वेव में हजारों लोगों की जान इससे बचाई गई हैं. एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया से  इसकी डिटेल जानिए.

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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पूरी दुनिया में इस वक्त प्लाज्मा थ्योरी पर क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं. आजतक से खास बातचीत में एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया था कि प्लाज्मा थ्योरी पुरानी ट्रीटमेंट थेरेपी है. इसे पहले भी कई आउटब्रेक यानी महामारियों में इस्‍तेमाल क‍िया जा चुका है. इबोला और पोलियो में भी इसका इस्तेमाल किया जा चुका है.

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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कोविड-19 की दूसरी वेव का कहर भारत में जारी है. यहां 80 से 85 प्रत‍िशत मरीज घर में ठीक हो रहे हैं. लेकिन 15 प्रतिशत को ऑक्‍सीजन की जरूरत पड़ रही है. इनमें से भी पांच से सात पर्सेंट गंभीर मरीज प्‍लाज्‍मा थेरेपी सहित विभ‍िन्‍न इंजेक्‍शन और स्‍टेरॉयड आदि के इस्‍तेमाल से ठीक हो रहे हैं. लेकिन इसमें सबसे जरूरी है कि ठीक हो गए लोगों को आगे आना होगा.

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प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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अगर कोई कोव‍िड-19 से ठीक हो चुका मरीज स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे आता है तो किसी गंभीर मरीज की जान बचाई जा सकती है. प्‍लाज्‍मा थेरेपी के लिए सबसे पहले दान करने वाले का टेस्ट होगा. टेस्‍ट के जरिये ये देखा जाएगा कि उनके खून में किसी प्रकार का संक्रमण तो नहीं है. मसलन शुगर, एचआइवी या हेपेटाइट‍िस तो नहीं है. अगर ब्लड ठीक पाया गया तो उसका प्लाज्मा निकालकर आईसीयू के पेशेंट को दिया जाए तो वो ठीक हो सकता है.

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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ये लोग दान कर सकते हैं प्लाज्मा

दिल्ली प्लाज्मा बैंक को चलाने वाले अस्पताल इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलिअरी साइंसेस (ILBS) के डायरेक्टर एस के सरीन के मुताबिक ऐसे लोग अपना प्लाज्मा कोरोना मरीजों के इलाज के लिए डोनेट कर सकते हैं जो...

- कोरोना पॉजिटिव हुए हों

- अब निगेटिव हो गए हों

- ठीक हुए 14 दिन हो गए हों

- स्वस्थ महसूस कर रहे हों और प्लाज्मा डोनेट करने के लिए उत्साहित हों

- उनकी उम्र 18 से 60 वर्ष के बीच हो

 

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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ऐसे लोग नहीं दे सकते प्लाज्मा

इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलिअरी साइंसेस के डायरेक्टर एस के सरीन के मुताबिक ऐसे लोग प्लाज्मा नहीं दे सकते हैं...

- जिनका वजन 50 किलोग्राम से कम है

- महिला जो कभी भी प्रेग्नेंट रही हो या अभी हो

- डायबिटीज के मरीज जो इंसुलिन ले रहे हों

- ब्लड प्रेशर 140 से ज्यादा हो

- ऐसे मरीज जिनको बेकाबू डायबिटीज हो या हाइपरटेंशन हो

- कैंसर से ठीक हुए व्यक्ति

- जिन लोगों को गुर्दे/हृदय/फेफड़े या लीवर की पुरानी बीमारी हो

 

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नोबल प्राइज विनर जर्मन वैज्ञानिक एमिल वॉन बेरिंग ( Emil von Behring) ने प्‍लाज्‍मा थेरेपी की शुरुआत की थी. इसके लिए उन्होंने खरगोश में डिप्थीरिया का वायरस डाला, फिर ‍उसमें एंटीबॉडीज डाली गई इसके बाद वो एंटीबॉडीज बच्चों में डाली गई. इसीलिए एमिल को सेवियर ऑफ चिल्ड्रेन कहा जाता है. 

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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लेकिन इस वक्‍त बहुत से लोग फिर से संक्रमण होने के खतरे के डर से प्‍लाज्‍मा देने से डर रहे हैं. लेकिन आपको बता दें क‍ि ज्‍यादातर अस्‍पतालों में प्‍लाज्‍मा बैंक एकदम अलग हैं, यहां आपको दोबारा संक्रमण का खतरा न के बराबर होता है. इसलिए उन लोगों को बिना डरे सामने आना चाहिए जो एक बार कोरोना को मात दे चुके हैं. आपकी एंटीबॉडी से क‍िसी की जान बच सकती है.

प्रतीकात्‍मक फोटो (Getty)
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कैसे काम करता है प्‍लाज्‍मा 

कोरोना पॉजिट‍िव मरीजों में इलाज के बाद रक्त में एंटीबॉडीज आ जाती हैं. डॉक्टरों के अनुसार अब उसके ब्लड से प्लाज्मा न‍िकालकर वो कोरोना पेशेंट को दिया जाए तो वो उसे ठीक होने में हेल्प करेगा. इस तरह ठीक हो गए पेशेंट से बीमार को देकर उसे ठीक कर सकते हैं. 

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