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एजुकेशन न्यूज़

दिल्ली की सड़कों पर चलता-फिरता स्कूल, कोरोना काल में 600 बच्चों की कर रहा हेल्प

प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)
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देश में आज भी एक बड़ा तबका ऐसा है जो प्रारंभिक शिक्षा से भी दूर है. कुछ पैसे की वजह से तो कुछ हालातों की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. हालात ये हैं कि न जाने कितनी जगह बच्चे पढ़ना चाहते हैं पर उनके माता पिता पढ़ा नहीं पाते हैं. इसी दौर में कुछ ऐसे लोग सामने आए हैं जो इस सामाजिक जिमेदारी को सही से निभाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी कड़ी में दिल्ली के वसंत कुंज में 'स्कूल ऑन व्हील्स' यानी एक ऐसा चलता फिरता स्कूल जो स्लम के बच्चों को पिछले कई सालों से शिक्षा दे रहे हैं. इस स्कूल ने कोरोना काल में अपनी जिम्मेदारी समझी और लोगों की मदद कर रहा है. 

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वसंत कुंज के इस स्लम एरिया की आबादी करीब 1200 है. यहां पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 300 से ज्यादा है. ये बच्चे पढ़ने का शौक तो रखते हैं पर हालातों की वजह से स्कूल नहीं जा पाते. ऐसे में मिस्टर पिंटो ने एक कदम बढ़ाया और इन बच्चों को श‍िक्षा की रोशनी देने का जरिया बना. बता दें कि मि. पिंटो जब दिल्ली आए तो उन्होंने इन लोगों के हालात को देखा और सोचा कि कुछ किया जाना चाहिए. 

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उनके पास तब इतना पैसा नहीं था तो लोगों से उधार लिया, शुरू में एक जगह पर स्कूल खोलने का इन्होंने कोशिश की पर बच्चों में वो उत्साह नज़र नहीं आया. इसके बाद इन्होंने स्कूल ऑन व्हील्स शुरू किया. चलती बस में चलने वाले इस स्कूल में बच्चे पढ़ाई के साथ साथ बाहर का नज़ारा भी ले सकते हैं. 
 

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प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)
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एम. पिंटो बताते हैं कि मैं जब दिल्ली आया था तो मैंने देखा कि गरीब बच्चे भीख मांग रहे हैं. यह देखकर मुझे दुख हुआ, मैं समझ नहीं पाया कि मैं क्या इनके लिए कर सकता हूं. ये मेरे लिए बड़ी दुख की बात थी. मुझे लगा कि अगर हम किसी लायक हैं और अब भी किसी के काम नहीं आ रहे हैं तो ये सही नही हैं और तब मैंने इसकी शुरुआत की. 

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इस स्कूल में दो टीचर वॉलंटियर के तौर पर पढ़ाते हैं. रोजाना चार घंटे तक अलग अलग सब्जेक्ट इन बच्चों को पढ़ाती हैं. हालांकि ये सब बेसिक ज्ञान इनके द्वारा दिया जाता है पर अगर कल को ये किसी स्कूल में एडमिशन लेना चाहे तो उसके लिए ये मददगार साबित होगा. टीचर मानते हैं कि शायद ये काम उनकी जिंदगी में इसलिए भी खास है क्योंकि इससे वो उन बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रही हैं.  इन बच्चों के माता-पिता के पास पढ़ाई के लिए सोचने के लिए समय नहीं है क्योंकि उनकी पहली जरूरत कमाना और खाना है. 

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स्कूल में पढ़ाने वाली टीचर कहती हैं कि हमें इन बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है. ये हमारे परिवार की तरह हो गए हैं, हमारे आने से पहले ये यहां पहुंच जाते हैं. वहीं बच्चे भी अब इस चलती स्कूल व व्हील्स में खूब मन लगाकर पड़ते हैं. अगर स्कूल में सीखने की बात करें तो सात साल के जुवान ने कुछ ही दिन की पढ़ाई में 20 तक पहाड़े याद कर लिए. वहीं छह साल के रहमत कविताओं के साथ मैथ को चुटकियों में हल कर लेते हैं. 

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दिल्ली-एनसीआर में करीब 6 होप बस है जो अलग अलग लोकेशन पर जाकर स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को शिक्षा देती है. ये लोग अपने स्कूल के बच्चों को सरकारी स्कूल में भी एडमिशन दिलाते हैं. इससे वो आगे की शिक्षा बेहतर तरीके से कर पाए, ये एक आस या उम्मीद है उन बच्चों के लिए जिन्होंने शायद अभी जिंदगी को समझा नहीं है और इसलिए उनके बेहतर कल के लिए आज स्कूल ऑन व्हील्स का प्रयास जारी है. (Report: Varun Sinha)

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