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एजुकेशन न्यूज़

इस्लामिक स्टडीज के 'हिंदू टॉपर' से जानिए, दूसरे धर्मों को जानना क्यों जरूरी

Shubham yadav Hindu Topper of Islamic Studies
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ऐसा पहली बार है जब एक ग़ैर मुस्लिम ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के इस्लामिक स्टडीज़ के एंट्रेंस एग्ज़ाम में टॉप किया है. 21 साल शुभम ने ये कर दिखाया है. डीयू के रामानुजम कॉलेज से फिलॉसफी में स्नातक शुभम सभी धर्मों के बारे में क्या सोचते हैं, वो क्यों दूसरे धर्मों के बारे में पढ़ाई में रुचि ले रहे हैं. आइए जानें. 

Representational Image (gettyimages)
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मूल रूप से अलवर राजस्थान की मिडिल क्लास फैमिली से आने वाले शुभम यादव ने 12वीं तक साइंस और गणित की पढ़ाई की है. इसके बाद दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की. आजतक रेडियो से बातचीत में शुभम ने कहा कि मेरे लिए इस्लामिक स्टडीज लेने का सफर काफी लंबा है. वो कहते हैं कि दूसरे धर्मों को पढ़ने से आप दोनों धर्मों समानता ढूंढ़ सकते हैं. मेरी प्राथमिकता ये है कि दोनों का अध्ययन करके ऐसी समानता ढूंढ़नी है जो कि हम दोनों मानें कि हम अलग नहीं है, हम दोनों एक जैसे हैं, कोई तीसरा है जो हममें भेद करता है. 

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शुभम कहते हैं कि पहले मैं गरीब को ही उत्पीड़ित (oppressed) समझता था. जब मैं फिलॉस्फी में पढ़ा तो मुझे समझ आया कि जिसे मैं उत्पीड़न समझता वो एकदम अलग था. मेरी शुरुआत दलित समाज के बारे में बाबा साहेब को पढ़ने से हुई. फिर मैंने रवींद्र नाथ टैगोर को पढ़ा.

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उनका कहना है कि हम जिस समाज में रहते हैं वो पीपल सेंट्र‍िक सोसायटी है. इसमें मैंने महात्मा गांधी को पढ़ा. उनकी किताब हिंद स्वराज को मैं तो मानता हूं हर इंडियन को पढ़नी चाहिए. हिंद स्वराज एक तरह का इंटरव्यू है जिसमें उनसे एक एडिटर कई तरह के सवाल पूछते हैं. 

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जैसे गांधी जी बताते हैं कि डॉक्टर का रोल और लॉयर का रोल. उसमें वो लॉयर के बारे में बताते हैं कि आपसी मतभेद में जब आप किसी तीसरे को शामिल करोगे तो वो अपना स्वार्थ साधेगा. एक बंदा जो लॉयर है वो खुद को ऐसे एक्स्प्लेन करता है. तब मेरी रुचि महात्मा गांधी को पढ़ने में बढ़ी. 

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गांधी जी ने गाय के बारे में कहा कि अगर हिंदू चाहते हैं कि मुसलमान उनकी गाय की इज्जत करें तो उन्हें मुसलमानों के धार्मिक भावनाओं, उनकी मस्ज‍िदों की इज्जत करनी पड़ेगी. वो दो तरफा सेंटीमेंट की बात करते हैं.

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हिंदू मुसलमान के बारे में जो उन्होंने बात कही इसने मेरे लिए सीधे मैं कहूंगा कि इंडिया के लिए इसने मेरी नजर खोली. उन्होंने कहा कि हिंदू-मुसलमान दो भाई हैं जिनके माता पिता जी गुजर चुके हैं. ऐसे में या तो आपस में बैठकर बात कर लें या किसी तीसरे को लेकर आएं. जैसे ही वो तीसरे को लाते हैं वहां से भाईचारे की हार है.

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तब से मेरे मन में आया कि हमारे बीच में जो भेद है वो हिंदू-मुस्ल‍िम का नहीं किसी तीसरी पार्टी का है. शशि थरूर की किताब ने भी इसमें ब्रिटिशर्स को लेकर लिखा है कि वो तीसरी पार्टी हैं. जैसे आजकल आश्रम सीरीज में दिखाया गया स्वघोषित गॉडमैन, कि वो कैसे समाज में जगह बनाते हैं. कोई भी सोसायटी का सेक्शन जिसे सोसायटी से सोल्यूशन नहीं मिल रहा, वो उत्पीड़न का शिकार है, वो किसी ऐसे के पास जाएगा जो या तो लीगली सोल्यूशन दे दे या उसे किसी चमत्कार के जरिये मिल जाए.

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इस्लाम को पढ़ने की शुरुआत मेरी दोस्त के जरिये हुई. वो ग्लोबल इस्लामिक पॉलिटिक्स बाहर पढ़ रही हैं. तब उनके साथ मेरा पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ. तब मुझे पता चला कि पूरी दुनिया में जो इस्लाम को दिखाया जाता है, इस्लामोफोबिया दिखाया जाता है, वो बिल्कुल गलत है. तब मेरे जो चीजें समझ में आईं जो कि मैं लोगों को भी बताता हूं कि इस्लाम दुनिया में सबसे ज्यादा गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया और व्याख्यायित (Interpretted) धर्म है.

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जो कुरान में लिखा है शरीया में लिखा है वो जो दिखाया जाता है वो सबसे अलग है. उसकी इतनी रेडिकल इमेज बन गई है, जबकि ऐसी इमेज नहीं है. शुभम कहते हैं कि लोगों को लगता है कि मैंने इस्लाम की बहुत स्टडी की, लेकिन बता दूं कि इसी तैयारी के दौरान इस्लाम की हिस्ट्री पढ़ी. फिलॉस्फी की पढ़ाई की, फेमिनिज्म पढ़ा, सउदी अरेबिया की खालिद बेद्यून ने इस्लामोफोबिया पर लिखा है. उनको पढ़ेंगे तो पाएंगे कि जैसा कि हम समझते हैं कि इस्लाम की शुरुआत अरब देशों से हुई है. इस्लाम इज इक्वल टू गल्फ और गल्फ इज इक्वल टू इस्लाम, लेकिन सऊदी अरब 1523 में बना है, सऊदी अरेबिया एक साउद ट्राइब थी, साउद उसकी हेड थी. प्राब्लम वहां से शुरू हुई. साउद थे धार्मिक. वहां की जो पॉलिटिक्स थी, वो पॉलिटिकल पॉवर वाले को रिलीजियस पॉवर मिलती थी. वहां से इस्लाम इतना बदलकर आ गया है. पहले जब तक मैंने नहीं पढ़ा था तो लगता था कि ये इस्लाम की गलती है, लेकिन नहीं ये इस्लाम की गलती नहीं है. गलती उनकी है जिन्होंने इसे गलत तरीके से पेश किया. 

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दूसरे धर्मों को पढ़ने के बारे में शुभम कहते हैं कि मैं न तो रेडिकल हिंदू हूं, न इस्लाम में रिलीजियस स्टडी में जा रहा हूं. मैं इस्लामिक स्टडी करना चाहता हूं. मैं तो चाहता हूं कि जब मैं एडमिनिस्ट्रेशन में जाऊं तो दोनों के बीच के मतभेद को दूर करने में मदद कर सकूं. दूसरे धर्मों के बारे में पढ़ना रिलीजन को पढ़ना नहीं बल्क‍ि मैं तो उसकी पूरी फिलॉस्फी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पढ़ने पर यकीन करता हूं. आप जब देखेंगे कि अगर हम इस्लाम को पढ़ेंगे कि तब आप जान पाएंगे कि आज जो इस्लाम है, वो इस जगह पर क्यों है. अगर इस्लाम की हिस्ट्री नहीं पढ़ेंगे तो हिंदुत्व भी कल को ऐसे ही हाल पर पाएंगे. आप मानें न मानें दुनिया में कई जगह हिंदुत्व को लेकर ऐसी रेडिकल इमेज बन रही है.

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