कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बीच कारगिल जिले के एक छोटे से गांव में किस तरह स्कूल काम कर रहे हैं, यह जानकार हर कोई प्रेरणा पा सकता है. स्कूल को बगैर किसी सरकारी सहायता के चलाया जा रहा है जिसमें कोरोना सावधानियों का पूरी तरह पालन करते हुए क्लासेज़ आयोजित की जा रही हैं.
द्रास अनुमंडल के निंगूर भीमबत गांव के स्वयंसेवकों और सरकारी शिक्षकों द्वारा चलाई जा रही सामुदायिक कक्षाएं, ग्राम समिति के सहयोग से जारी हैं. गांव के बच्चों को कोरोना के खतरे से दूर रखते हुए शिक्षक पूरी लगन से हर दिन पाठ पढ़ा रहे हैं.
लद्दाख क्षेत्र के करगिल जिले का एक छोटा सा गांव नूर बुक द्रास इलाके में पड़ता है. गांव की आबादी करीब 4000 है और यहां के स्थानीय लोगों और इलाके के सरकारी शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाने की एक अनोखी पहल शुरू कर दी है.
यहां पर कोरोना वायरस लॉकडाउन के बावजूद कम्युनिटी स्कूल चलाया जा रहा है. स्कूल में गांव के बच्चे सुबह पहुंचते हैं, हर एक बच्चे का तापमान देखा जाता है. इसके बाद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बच्चों को कुछ-कुछ दूरी पर बैठाया जाता है.
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए तय किए गए निर्देशों के अनुसार ही बच्चों को पढ़ाया जाता है. इसके लिए बच्चे एक खुले मैदान में एक दूसरे के बीच 2 गज की दूरी रखकर बिठाए और पढ़ाए जाते हैं.
इस पहल से जहां बच्चों की पढ़ाई हो रही है वहीं पर घर के भीतर बैठकर परेशान हो रहे स्कूली छात्र भी किसी हद तक खुशी महसूस कर रहे हैं. इस गांव से प्रेरणा लेकर दूसरे गांवों में भी इस तरह के कम्युनिटी क्लासेस शुरू हो रहे हैं.
इस खास स्कूल के लिए किसी कमरे या चार दीवारी की भी जरूरत नहीं है. बच्चों को खुली जगह पर दरी बिछाकर बैठाया जाता है और ब्लैक बोर्ड भी नज़दीक ही खड़ा कर दिया जाता है. बच्चों और शिक्षकों के लिए पीने के पानी की भी उचित व्यवस्था रहती है.