तमाम शोधों के मुताबिक विटामिन डी की कमी दुनिया भर में लगभग 50% आबादी को प्रभावित करती है. दुनिया भर में सभी जातियों और आयु समूहों में अनुमानित 1 बिलियन लोगों में विटामिन डी की कमी (वीडीडी) है. वहीं इंडिया जिसको कंट्री ऑफ सन कहा जाता है, यानी सूरज का देश. सूरज के देश में भी लोगों में विटामिन डी की कमी के मामले सामने आ रहे हैं. कोरोना के दौर में बदली लाइफ स्टाइल में इसके मामले और बढ़ गए हैं. लोगों में हड्डी की समस्याओं से लेकर अजन्मे बच्चों तक को ये कमी नुकसान पहुंचा रही है. डॉक्टर बताते हैं कि विटामिन-डी की कमी को इग्नोर नहीं करना चाहिए. साथ ही साथ इसका इनटेक कितना लेना है, ये भी खुद से तय नहीं करना चाहिए. आइए जानते हैं विशेषज्ञों से इस विषय पर राय.
सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा की वरिष्ठ स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ निधि कहती हैं कि भारत सन लाइट यानी सूरज का देश है, लेकिन यहां भी बीते कई सालों से विटामिन डी की कमी एक मुख्य समस्या है. कोरोना के दौर में विटामिन डी डिफिशिएंसी के मामले बढ़े हैं. हालांकि अब सरकार इस पर जोर दे रही है, फार्मा इंडस्ट्री में भी इसका जोर है. देश में पहले से ही करीब 50 से 60 पर्सेंट इंडियन वुमन एनिमिक हैं. वजह इंडियन वुमन के खाने में कैल्शियम कम है. उस पर विटामिन डी की कमी से गर्भकाल में महिलाओं के साथ साथ कोख में पल रहे बच्चों में भी कई दिक्कतें देखी गई हैं.
डॉ निधि कहती हैं कि पहले गांव की औरतों में विटामिन डी का रेशियो ठीक रहता था, अब गांव से आने वाली मरीजों के भी वैसे ही हाल है. गांवों में दूध पीने वाली मांएं बहुत कम हैं. वहीं सरकार आयरन कैल्शियम देती हैं जिसे ज्यादातर महिलाएं खाती नहीं. कई शोधों में ऐसा पाया गया है कि अगर महिलाओं में विटामिन डी की कमी भी होती है तो पेट में पल रहे बच्चे में कमजोरी आती है. उसकी हड्डियां कमजोर होती हैं, साथ ही बच्चों में कंजनाइटिल एबनॉर्मिलिटी, हड्डियों की दिक्कत और लर्निंग डिफिशिएंसी भी होती है.
एलबीएस अस्पताल दिल्न्ली के हड्डी रोग विभाग के हेड डॉ संजीव गंभीर कहते हैं कि विटामिन डी की कमी के मामले कोविड की सेकेंड वेव के बाद बढ़े हैं. ऐसे मरीज शरीर में दर्द और हड्डियों में दर्द की शिकायत करते हैं. जांच के बाद लगभग 80 से 90 प्रतिशत लोगों को विटामिन डी की कमी पाई जाती है. डॉ संजीव कहते हैं कि इस दौरान सूडो फ्रैक्चर के मामले भी देखने को मिल रहे हैं, जिसमें मरीज की हड्डी कहीं से गल जाती है जो उन्हें फ्रैक्चर जैसा पेन देती है. इसमें भी विटामिन डी का रोल देखा गया है.
एमसीडी दिल्ली के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ ग्लैडबिन त्यागी कहते हैं कि विटामिन डी की कमी के मामलों के बीच 100 में एक मरीज ऐसा भी आता है जिनकी बॉडी में विटामिन डी की अधिकता हो जाती है. इसमें जी मिचलाना, उल्टी और मेंटल डिस्टर्बेंस भी ऑब्जर्व किया गया. इसमें टॉक्सिसिटी को मूत्र के जरिये निकलने में 15 दिन लग जाते हैं. इसलिए मरीजों को सलाह है कि अगर उनमें विटामिन डी की कमी जांच में पाई जाती है तो वो 12 वीक तक 60 हजार एंप्यूल ले सकते हैं. इस मामले में डॉक्टर से राय लेकर ही दवा लेनी चाहिए.
बता दें कि विटामिन डी कैल्शियम का पूरक है. ऐसे में विटामिन डी की कमी से जूझ रहे मरीजों में कैल्शियम की कमी हो जाती है. खासकर युवा वर्ग यहां तक कि पांच साल से बड़ी उम्र के बच्चों में भी इन दिनों दिनों विटामिन की कमी देखने को मिल रही है. डॉ ग्लैडबिन कहते हैं कि युवाओं में जोड़ों के दर्द के साथ जो अस्पताल पहुंच रहे हैं, इसमें से 80 से 90 प्रतिशत मरीजों में विटामिन डी और उसकी वजह से कैल्शियम कमी पाई जा रही है.
विटामिन डी की कमी दूर करने के लिए ये करें
विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए डेरी प्रोडक्ट जैसे पनीर, दही, लस्सी आदि का सेवन करें. इनमें विटामिन-डी भरपूर मात्रा में होता है. अंडे का सेवन भी शरीर के लिए लाभदायक है. अंडे के पीले भाग (ज़र्दी) में विटामिन-डी होता है. अंडे उबालकर या ऑमलेट बनाकर भी आहार के रूप में ले सकते हैं. फैटी फिश के सेवन से भी पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी प्राप्त होता है. यहां सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन फिश का सेवन कर सकते हैं.
इसके अलावा सुबह के समय धूप ज़रूर लें, क्योंकि सूर्य की धूप प्राकृतिक विटामिन-डी के निर्माण का सबसे अच्छा स्रोत है. सुबह रोज़ाना 10-15 मिनट धूप लें. साथ ही हड्डियों को मजबूत रखने के लिए व्यायाम को लाइफस्टाइल में शामिल करें. समय समय पर अपना विटामिन डी चेक कराएं, तभी डॉक्टर की देखरेख में विटामिन-डी सप्लीमेंट, इंजेक्शन, दैनिक या सप्ताहिक दवाइयां भी ली जा सकती हैं.