देश में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या को देखते हुए सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दीवाली पर आतिशबाजी को लेकर गंभीरता से सोच रही है. इसी बीच हर तरफ ग्रीन पटाखों की चर्चा हो रही है. आइए जानते हैं क्या होते हैं ग्रीन पटाखे, ये कैसे नॉर्मल पटाखे से अलग हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों और आतिशबाजी की कुछ शर्तों पर छूट दी है. जैसे कि त्योहार की रात महज दो घंटे के लिए रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाए जा सकेंगे. इसके साथ कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि त्योहारों में कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे जलाए और बेचे जाएं.
बता दें कि ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं. ये आवाज से लेकर दिखने तक पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है. नीरी ने ग्रीन पटाखों पर जनवरी में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के उस बयान के बाद शोध शुरू किया था जिसमें उन्होंने इसकी ज़रूरत की बात कही थी.
सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं.नीरी के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू के मुताबिक इनसे हानिकारक गैसें बेहद कम यानी सामान्य से 50 फीसदी तक कम मात्रा में निकलेंगी. इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा, ऐसा नहीं है लेकिन ये उनसे कम हानिकारक हैं.
डॉक्टर साधना ने BBC हिंदी को बताया कि सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था. ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं. नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे.
डॉक्टर साधना ने बताया कि संस्थान ने ऐसे फॉर्मूले विकसित किए हैं जिसके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी. नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं.
चार तरह के हैं ग्रीन पटाखे
सेफ़ वाटर रिलीज़र: ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. सेफ़ वाटर रिलीज़र नाम नीरी ने दिया है. पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है.
STAR क्रैकर: STAR क्रैकर का फुल फॉर्म है सेफ़ थर्माइट क्रैकर. इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं. इसके लिए ख़ास तरह के कैमिकल का इस्तेमाल होता है.
SAFAL पटाखे: इन पटाखों में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है. इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है.
अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये अच्छी खुशबू भी देते हैं.
ग्रीन पटाखे फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में उपलब्ध नहीं हैं. यह नीरी की खोज है. कहा जा रहा है इसे बाज़ार में आने में अभी वक्त लगेगा.