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एजुकेशन न्यूज़

बार-बार पीरियड्स की समस्याएं कहीं अर्ली मेनोपॉज तो नहीं? ऐसे पहचानें लक्षण

प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
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बीते कुछ सालों में हुए अध्ययनों में सामने आया है कि पूरी दुनिया में अर्ली मेनोपॉज के केसेज बढ़े हैं. यह टर्म हाल के दिनों में काफी प्रचलित हुआ है. मेडिकल साइंस के अनुसार जब 45 वर्ष की आयु से पहले एक महिला की माहवारी बंद हो जाती है, इसे अर्ली मेनोपॉज माना जाता है. आइए जानते हैं कि कैसे सामान्य माहवारी समस्याओं से अलग पहचान सकते हैं. इस दौरान कौन से टेस्ट कराने होते हैं, कब डॉक्टर से सलाह लेनी है. 

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सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा की सीनियर प्रोफेसर स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ निध‍ि ने aajtak.in से बातचीत में विस्तार से इस समस्या के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि आजकल बदलती लाइफस्टाइल और अन्य कारकों के चलते महिलाओं में प्री मेच्योर ओवरियन फेलियर ज्यादा देखा जा रहा है, जिससे उनमें कम उम्र में मासिक चक्र बंद हो जाता है. लेकिन इसका निदान करना बहुत जरूरी है. 

 

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डॉ निध‍ि बताती हैं कि एक महिला में 400 से 700 अंडे होते हैं. इसमें हरेक महीने एक अंडा निकलता है, लेकिन आजकल प्यूबरटी कम उम्र से शुरू हो जाती है, इससे अंडे खत्म होने की एज भी जल्दी आ जाती है. अब जब जल्दी अंडे बन रहे हैं, तो आगे उनकी लाइफ साइकिल भी अर्ली एज में खत्म होने की संभावना रहती है. इस दौरान अगर अर्ली मेनोपॉज का पता चलता है तो महिलाओं की फिटनेस और स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.  
 

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इसके अलावा वो कहती हैं कि आजकल जिस तरह से लाइफस्टाइल चेंजेज हो रहे हैं, इससे पीसीओडी की समस्या भी आम हो गई है. साथ ही अब गर्भ में बच्चा रोकने के लिए आईवीएफ वगैरह का चलन बढ़ा है, इसमें महिलाओं को जो ड्रग्स दिए जाते हैं उसमें एक साइकिल में ज्यादा अंडे बनते हैं. इससे भी जब अंडे खत्म हो जाते हैं तो अर्ली मेनोपॉज होता है. 

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इन टेस्ट से लगाते हैं पता 

डॉ निध‍ि कहती हैं कि इस समस्या को लेकर दो मुख्य टेस्ट कराना जरूरी होता है. इसके लिए FSH (Follicle-stimulating hormone टेस्ट कराया जाता है. अगर FSH level 40 से ऊपर होता है तो इसे अर्ली मेनोपॉज का सिंप्टम माना जाता है. इसके अलावा Anti-Müllerian hormone (AMH)टेस्ट इसमें मदद करता है. अगर एएमच लेवल नॉर्मल से कम हो जाता है तो इसे ओवरियन फेलियर माना जाता है. 

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इन लक्षणों को नजरंदाज न करें 

नॉर्मल और अर्ली एज में मेनोपॉज के लक्षण बहुत अलग अलग नहीं होते हैं. एक्चुअल नॉर्मल मेनोपॉज में इंटरवल बढ़ जाता है, इसमें माहवारी का चक्र तीन या चार या छह महीने में आता है. अगर लगातार एक साल नहीं होता है तो इसे ही मेनोपॉज माना जाता है. अगर माहवारी जल्दी या देर से आती है, या किसी तरह का मासिक चक्र में गैप आता है तो इसे नजरंदाज नहीं करना चाहिए. 

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ये होता है नुकसान 

अक्सर देखा जाता है कि मेनोपॉज के बाद स्त्रियों के शरीर में फीमेल हॉर्मोन कहे जाने वाले एस्ट्रोजन की कमी देखी जाती है. ये हार्मोन शरीर की हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है. इसकी मात्रा घटने के कारण हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव होने लगता है. इससे वे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि मामूली चोट लगने पर भी टूट सकती हैं. मेनोपॉज के बाद हॉर्मोन संबंधी असंतुलन की वजह से त्वचा पर तेजी से झुर्रियां पड़ने लगती हैं. 

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क्या अर्ली मेनोपॉज से बच सकती हैं महिलाएं 

डॉ निध‍ि कहती हैं कि मेनोपॉज शरीर के अंदर होने वाली नेचुरल प्रोसेस है. इसे पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता. अगर असमय ऐसे लक्षण नजर आएं तो स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें. जरूरत महसूस होने पर दवाओं और इंजेक्शन की मदद से हॉर्मोन थेरेपी दी जाती है. लेकिन इसकी मदद से अर्ली मेनोपॉज को कुछ ही दिनों तक टाला जा सकता है पर वह इसका स्थायी इलाज नहीं है.  इसके अलावा संतुलित खानपान, व्यायाम, योग और नियमित दिनचर्या, मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज को जिंदगी का हिस्सा बनाकर इससे बचाव किया जा सकता है. 

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