ChatGPT ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर से विकसित एक बड़ा लैंग्वेज मॉडल है. इसने कुछ दिनों पहले एजुकेशन सेक्टर में भी दबे पांव एंट्री ले ली है. चैट जीपीटी के शिक्षा जगत पर पड़ने वाले प्रभाव पर शिक्षाविदों की दो तरह की राय सामने आ रही है.
एक पक्ष का कहना है कि ये छात्रों के लिए सीखने और इंटरैक्टिव लर्निंग का बड़ा प्लेटफॉर्म है. ये शिक्षा जगत में क्रांति लाने के लिए तैयार है. वहीं दूसरा पक्ष इसके कई नुकसान गिना रहा है, जैसे कुछ संस्थानों ने इसके इस्तेमाल में यह कहकर रोक लगा दी थी कि इससे छात्रों की रचनात्मक क्षमता कम होगी. आईआईटी दिल्ली के पूर्व निदेशक ने aajtak.in से कहा कि हमेशा हर नई तकनीक शिक्षा क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी बदलाव लाई है. औद्योगिक क्रांतियों की तरह ही शैक्षिक क्षेत्र में भी नई तकनीक हमेशा बेहतर प्रतिमान स्थापित कर रही है.
इसे इस तरह से समझें-
शिक्षा 1.0- सबसे पहले टाइपराइटर जैसी यांत्रिक प्रणाली आई.
शिक्षा 2.0- बिजली, कंप्यूटर और कैलकुलेटर जब पहली बार उपयोग में आए.
शिक्षा 3.0- कंप्यूटर और इंटरनेट के व्यापक उपयोग ने बहुत कुछ बदल डाला.
शिक्षा 4.0- इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, आईसीटी टूल, डिजिटलीकरण सामने आए.
उदाहरण के लिए प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने बड़े पैमाने पर पुस्तकों का उत्पादन करना संभव बना दिया जिससे शिक्षा आम जनता के लिए अधिक सुलभ हो गई. कंप्यूटर और इंटरनेट के आगमन के बाद अब कहीं भी कभी भी और ऑन-डिमांड एजुकेशन हर किसी के लिए उपलब्ध है.
प्रो राव कहते हैं कि आज हम एजुकेशन 5.0 एरा में प्रवेश कर रहे हैं जब हमारे साथ चैटजीपीटी, मिडजर्नी, स्टेबल डिफ्यूजन, डीएएल-ई जैसे प्लेटफॉर्म हैं. जिन तकनीकों को अब तक ज्ञान के प्रसार और संचय के लिए सहायक उपकरण के रूप में देखा गया है, उन्होंने हमारे रचनात्मक स्थानों में अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है. जिसे अब तक स्पेशल ह्यूमन डोमेन में माना जाता है. एआई उपकरण, परीक्षण के अपने बीटा चरणों में ही ऐसी मूल कलाकृतियां बना रहे हैं जिनका आसानी से इंसानों की रचना से भेद नहीं किया जा पा रहा.
ये तकनीकें शोध पत्र लिखने से लेकर प्रवेश के लिए ली जाने वाली कुछ सबसे कठिन प्रवेश परीक्षाओं को भी पास कर रहे हैं. इसलिए मशीनों के साथ प्रतिस्पर्धा एक व्यर्थ कवायद है क्योंकि मशीनें एक अरब गुना तेजी से सीख सकती हैं. साथ ही ये बदलते समय के लिए बहुत तेजी से अनुकूल हो सकती हैं और प्रतिक्रिया में हम इंसानों से कई गुना आगे हैं. हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम इन तकनीकों को अपनाएं और अपनी रचनात्मकता और उत्पादकता को सुपरचार्ज करने के लिए इनका उपयोग सहायक के रूप में करें.
आईआईएम उदयपुर की फाइनेंस एंड एकाउंटिंग की फैकल्टी प्रोफेसर मौमिता तिवारी का कहना है कि ChatGpt का एक लाभ प्रशिक्षकों और छात्रों के किेए शैक्षिक सामग्री का बड़े पैमाने पर उत्पादन से है, क्योंकि इसमें भाषा की गहरी समझ की आवश्यकता नहीं होती है. यह टर्न अराउंड टाइम को भी कम करता है. हालांकि ChatGpt पर बड़े पैमाने पर उत्पादित सामग्री की गुणवत्ता का आंकलन करना संभव नहीं है. इसके लिए हमें समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी जो की लागत को प्रभावित करेगा. ChatGpt की एक और चुनौती अमीर और वंचित वर्ग के मध्य बढ़ा हुआ विभाजन हो सकता है.
क्या समस्याएं गिना रहे शिक्षाविद
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट काशीपुर के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एंड सिस्टम्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर ने कहा कि डॉ वेंकटराघवन कृष्णास्वामी चैट जीपीटी लगातार विकसित हो रहा है. चैट जीपीटी बहुमुखी है और गंभीरता से पाठ्य सामग्री का विश्लेषण कर सकता है और बुद्धिमान प्रतिक्रियाएं दे सकता है. शिक्षा और सीखने की बात आने पर चैट जीपीटी के फायदे और नुकसान दोनों हैं. फायदों पर, इसका उपयोग नए विषयों के बारे में सीखने के लिए एक त्वरित संदर्भ के रूप में किया जा सकता है.
इससे ऐसे स्रोत ढूंढे जा सकते हैं जहां आप रुचि के विषयों के बारे में सीखते हैं, या किसी दिए गए विषय में किसी की दक्षता का मूल्यांकन करने में सहायता करते हैं. इसके विपरीत, चैट जीपीटी से गलत या अधूरी जानकारी सीखने, अत्यधिक निर्भर होने, या असाइनमेंट या परीक्षाओं के लिए सामग्री की चोरी करने का जोखिम हमेशा बना रहता है. किसी भी नई तकनीक की तरह, चैट जीपीटी की अपनी खूबियां और खामियां हैं और समय के साथ इसमें सुधार होगा, लेकिन निस्संदेह यह संवादी मॉडल में एक महत्वपूर्ण तकनीकी छलांग है.
भले ही यह तकनीक कई मायनों में वरदान साबित होने की बात हो रही है, लेकिन एक पक्ष इस बात को लेकर चिंतित है कि यह कैसे विपरीत ढंग से रिजल्ट देगी. भले ही चैट जीपीटी छात्रों के ज्ञान को बढ़ाने में मदद करता है, लेकिन इससे उनके और उनके शिक्षकों के बीच संबंध बहुत कमजोर हो सकते हैं.
एक और संभावित नुकसान यह भी बताया जा रहा है कि यह छात्रों को तत्काल समाधान प्रदान करके उन्हें विचार-मंथन से रोकेगा. इस तरह से चैट जीपीटी उनकी रचनात्मकता को सीमित कर सकता है. बंगलुरु के कुछ संस्थानों ने इसके इस्तेमाल पर रोक भी लगाई है. संस्थान का तर्क है कि इसके इस्तेमाल से छात्र अपने असाइनमेंट बिना किसी ब्रेन स्टॉर्मिंग के कर लेते हैं.