Agneepath Rally for Nepali Youth: नेपाल के गोरखा जवान भारतीय सेना में भर्ती के लिये तैयारी में जुट गए है. उन्हें अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीर बनने में कोई दिक्कत नही है क्योंकि गोरखा के नौजवानों के लिये भारतीय सेना में भर्ती होना आर्थिक से ज्यादा समाजिक प्रतिष्ठा का सवाल होता है. जानकारों के अनुसार अग्निपथ योजना नेपाली नौजवानों के लिये फायदेमंद है. अग्निवीरों की भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इसमें भारतीय मूल के साथ नेपाली गोरखा भी आवेदन कर सकते हैं. सेना ने भर्ती के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया है. पूर्व की भांति नेपाली गोरखाओं के लिए मौके रखे गए हैं.
नेपाल में अग्निपथ योजना की पहली भर्ती अगस्त के अंत में शुरू होने की संभावना है, लेकिन नौजवानों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. नेपालियों के लिए भारतीय सेना में भर्ती के नियम भारतीय युवकों के समान ही होंगे. उन्हें भी सेना में सिर्फ चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा और उसमें से महज 25 प्रतिशत को परमानेंट किया जाएगा.
नेपाल से गोरखाओं की भर्ती पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित दो गोरखा भर्ती डिपो (जीआरडी) के जरिए की जाती है. नेपाल में रहने वाले गोरखाओं के लिए वार्षिक पेंशन लगभग 4,000 करोड़ रुपये है. सेवारत सैनिक भी हर साल करीब 1,000 करोड़ रुपये अपने घर भेजते हैं.
नेपाल आर्मी से रिटायर्ड मेजर जनरल बिनोज बस्न्यात कहते हैं कि नेपाल के गोरखा तीन वजह से भारतीय सेना में जाते हैं. व्यक्तिगत सम्मान, परिवार और आसपास गांव वाले सेना में जाते रहे हैं जो एक परंपरा है और तीसरी वजह भारतीय सेना में जाना सामाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठा के हिसाब से एक अच्छा अवसर है.
अग्निपथ स्कीम लागू होने से भी यह तीनों ऐसे ही बने रहेंगे और इससे नेपाल के गोरखा की भारतीय सेना में जाने की रुचि में कोई अंतर नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि कोरोना की वजह से वैसे भी युवाओं का ज्यादा मौका नहीं मिला है और महंगाई बहुत बढ़ गई है तो युवा इस मौके को नहीं छोड़ेंगे.
नेपाल में रक्षा और विदेश मामलों के जानकार अरूण सुवेदी कहते हैं कि यह स्कीम नेपाल के गोरखा को आकर्षित कर सकती है. चार साल भारतीय सेना में रहने के बाद जब वह घर आएंगे तो अधिकतम 25 साल के होंगे और नेपाल की करेंसी के हिसाब से उनके पास 18 लाख रुपये (इंडियन 11.7 लाख रुपये) की बचत होगी.
भारतीय सेना उनके लिए वैदेशिक रोजगार का साधन भी है और दूसरे देशों में भी जब युवा जाते हैं तो वह 4-5 साल काम कर लौट आते हैं. 18-20 लाख रुपये बैंक बैलेंस से वह अपने देश आकर कुछ बिजनेस कर सकते हैं. दुबई, सिंगापुर सहित कई देशों की पुलिस में भी नेपाल के युवा जाते हैं. भारतीय सेना में चार साल का अनुभव लेने के बाद उन्हें वहां बेहतर मौका मिल सकता है.
भारतीय सेना में तीसरी पीढ़ी के रूप में योगदान देने वाले और नेशनल डिफेंस अकादमी के पास आउट गोरखा के रिटायर्ड मेजर-जनरल गोपाल गुरुंग ने कहा कि भारतीय सेना में भर्ती के वेतन, पेंशन और अन्य लाभ नेपाल में बहुत मायने रखता है. अग्निपथ के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट होने में कुछ समय लग सकता है. वे बताते हैं कि नेपाली गोरखा न केवल पैसे के लिए बल्कि इसलिए भी सेना में जाते हैं कि यह उनके लिए एक पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय भी है और पीढी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा भी. गुरूंग के दादा भारतीय सेना में जूनियर कमिशन्ड अफिसर थे, जबकि पिता आर्मी में ही कैप्टन के पद से रिटायर्ड हुए थे.
गौरतलब है कि भारतीय सेना में गोरखाओं की 7 रेजिमेंट और 39 बटालियन हैं. 6 रेजिमेंट आजादी के पहले से ही चली आ रही हैं. इनमें करीब 32 हजार गोरखा जवान कार्यरत हैं. आकलन है कि 75 फीसदी गोरखा नेपाली मूल के हैं, जबकि शेष भारतीय हैं.