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कहानी उम्मीद की: कोटा में हो रही थी घुटन, सारे डर छोड़कर लौटा तो पायलट बना, अब सालाना सैलरी 1 करोड़ से ज्यादा

दीपक कहते हैं कि कोटा में बच्चों के कमरे में एक पंखा ही होता है, जब वो आत्महत्या करने की सोचता है तो सबसे पहले उसे बस यही नजर आता है. स्प्रिंग लोडेड पंखों से सुसाइड केस थोड़े कम हो जाएंगे लेकिन जब तक परिवार, दोस्त या शिक्षक उनका साथ नहीं देंगे तब तक यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी.

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कोटा से वापस आने के बाद दीपक ने पायलट बनने का सपना देखा था
कोटा से वापस आने के बाद दीपक ने पायलट बनने का सपना देखा था

राजस्थान का 'कोचिंग हब' कोटा इन दिनों स्टूडेंट सुसाइड के लिए बदनाम हो रहा है. कल यानी बुधवार (13 सितंबर 2023) को भी एक NEET की तैयारी कर रही 16 साल की स्टूडेंट ने आत्महत्या कर ली. इस साल कोटा में ये 25वीं छात्र आत्महत्या है. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि एक जिद, जुनून और जज्बा लेकर कोटा पहुंचने वाले छात्रों पर चौतरफा प्रेशर होता है जिसे वो डील नहीं कर पाते. लेकिन इस घुप्प अंधेरे में दीपक जैसे छात्र एक उम्मीद की रौशनी हैं, जिन्होंने इस प्रेशर को डील किया और बुझने के बजाय आसमां तक चमक गए. 

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दीपक भी कोटा में JEE की तैयारी को गए थे. लेकिन कुछ दिनों में उनका दम घुटने लगा. उन्हें भी अपने किसान पिता की आर्थिक स्थिति याद थी, परिवार की उम्मीद से भरी वो आंखें याद थीं जिनमें उनके लिए सफलता का विश्वास था. बावजूद इसके दीपक ने कोटा के हालातों से हार नहीं मानी. असफलता के बाद भी परिवार की उम्मीद भरी आंखों ने कुछ कर दिखाने का जज्बा जगाए रखा. मानस‍िक रूप से परेशान हो गए इस लड़के ने कैसे कोटा छोड़ा और दूसरे फील्ड में जाने की सोची, आइए- जानते हैं दीपक की कहानी जो असल में उम्मीद की कहानी है जिससे हम सबको सीखना चाहिए. 

10वीं के बाद पकड़ा 'कोटा का रास्ता'

हरियाणा के रेवाड़ी जिले के साबन गांव के रहने वाले दीपक राठी के पिता एक आम किसान हैं जिनकी सालाना कमाई आज भी 3 लाख रुपये सालाना है. दसवीं के बाद उन्होंने भी बेटे को इंजीनियर बनने के लिए पैसे का जुगाड़ करके उसे कोटा भेजा. दीपक भी वहां पूरे मन से तैयारी करने पहुंच गए. अपना कोटा का अनुभव साझा करते हुए दीपक बताते हैं कि साल 2011 में 10वीं क्लास के बाद मैं कोटा पहुंचा. दोस्तों की सलाह और 10वीं में अच्छे नंबर आने पर वो आईआईटी क्रैक करने का सपना लेकर यहां पहुंचे थे. उस वक्त उम्र बहुत छोटी थी. वहां तैयारी शुरू की और 12वीं पास करने के बाद JEE Main की तैयारी में जुट गया. 

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कमरे में दम घुटने लगा था 
दीपक कहते हैं कि मैं जेईई मेन करके आईआईटी में दाख‍िले के लिए एडवांस्ड परीक्षा निकालना चाहता था. घर से बाहर निकलने के बाद मुझे लगा था कि अब कोटा में पढ़ाई का अच्छा माहौल मिलेगा. लेकिन उसी एक छोटे से कमरे में रहना, और मेस के खराब खाने ने मेरे जेहन में कोटा की उन तस्वीरों को मिटा दिया था जिनके बारे में पहले मैं सोच-सोचकर खुश होता था और परिवार से कोटा जाकर पढ़ने की इच्छा जताई थी. मेरा कमरा इतना छोटा था कि उसमें सिर्फ एक छोटा पलंग, टेबल और चेयर रखने की जगह ही थी. 10-15 मैस बदलने के बाद भी हर जगह खाना वैसा ही मिला. धीरे धीरे एक ही रूटीन, कंपटीशन का प्रेशर और नीरस माहौल से मुझे निराशा होने लगी. मैं अब परेशान रहने लगा था.  

कोटा का मिथ और पाबंदियां
वो आगे बताते हैं कि कोटा की अपनी अलग ही दुनिया हैं. यहां आप सुबह उठो तो आपकी आंखों के सामने बुक होनी चाहिए, तभी आप आईआईटी क्लियर कर पाओगे. कोटा में ये मिथ है कि अगर आप 16-18 घंटे नहीं पढ़ रहे तो आप आईआईटी क्रैक नहीं कर पाओगे. काउंसलिंग के नाम पर भी सिर्फ कुछ साहित्यिक कार्यक्रम या फिर ओरिएंटेशन सेशन होता था. ना आप मूवी देखने जा सकते थे, ना घूमने. अगर आप ये काम करते हो तो आपके आस पास वाले सवाल उठाते हैं कि ऐसे आईआईटी कैसे क्रैक करोगे?

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बच्चे प्रैशर में आकर करने लगते थे नशा
दीपक कहते हैं कि मुझे याद है कि कोटा में पढ़ाई का प्रेशर इतना है कि उसे रिलीज करने के लिए छात्र तरह-तरह के रास्ते निकलाने की कोशिश करने लगते हैं, उनमें से एक नशा भी है. अपनी खराब परफॉर्मेंस या पढ़ाई के दबाव की वजह से बच्चे नशे को भी सहारा बना लेते हैं. दूसरे से तुलना वाला मानसिक तनाव उन्हें इस रास्ते की ओर जाने पर मजबूर कर देता है, जहां सिर्फ अंधकार ही अंधकार है. उनके परिवार वाले या साथी उनकी तुलना दूसरे उन बच्चों से करने लगते हैं, जिनकी रैंक अच्छी आई है. उनसे ये सवाल पूछे जाते हैं कि क्लास, सिलेबस और टीचर एक हैं तो वे पीछे क्यों रह गए. अगर किसी की रैंक कम आती है तो उसे नीचे वाले बैच में डाल दिया जाता है. इस वजह से वो खुद का काबिलियत पर भी शक करने लगते हैं.

स्प्रिंग लोडेड पंखे नहीं सुलझा सकते समस्या
दीपक कहते हैं कि कोटा में बच्चों के कमरे में एक पंखा ही होता है, जब वो आत्महत्या करने की सोचता है तो सबसे पहले उसे बस यही नजर आता है. अगर वो बाहर जाकर ऐसा कदम उठाने की सोचेंगे तो कोई उसे देखकर ये कदम उठाने से रोक सकता है. स्प्रिंग लोडेड पंखों से सुसाइड केस थोड़े कम हो जाएंगे लेकिन जब तक परिवार, दोस्त या शिक्षक उनका साथ नहीं देंगे तब तक यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी.

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आज भी याद है रिजल्ट का वो दिन...
मुझे तो वो दिन आज भी पूरी तरह याद है जिस दिन जेईई मेन्स का रिजल्ट आया था. मैं अपने पापा के साथ बैठा था, हाथ-पैर कांप रहे थे, डर लग रहा था. रिजल्ट खुला और जिसका डर था वही हुआ, मैं एग्जाम क्रैक नहीं कर पाया, पूरी मेहनत और पैसा खराब हो गया था, अंदर से टूट गया था लेकिन उस समय मेरे पापा मेरे साथ थे. उन्होंने मुझे समझाया, पापा ने हमेशा मेरा साथ दिया. दीपक के पापा जो एक किसान हैं, उन्होंने हमेशा उसे ये कहकर प्रोत्साहित किया कि तुमने अपना बेस्ट दिया. मगर इसके बाद भी दोस्तों की तरफ से ताने मिलते थे कि इतनी मेहनत और पैसे लगाने के बाद भी क्रैक नहीं कर पाए.

सांइस छोड़ बीए में लिया दाख‍िला, UPSC को बनाया लक्ष्य 
दीपक साल 2013 में कोटा छोड़कर वापस घर आ गए थे. वापस आने के बाद किसी भी अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल रहा था. साल 2014 में दिल्ली में बीए में एडमिशन लिया. तानों का दौर यहां भी नहीं रुका. सांइस से आर्ट्स स्ट्रीम बदलने पर भी दोस्तों ने भी ताने कसे. मगर दीपक ने किसी की न सुनकर अपने दिल की सुनी.

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पिता ने लोन लेकर भेजा विदेश
बीए की पढ़ाई करने के बाद दीपक को अपने बचपन का एक सपना याद आ चुका था. जब वो प्लेन उड़ाना चाहते थे. उन्हें यह सोचकर ही अच्छा लगा कि अगर मैं ये कर पाऊं तो कितना अच्छा होगा. बस तभी पायलट बनने की ठान ली. लेकिन, परिवार के पास उतनी रकम नहीं थी, इसलिए सालाना 2 से 3 लाख रुपये कमाने वाले पिता ने एक बड़ी राशि लोन पर ले ली और दीपक को पायलट ट्रेनिंग के लिए साउथ अफ्रीका भेज दिया. यह दीपक की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था. उन्हें साउथ अफ्रीका के 43 एयर स्कूल में दाखिला मिल गया. कोर्स पूरा होने के बाद 27 अपैल 2023 को दीपक ने जानी मानी एयरलाइन में बतौर पायलट जॉइन किया और आज सालाना एक करोड़ से ज्यादा का पैकेज है.  

अब दूसरों को प्रेरणा दे रहे हैं दीपकआईआईटी से बीए और उसके बाद पायलट बने 28 साल के दीपक कहते हैं कि करियर के लिए कभी भी फैसले ले सकते हैं, इसमें देर या जल्दबाजी की कोई गुंजाइश नहीं होती. कई लोग तो 40-50 साल की उम्र में कोई दूसरा व्यवसाय अपनाते हैं. वो कहते हैं, "मैं अपने सभी छोटे भाई-बहनों को यही सलाह देना चाहूंगा कि जो भी करो दिल से करो, सिर्फ डॉक्टर और इंजीनियर ही नहीं सक्सेस होने के और भी कई रास्ते हैं. मेरे जो दोस्त मुझे फेल होने पर ताने देते थे. आज जब मैं अच्छे मुकाम पर हूं और अच्छा कमा रहा हूं तो वही मेरी तारीफ करते नहीं थकते." 

रिपोर्ट: अंकु चाहार
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