बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार को ध्यान में रखते हुए 6 वर्ष से कम और 14 से 18 वर्ष की आयु के लिए विस्तार की मांग की जा रही है. शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही कई संस्थानों ने एक साथ सार्वजनिक पत्र द्वारा मांग की है कि आरटीई अधिनियम 2009 में 14 वर्ष से अधिक एवं 06 वर्ष से कम उम्र के बच्चों हेतु विस्तार किया जाए.
वैसे छह वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों की शिक्षा का प्राविधान संविधान में दिए राज्य के नीति निदेशक तत्वों मे किया गया है जो कि अधिकार के रूप में न होकर राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है. इस प्रकार 14 वर्ष से अधिक एवं 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शिक्षा एक अधिकार के रूप मे नहीं मिला है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकार सम्मेलन 1989 में भी इसे स्वीकारा था. यह भी सरकार को 18 वर्ष तक के बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध करता है.
हालांकि वर्तमान मे शिक्षा का अधिकार कानून 2009 कहता है कि 06 वर्ष से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है लेकिन आज 15 वर्ष बाद भी मात्र 25 प्रतिशत स्कूलों में इस कानून के सूचक मापदंडो का पालन हो रहा है. इसके अलावा आज भी देश मे 06 वर्ष से कम उम्र एवं 14 -18 वर्ष आयुवर्ग के बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं. इसलिए राइट टू एजुकेशन फोरम, फोरम फॉर क्रेचेस एंड चाइल्डकेयर सर्विसेस, कॅम्पेन अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर एवं अलाइन्स फॉर राइट टू ई सी डी नेटवर्क ने मिलकर सरकार से गुजारिश की है कि भारत मे 18 वर्ष से छोटे सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शामिल किया जाए.
सभी बच्चों के लिए क्यों ये मांग जरूरी
फोर्सेस (फोरम फॉर क्रेचेस एंड चाइल्डकेयर सर्विसेज) की राष्ट्रीय समन्वयक चिराश्री घोष का कहना है कि बच्चा जब मां के गर्भ मे आता है, तभी से उसके मस्तिष्क का विकास शुरू हो जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि 06 वर्ष की आयु तक मनुष्य के मस्तिष्क का 80 प्रतिशत विकास हो जाता है. 06 वर्ष तक के बच्चों के साथ आयु अनुसार अवधारणा, शब्द कोष, भाषा, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास की गति का विस्तार करने हेतु हस्तक्षेप करना बहुत जरूरी है ताकि बच्चे भविष्य में अपनी सम्पूर्ण योग्यता प्राप्त कर सकें. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि छोटे बच्चों को शाला पूर्व शिक्षा का अधिकार हो जो बच्चों की शिक्षा की निरंतरता मे सहयोगी होगा.
NEP पर भी हुई चर्चा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सरकार का बच्चों की शिक्षा की ओर एक सराहनीय कदम है जिसमें बच्चों की शिक्षा की निरंतरता हेतु सरकार ने 5+3+3+4 का फॉर्मूला दिया है. इस फॉर्मूला के तहत शुरू के 5 वर्ष (03 से 08 वर्ष की आयु तक) मूलभूत चरण, उसके बाद के 3 वर्ष (08 से 11 वर्ष की आयु तक) प्रारम्भिक चरण, आगे के 03 वर्ष (11 से 14 वर्ष की आयु तक) मध्य चरण एवं 04 वर्ष (14 से 18 वर्ष की आयु तक) माध्यमिक चरण की शिक्षा की बात कही गई है. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बच्चे की शिक्षा की निरंतरता के लिए यह फॉर्मूला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी एक स्तर पर यदि शिक्षा मे कोई अवरोध आता है तो अगले स्तर की शिक्षा पर इसका प्रभाव पड़ता है. हालांकि नई शिक्षा नीति की प्रस्तावना मे 03 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का जिक्र किया गया है लेकिन उनके लिए शिक्षा हेतु कोई फॉर्मूला पूरी नीति में नहीं है जबकि मनुष्य के मस्तिष्क के विकास का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय है. अतः बच्चों के लिए शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए 03 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए भी आयु अनुसार हस्तक्षेप किया जाना जरूरी है.
प्रारम्भिक बाल देखरेख भी अधिकार का हिस्सा बने
प्रारम्भिक बाल देखरेख को अधिकार बनाने के लिए बहुस्तरीय प्रयास करने की आवश्यकता है. जब तक यह बिजली, पानी, सड़क जैसे बुनियादी मुद्दों की तरह आम जनता की आवाज नहीं बनेगा. तब तक यह प्राथमिकता में नहीं आएगा और न ही अधिकार बन पाएगा. साथ ही इसे अधिकार बनाने के लिए एक राजनैतिक मुद्दा भी बनाना पड़ेगा. हम सभी जानते हैं कि छोटे बच्चे भविष्य के मानव संसाधन होते हैं और यदि हमारे देश की नींव को मजबूत करना चाहते हैं तो हमें प्रारम्भिक बाल देखरेख को अधिकार के परिपेक्ष्य में देखना ही होगा.यदि हम प्रारम्भिक बाल देखरेख पर ध्यान नही देंगे तो बच्चों की बाल श्रम मे जाने की संभावना बढ़ जाएगी.
उच्च शिक्षा में भी अगर बच्चों की संख्या कम होती जाएगी और बहुत ही कम आय अर्जित करेंगे, जिसका सीधा असर देश की अर्थ व्यवस्था पर पड़ेगा. यदि हम प्रारम्भिक बाल देखरेख को अधिकार बनाना चाहते हैं तो जनता, मीडिया और राजनैतिक पार्टियों को इसे एक मुद्दा बनाने मे सक्रिय सहयोग करना होगा. यदि हम कानूनी पक्ष देखें तो शिक्षा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 A मे रखा गया है. यदि विधि आयोग की रिपोर्ट 2016, टेबल 259 को देखें तो उसमें स्पष्ट है कि प्रारम्भिक बाल देखरेख के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 A में रखा जा सकता है. यदि आने वाली सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले तो प्रारम्भिक बाल देखरेख को आसानी से अधिकार का रूप दिया जा सकता है.