स्वयं दिव्यांग, घर में अभाव, पर अदम्य इच्छा शक्ति और लगन से आदिवासी परिवार के जगन्नाथ ने पैरों से लिखकर प्राथमिक शिक्षा की रेखा को पार कर लिया. जगन्नाथ शिक्षक बनने का सपना देखते हैं. वह कहते हैं, 'मैं अपने जैसे लोगों के लिए एक शिक्षक बनना चाहता हूं.' पढ़ाई के अलावा उन्हें फुटबॉल खेलना बहुत पसंद है और पसंदीदा खिलाड़ी मेसी हैं.
जन्म से ही उनके दोनों हाथ नहीं होने के कारण परिवार ने उनका नाम जगन्नाथ रखा. हमेशा साथ देने वाला जो था, वो था गरीबी और बदनसीबी. जन्म के ठीक बाद मां ने जगन्नाथ को छोड़ दिया. पिता भी कहीं और रहते हैं. जगन्नाथ अपनी बूढ़ी दादी के पास पले-बढ़े जहां बुआ उनकी देखभाल करती हैं.
जगन्नाथ का जन्म पश्चिम बंगाल स्थित पूर्व बर्दवान जिले के मेमारी 1 ब्लॉक स्थित दुर्गापुर ग्राम पंचायत के शिमला गांव के एक आदिवासी परिवार में हुआ. वह जन्म से ही विकलांग हैं. हथेली नहीं हैं, उंगलियां नहीं हैं. जगन्नाथ की मां ने उन्हें जन्म के बाद छोड़ दिया. जगन्नाथ बूढ़ी दादी के पास पले-बढ़े. हालांकि, जगन्नाथ, दादी, बुआ और दादा के प्यार से वंचित नहीं रहे.
उन्होंने छोटी उम्र से ही जगन्नाथ को सीखने में रुचि पैदा कर दी. बुआ की शादी गांव में ही हुई है. मां के परिवार और यहां तक कि जगन्नाथ की पढ़ाई का खर्च भी बुआ की कमाई से ही चलता है. जगन्नाथ बचपन से ही शिक्षक बनना चाहते थे. उन्होंने पैरों से लिखकर शिक्षा प्राप्त की.
एक सीमित साधन वाले परिवार से होने के बावजूद जगन्नाथ को शिक्षित करने के लिए गांव के प्राथमिक विद्यालय में भर्ती कराया गया. तभी से जगन्नाथ ने लिखना शुरू किया. जैसे-जैसे समय बीतता गया, जगन्नाथ अपने पैरों से लिखने में पारंगत हो गए. जगन्नाथ ने एक के बाद एक कक्षा उत्तीर्ण कर इसी साल पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की.
जगन्नाथ शिमला आदिवासी पाड़ा से माध्यमिक परीक्षा में शामिल होने वाले एकमात्र छात्र थे. जगन्नाथ को परीक्षा देने में कोई कठिनाई न हो इसके लिए परीक्षकों ने हर संभव प्रयास किया. पिछले शुक्रवार को माध्यमिक/10वीं का रिजल्ट घोषित होने के बाद, जगन्नाथ मंडी के चहरे पर सफलता की एक बड़ी मुस्कान थी. वह 258 नंबरों के साथ उत्तीर्ण हुए हैं.
गांव की महिला सम्बारी सरेन ने बताया, 'जिस लड़के के हाथ नहीं हैं, उसने पैरों से लिखकर जिंदगी की पहली बड़ी परीक्षा पास कर ली... हम बहुत खुश हैं. अगर जगन्नाथ को कुछ सरकारी मदद मिल जाए तो उनकी पढ़ाई में मदद मिलेगी.'
(वर्धमान से सुजाता मेहरा की रिपोर्ट)