कोविड-19 की दूसरी लहर के चलते हर तबके से उठती हुई मांग के बाद केंद्र सरकार द्वारा यह तय कर लिया गया है कि सीबीएसई की 12वीं की परीक्षाएं नहीं होंगी. इस महामारी से छात्रों को बचाने के लिए सामाजिक और राजनीतिक तबके द्वारा यह मांग उठाई जा रही थी, जिसके बाद अब यह फैसला ले लिया गया है कि छात्रों को 12वीं की परीक्षा देने के लिए बाहर नहीं निकलना होगा.
कई राज्य भी अपनी बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह खड़ा है कि आगे रास्ता क्या हो सकता है. दरअसल 12वीं की बोर्ड परीक्षा के बाद ही किसी छात्र का भविष्य शुरू होता है क्योंकि इसी शिक्षा के बाद बच्चों के सामने यह रास्ता खुलता है कि आगे वो डॉक्टर बनना चाहते हैं, इंजीनियर बनना चाहते हैं, फौज में जाना चाहते हैं या किसी विशेष विषय में शिक्षा लेकर पारंगत होना चाहते हैं. तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि 12वीं की बोर्ड परीक्षा अगर नहीं हुई तो छात्रों को आगे पास कैसे किया जाए?
विषय की जटिलता को समझने के लिए आजतक ने दिल्ली के जाने-माने शिक्षाविद और अलग-अलग विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों से बातचीत की और उनकी राय समझने की कोशिश की. इस बारे में दिल्ली के माउंट आबू स्कूल के प्रधानाध्यापक ज्योति अरोड़ा का सुझाव है कि स्कूलों में इंटरनल एसेसमेंट के साथ-साथ अलग-अलग विषयों में बच्चों को प्रोजेक्ट दिए जाते हैं जो 12वीं के छात्रों को पास करने के लिए असेसमेंट का आधार बन सकता है.
रिजल्ट पर डिपेंड होगा फ्यूचर?
आजतक से अपनी बात रखते हुए प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा ने कहा कि 12वीं की पढ़ाई कई सारे विश्वविद्यालयों और दूसरी अहम शिक्षा के लिए इंटरकनेक्टेड है. ज्यादातर विषय में प्रैक्टिकल होते हैं और बहुत सारे विषयों में इंटरनल एसेसमेंट के साथ-साथ प्रोजेक्ट की सुविधा है. डाटा एनालिसिस और डाटा प्रोजेक्शन के साथ कई तरीके के प्री बोर्ड परीक्षाएं भी होती हैं.
वो आगे कहती हैं कि बच्चों ने साल भर सभी विषयों की पढ़ाई की है और पीरियोडिक अर्ध सालाना परीक्षाएं और प्री बोर्ड परीक्षाएं भी बच्चे देते हैं. ऐसे में स्कूलों द्वारा इंटरनल एसेसमेंट, जिसमें प्रोजेक्ट और प्रैक्टिकल की सुविधाओं और उस डाटा के आधार पर एनालिसिस किया जा सकता है. सीबीएसई जिस तरीके की व्यवस्था करती है उसमें बच्चों की परीक्षाएं या किसी भी तरह का ऐसा सीमेंट बहुत ही पारदर्शी और बेहतर प्रक्रिया के तहत ही होगा.
दिल्ली के गवर्नमेंट गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल की वाइस प्रिंसिपल ममता सलूजा ने भी आजतक से बातचीत करते हुए बच्चों के भविष्य पर अपनी बात रखी. ममता सलूजा का कहना है कि बारहवीं कक्षा की परीक्षा रद्द करने का निर्णय एक ऐतिहासिक निर्णय है और इसका सभी को स्वागत करना चाहिए. लेकिन विचारणीय यह है कि बच्चों का परिणाम कैसे बनाया जाए.
ममता सलूजा ने सुझाए ये विकल्प
1. मेरे विचार में पहला ऑप्शन है कि बच्चे ने जो ऑनलाइन कक्षाएं अटेंड की है और जो उन्होंने रिस्पांस जमा किया है उसे देखा जाए.
2. दूसरा ऑप्शन यह है कि बच्चों ने प्रैक्टिकल और जो प्रोजेक्ट जमा किए हैं उसे भी आधार बनाया जाए.
3. तीसरा ऑनलाइन या ऑफलाइन प्री बोर्ड परीक्षाएं या ओपन बुक एसेसमेंट किया जाए.
4. 10वीं और 11वीं कक्षा में बच्चों का परफॉर्मेंस देखा जाए. उन्हें प्रैक्टिकल के आधार पर भी वेटेज मिलना चाहिए.
इसका कारण बताते हुए वो कहती हैं कि 12वीं कक्षा में बच्चों को पूरी तरह से फॉर्मल शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि सारी कक्षाएं ऑनलाइन शुरू हो गई और इन कठिनाइयों के बीच उन विषमताओं को भी समझना होगा. जैसे सीबीएसई ने दसवीं के लिए असेसमेंट फार्मूला बनाया है वैसा ही 12वीं कक्षा के लिए फार्मूला बनाया जाएगा ताकि सभी बच्चों के साथ न्याय हो सके.
राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय के प्रधानाध्यापक डॉक्टर राजपाल सिंह का कहना है की 12वीं की कक्षा निरस्त करने का फैसला स्वागत योग्य है क्योंकि पिछले 1 साल में महामारी के दौरान परिस्थितियां मुश्किल थी ऐसे में बच्चों को मानसिक और शारीरिक दिक्कतें झेलनी पड़ी हैं .
डॉक्टर राजपाल सिंह का सुझाव है कि 12वीं के छात्रों को 10वीं की बोर्ड की परीक्षाएं और 11वीं में पूरे साल स्कूल में हुई परीक्षाओं को एक साथ जोड़ कर एक फार्मूला तैयार किया जा सकता है जैसे कि सीबीएसई ने कक्षा 10 के लिए तैयार किया है और उससे बच्चों का बेहतर असेसमेंट किया जा सकता है.
डॉक्टर राजपाल सिंह का यह भी सुझाव है कि अगर किसी बच्चे को लगता है कि उसकी तैयारी बेहतर थी और असेसमेंट में उसकी परफॉर्मेंस के साथ न्याय नहीं हुआ है तो उसके पास यह रास्ता भी हो कि परिस्थितियां बेहतर होने की स्थिति में वह परीक्षा दे सके और अपनी परफॉर्मेंस को बेहतर कर सकें.
सीबीएसई को अभी फार्मूला तैयार करना है
जाहिर है सरकार और शिक्षाविदों के बीच भी इसको लेकर मंथन हो रहा है क्योंकि बच्चों की जान बचाना तो जरूरी था, लेकिन उनके भविष्य का ख्याल रखना भी उतना भी जरूरी है. ऐसे में बेहतर पारदर्शी और तर्कसंगत प्रक्रिया के तहत बच्चों को आगे की कक्षाओं में उच्च शिक्षा के लिए भेजा जा सके इसके लिए एक बेहतर व्यवस्था के लिए हर कोई मंथन कर रहा है.