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Chhath Puja 2022: DU प्रोफेसर के लिए कैसे खास बना छठ पर्व? लोक गीत के साथ बताया महत्व

Chhath Puja 2022: दिल्ली यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर ने कहा कि हॉस्टल में ज्यादातर लड़कियां इस त्योहार के मनाने अपने घर जरूर जाती थीं. जो नहीं जा पाती थीं वह इस त्योहार के गीत गाकर ही हॉस्टल को रौनक कर देती थीं. आज इतने सालों बाद भी इस त्योहार को लेकर मेरे अंदर वही उत्साह है.

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छठ पूजा
छठ पूजा

साल 1997-98 की बात है. मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से M.phil (Music) में कर रही थी. भारत के त्योहारों के नाम पर मुझे होली या दिवाली ही पता थे, लेकिन हमारे हॉस्टल में भारत के कई हिस्सों से लड़कियां पढ़ने आई थीं, जिनकी वजह से मुझे भारत की बाकि संस्कृति के बारे में भी पता चला है. दिवाली के बाद जब छठ का त्योहार आया तब मैंने हॉस्टल में बिहारी लड़कियों का आस्था और भक्ति को देखा. वह छठ के लोक गीत गाती थीं, जोकि काफी अच्छे होते हैं. वह अपनी रीति-रिवाज और खास कर की छठ के खान-पान के बारे में बताती थीं. उनको ऐसा करते देख मैं भी इस त्योहार को लेकर उत्साहित होने लगी. हॉस्टल में ज्यादातर लड़कियां इस त्योहार के मनाने अपने घर जरूर जाती थीं. जो नहीं जा पाती थीं वह इस त्योहार के गीत गाकर ही हॉस्टल को रौनक कर देती थीं. आज इतने सालों बाद भी इस त्योहार को लेकर मेरे अंदर वही उत्साह है, मैं इंतजार करती हूं कि कोई ना कोई मुझे इस पूजा में निमंत्रण जरूर दे और मुझे इस पर्व में बनने वाले स्वादिष्ट खान-पान का मजा लेने का मौका मिले. आज भी में छठ से जुड़े कई लोग गीत गाती हूं. 

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छठ पूजा की खास बात यह है कि ये आज भी सालों से चली आ रही रीति-रिवाज के अनुसार ही मनाया जाता है. छठ महापर्व शुरू होने से पहले ही बाजार सजने शुरू हो जाते हैं, कतार में सजी हुई दुकानें डलिया, सीजनल फल फूल पर लोग खरीदारी करते नजर आ रहे हैं. पिछले दो सालों से कोरोना के कारण बाजार ठंडे पड़े हुए थे लेकिन इस साल महंगाई के बीच भी लोगों में उत्साह नजर आ रहै है. इस पूजा में गंगा स्नान का खास महत्व है. लोग सुबह उठकर सूर्योदय को जल चढ़ाते हुए गंगा स्नान करते हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों में बढ़ते प्रदूषण के कारण पानी में प्रदूषित हो गया है लेकिन लोगों की भक्ति अभी भी वहीं की वहीं है. हर छठ पर ऐसी कई तस्वीरें सामने आती हैं जहां पानी में गंदगी से सफेद झाग आ गए लेकिन फिर भी महिलाएं झागों के बीच खड़े होकर सूर्य को जल देती नजर आती है. भक्ति में वह यह नजरअंदाज कर देती है कि ऐसा करने से वह कई बीमारियों को न्योता दे रही हैं. 

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छठ का महत्व

छठ पूजा की सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं! उपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाता है. छठ पूजा पर सूर्य देव एवं माता के पूजन से व्यक्ति को संतान सुख एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है. इस पर्व की सादगी की पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम भारत में भगवान सूर्य को भी बहुत दर्जा दिया जाता है. सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए इस दिन सूर्य की भी पूजा की जाती है. माना जाता है कि जो व्यक्ति छठी माता के इस पावन दिनों में पूजा करते हैं. मान्यता है कि इस पूजा से उनकी संतानों की रक्षा होती है.

छठ का त्योहार दिवाली के 6 दिन बाद आता है, इसलिए इसे छठ पर्व के नाम से जाना जाता है. 4 दिन के इस त्योहार में सभी अपने घर की साफ सफाई करके छठी मैया का पूजन करते हैं. छठ के पहले दिन यानि कि नहाए खाए पर सभी घरवाले शाकाहारी भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू (लौकी) और भात बनाने की परंपरा है. छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है. छठ पूजा का सारा प्रसाद आम रसोई से अलग नई रसोई में चूल्हे पर बनाया जाता है. इस पर्व का अंतिम दिन बहुत खास होता है. सभी औरतें पिछले 36 घंटे से व्रत रखकर सुबह सुर्योदय के समय सूर्यभगवान को जल चढ़ाकर, सीजनल फल एवं ठेकुए का प्रसाद चढ़ाती हैं. ठेकुआ छठ का मुख्य प्रसाद है, मानिए की इसके बिना यह पूजा अधूरी है. छठ पर ऐसी मान्यता भी है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेता है और पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना से एक कंबल के साथ ही फर्श पर सोता है. यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार ने छठ पूजा शुरू कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढ़ी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पड़ता है, जोकि आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है.

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छठ पूजा की खास बात यह है कि ये आज भी पुरानी रीति रिवाजों के साथ मनाई जाती है. जैसे दिवाली की बात करें तो मीठे खिलौने दिवाली के मुख्य प्रसाद में से एक थे, लेकिन अब बाजार में इनकी रेड़ी लगी नजर नहीं आती. पिछले कुछ सालों में इनका बाजार काफी गिर गया है. सालों से कई इस धंधे में लगे परिवार नुकसान को देखते हुए समय के साथ लुप्त होते जा रहे हैं. लेकिन छठ पूजा की प्रसाद से लेकर सामग्री आज भी वही है.

(लेखिका डॉ. सपना कचरू, दिल्ली यूनिवर्सिटी के दौलतराम कॉलेज में शास्त्रीय संगीत की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

 

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