छठ का महत्व
छठ पूजा की सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं! उपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाता है. छठ पूजा पर सूर्य देव एवं माता के पूजन से व्यक्ति को संतान सुख एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है. इस पर्व की सादगी की पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम भारत में भगवान सूर्य को भी बहुत दर्जा दिया जाता है. सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए इस दिन सूर्य की भी पूजा की जाती है. माना जाता है कि जो व्यक्ति छठी माता के इस पावन दिनों में पूजा करते हैं. मान्यता है कि इस पूजा से उनकी संतानों की रक्षा होती है.
छठ का त्योहार दिवाली के 6 दिन बाद आता है, इसलिए इसे छठ पर्व के नाम से जाना जाता है. 4 दिन के इस त्योहार में सभी अपने घर की साफ सफाई करके छठी मैया का पूजन करते हैं. छठ के पहले दिन यानि कि नहाए खाए पर सभी घरवाले शाकाहारी भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू (लौकी) और भात बनाने की परंपरा है. छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है. छठ पूजा का सारा प्रसाद आम रसोई से अलग नई रसोई में चूल्हे पर बनाया जाता है. इस पर्व का अंतिम दिन बहुत खास होता है. सभी औरतें पिछले 36 घंटे से व्रत रखकर सुबह सुर्योदय के समय सूर्यभगवान को जल चढ़ाकर, सीजनल फल एवं ठेकुए का प्रसाद चढ़ाती हैं. ठेकुआ छठ का मुख्य प्रसाद है, मानिए की इसके बिना यह पूजा अधूरी है. छठ पर ऐसी मान्यता भी है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेता है और पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना से एक कंबल के साथ ही फर्श पर सोता है. यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार ने छठ पूजा शुरू कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढ़ी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पड़ता है, जोकि आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है.
छठ पूजा की खास बात यह है कि ये आज भी पुरानी रीति रिवाजों के साथ मनाई जाती है. जैसे दिवाली की बात करें तो मीठे खिलौने दिवाली के मुख्य प्रसाद में से एक थे, लेकिन अब बाजार में इनकी रेड़ी लगी नजर नहीं आती. पिछले कुछ सालों में इनका बाजार काफी गिर गया है. सालों से कई इस धंधे में लगे परिवार नुकसान को देखते हुए समय के साथ लुप्त होते जा रहे हैं. लेकिन छठ पूजा की प्रसाद से लेकर सामग्री आज भी वही है.