इस कोरोना काल ने असमय ही न जाने कितने लोगों के सगे संबंधी छीन लिए. हर तरफ गम और बेबसी का मानो गुबार-सा आ गया है. इन्हीं अंधेरे में डूबे दिनों में बीते कुछ माह से एक रौशनदान की तरह दिल्ली के डॉ केके अग्रवाल इलाज और काउंसिलिंग के जरिये उदास और बीमार दिलों की रौशनी बन गए थे. मगर, आज वो किरन भी अनंत सूर्य में समा गई. लेकिन डॉ केके अग्रवाल रोशनी का जो रास्ता दिखाकर गए हैं, उम्मीद है आगे भी डॉक्टर समुदाय इस पर चलता रहेगा.
मामूली शब्दों से जीत लेते थे दिल
ऐसा नहीं है कि अचानक कोरोना काल में ही उनमें मानवता या सहृदयता फूट पड़ी थी, बल्कि ये गुण तो उनमें काफी समय से थे. आज के माहौल में जब इस पेशे में शामिल अलग-अलग लोगों के बारे में राय बन गई है कि वे लोग 'डर' का बिजनेस करते हैं. उनसे डॉ अग्रवाल एकदम उलट थे. गले में स्टेथोस्कोप और चेहरे पर मुस्कान तो जैसे उनकी पहचान का हिस्सा ही बन गए थे. उनसे मिलकर दर्द में कराह रहे मरीज भी कुछ देर के लिए जैसे अपनी पीड़ा भूल ही जाते थे. उनका हंसकर कहना कि अरे कुछ नहीं हुआ है आपको, खेलो-कूदो, अच्छा खाओ, जिंदगी को एंजॉय करो... उनके ये मामूली से शब्द मानो कोई जादू सा कर देते थे. जो भी उनसे मिला, उनका मुरीद हुए बिना नहीं रह सकता था. वो अपने स्वभाव और काम से दिल्ली के दिल के डॉक्टरों में सबसे मशहूर, सबसे सुलभ और सबके अपने बन गए थे. आज उनका जाना दिल्ली के डॉक्टरों की बिरादरी में ही नहीं बल्कि आम लोगों के बीच भी एक कमी छोड़ गया है.
जब बोले- मेहनत करने वाले का सम्मान होना चाहिए
उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि उनकी पत्रकारों से अच्छी बनती है. ये बात सही भी थी, लेकिन ऐसा उन्होंने सोच-समझकर नहीं किया था. आप हेल्थ रिपोर्टिंग करते हैं, या क्राइम या फिर एजुकेशन या प्रशासनिक खबरें, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था. न ही वो अपने बारे में कुछ प्रकाशित करवाने के लिए ऐसे संबंध बनाए रखते थे. एक बार हल्की-फुल्की बातचीत के दौरान मैंने खुद उनसे ये सवाल पूछा था कि सर, आप पत्रकारों की बहुत हेल्प करते हैं?
इस पर उन्होंने गंभीर होकर कहा कि हां, क्योंकि मैं उन्हें करीब से समझता हूं. कम संसाधनों और सीमित आय में भी वो बहुत मेहनत करते हैं. उनकी यही कमाई होती है कि उनका सम्मान हो. पत्रकारिता के पेशे में रहने वाले लोगों का सम्मान होना ही चाहिए.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया से की कइयों की मदद
सिर्फ इतना ही नहीं, अगर आप हेल्थ रिपोर्टिंग कर रहे हैं तो डॉ केके अग्रवाल न्यूकमर्स के लिए किसी इनसाइक्लोपीडिया से कम नहीं थे. लेकिन अगर आप ये सोचें कि वो सिर्फ पत्रकारों के करीबी थे तो ये भी सही नहीं होगा. वो अपने पास आने वाले गरीब और जरूरतमंदों के साथ भी उसी तरीके से पेश आते थे. इसकी गवाही देता है उनके द्वारा बनाया गया उनका ड्रीम ऑर्गनाइजेशन, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया... अपने परिचय के दौरान वो प्रेसीडेंट ऑफ हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया पूरे गर्व से सबसे पहले बोलते थे. बता दें कि इस फाउंडेशन ने देश के उन गरीब और जरूरतमंदों के हृदय रोगों का इलाज किया है जो दिल्ली जैसे महंगे शहर में आकर अपना इलाज या ऑपरेशन कराने का सपना भी नहीं देख सकते थे.
समय के सख्त पाबंद थे केके अग्रवाल
केके अग्रवाल पहले दिल्ली के ग्रेटर कैलाश- 1 फिर खेलगांव में अपने इस फाउंडेशन का दफ्तर चलाने लगे थे. यह जगह उन्हें बहुत प्रिय थी, यहां उनके जीवन भर की कमाई के तौर पर मिले पद्मश्री समेत हजारों मेडल और अवॉर्ड से हर दीवार सजी थी. यहां वो हर दिन समय पर पहुंचते थे, उनके अपने करीबियों से मिलने का ठिकाना भी यही था. यहां दफ्तर के बाहर बेंचों में गले में गमछा डाले सुदूर गांवों के लोग अपने बच्चे या बीमार परिजनों को लेकर अक्सर ही बैठे मिल जाते थे. समय के पाबंद डॉ केके अ्ग्रवाल हर दिन यहां आकर मरीजों को देखने में जुट जाते थे. इस फाउंडेशन के जरिये उन्होंने न जाने कितने ही मरीजों के हृदय की सर्जरी निशुल्क की.
जब वायरल वीडियो पर बोले थे- अच्छा ही हुआ...
इन सबके बीच उनका सहज स्वभाव भी लोगों को याद रह जाने वाला था. अपनी आलोचना को भी वो जिस ढंग से लेते थे, शायद ही कोई इतनी सहजता से ऐसी प्रतिक्रिया दे पाए. हाल ही में उनका वैक्सीनेशन के दौरान एक ऑडियो वायरल हुआ, जिसकी प्रतिक्रिया में सोशल मीडिया में उन्होंने लिखा कि उन्हें खुशी है कि ऐसे मुश्किल समय में मैं आपकी मुस्कराहट की एक वजह बना. ऐसे मौकों पर भी उनके मन में किसी भी तरह का गुस्सा या अपमानबोध कभी नजर नहीं आया.
मरीज से पूछा कि जीने ये तरीका हमें भी बता दो
परिवार के लिए भी वो पूरी तरह समर्पित पति और पिता की भूमिका में भी थे. अपने मरीजों के साथ उनके संवाद इतने रुचिकर होते थे कि मरीज मुस्करा देते थे. वो बताते थे कि एक बार एक 94 साल के मरीज ने उनसे पूछा कि डॉक्टर साहब ये बताइए कि मैं क्या खाऊं-पियूं कि स्वस्थ रहूं. इस पर डॉक्टर अग्रवाल ने उनसे कहा कि ये तो आपको मुझे बताना चाहिए कि आप क्या खाते पीते हैं कि इस उम्र में भी इतने स्वस्थ हैं. कोरोना काल में भी वो अपने सेंस ऑफ ह़यूमर से बहुत सी कठिनाइयों को आसान बनाते जा रहे थे. उन्होंने अपने लाइव प्रोग्राम में कोरोना को लेकर डर रहे लोगों को हमेशा हौसला दिया.
ऑक्सीजन ट्यूब लगाकर भी करते रहे इलाज
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि डॉ अग्रवाल ने वो दौर भी देखा जब ज्यादातर भारतीय डॉक्टरों के लिए विदेशों में मोटी कमाई के तमाम रास्ते खुले थे. उन दिनों नागपुर के मेडिकल कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट होकर वो पश्चिमी देशों में जाकर कहीं भी बस सकते थे, लेकिन उन्होंने अपना देश चुना. कोविड काल में भी उनके लिए अपने देश के लिए ये जज्बा साफ नजर आ रहा था. जब वो बिना किसी लालच या गरज के बस लोगों के मुफ्त इलाज में जुटे थे. उसी दौरान कोरोना पॉजिटिव होने पर भी उन्होंने अपना ध्येय नहीं छोड़ा, जब तक हालत ने जवाब नहीं दे दिया, वो नाक में ऑक्सीजन ट्यूब लगाए मरीजों की सेवा में जुटे रहे.
आज दिल्ली में हर किसी के दिल में उनके प्यारे डॉक्टर के खोने का गम है. सबके लिए सुलभ और लोकप्रिय डॉक्टर केके अग्रवाल का जाना दिल्लीवालों की व्यक्तिगत क्षति है. दिल के इस डॉक्टर ने 62 साल की उम्र तक न सिर्फ दिलों का इलाज किया, बल्कि लाखों दिलों को जीता भी...