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कॉलेज से निकलने के बाद भी दो में से एक छात्र को नहीं मिल पाती नौकरी: Economic Survey

कॉलेज से डिग्री लेकर निकलने के बाद भी दो में से एक छात्र को नौकरी नहीं मिल पाती. हालांकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि पिछले दशक में यह प्रतिशत 34 प्रतिशत से बढ़कर 51.3 प्रतिशत हो गया है. आर्थ‍िक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि पिछले छह वर्षों में भारतीय श्रम बाजार संकेतकों में सुधार हुआ है, जिससे 2022-23 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई है.

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Unemployment in educated youth
Unemployment in educated youth

बेरोजगारी भारत की बड़ी समस्याओं में से एक है. बड़ी विडंबना की बात है कि जिस देश में श‍िक्षा उद्योग 117 अरब डॉलर का है. जहां इंजीनियरिंग-मेडिकल से लेकर स्क‍िल कोर्सेज के संस्थानों का जमघट है. विशालकाय कैंपस वाले संस्थानों की मोटी फीस देकर हर साल लाखों छात्र डिग्र‍ियां ले रहे हैं. यही नहीं भारत की तेजी से बढ़ती आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है. फिर भी, विडंबना यह है कि उनमें से कई लोगों के पास आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी स्क‍िल नहीं है. Economic Survey 2024 के अनुसार, अनुमान बताते हैं कि लगभग 51.25 प्रतिशत युवा ही रोजगार के योग्य माने जाते हैं. 

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श‍िक्षि‍त छात्रों को नहीं मिल पाती नौकरी 

दूसरे शब्दों में कहें तो कॉलेज से डिग्री लेकर निकलने के बाद भी दो में से एक छात्र को नौकरी नहीं मिल पाती. हालांकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि पिछले दशक में यह प्रतिशत 34 प्रतिशत से बढ़कर 51.3 प्रतिशत हो गया है. आर्थ‍िक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि पिछले छह वर्षों में भारतीय श्रम बाजार संकेतकों में सुधार हुआ है, जिससे 2022-23 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई है. वर्क फोर्स में युवाओं और महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, जनसांख्यिकीय और लैंगिक लाभांश का लाभ उठाने का अवसर देती है.

पिछले पांच वर्षों में EPFO के अंतर्गत शुद्ध वेतन वृद्धि दोगुनी से भी अधिक हो गई है, जो औपचारिक रोजगार में स्वस्थ वृद्धि का संकेत है. आर्ट‍िफिश‍ियल इंटेलिजेंस आर्थिक गतिविधि के कई क्षेत्रों में अपनी जड़ें जमा रही है, इसलिए सामूहिक कल्याण की दिशा में तकनीकी विकल्पों को मोड़ना महत्वपूर्ण है. नियोक्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे प्रौद्योगिकी और श्रम के बीच संतुलन बनाए रखें. 

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भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी पढ़े-लिखे युवाओं में है. हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) की रिपोर्ट बताती है कि 2023 तक भारत में जितने बेरोजगार थे, उनमें से 83% युवा थे.

इतना ही नहीं, दो दशकों में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है. ILO की रिपोर्ट बताती है कि साल 2000 में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी 35.2% थी, जो 2022 तक बढ़कर 65.7% हो गई.

सरकार के आंकड़े क्या कहते हैं?

सरकार बेरोजगारी को विपक्ष का 'फेक नैरेटिव' बताती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ दिन पहले उनकी सरकार में चार साल में आठ करोड़ लोगों को रोजगार मिलने का दावा किया था.

हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की रिपोर्ट बताती है कि देश में 2022-23 की तुलना में 2023-24 में ढाई गुना ज्यादा नौकरियां बढ़ीं हैं.

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं मार्च 2024 तक देश में 64.33 करोड़ लोगों के पास नौकरियां थीं. इससे पहले मार्च 2023 तक नौकरी करने वालों की संख्या 60 करोड़ से भी कम थी. वहीं, 10 साल पहले 2014-15 में लगभग 47 करोड़ लोग ऐसे थे, जिनके पास नौकरी थी. अगर आरबीआई के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि चार साल में आठ करोड़ नौकरियां बढ़ी हैं.

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EPFO का आंकड़ा भी बताता है कि पांच साल में इसके सब्सक्राइबर्स की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है. 2019-20 में 78.58 लाख EPFO सब्सक्राइबर्स थे, जिनकी संख्या 2023-24 तक बढ़कर 1.31 करोड़ से ज्यादा हो गई. 

वहीं, पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के तिमाही बुलेटिन के मुताबिक, जनवरी से मार्च 2024 के बीच देश में बेरोजगारी दर 6.7% थी. इससे पहले अक्टूबर से दिसंबर तिमाही में ये दर 6.5% और जुलाई से सितंबर में 6.6% थी.

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