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हिंदी दिवस विशेष: इस यूनिवर्सिटी में होती थी 'हिंदी' में इंजीनियरिंग की पढ़ाई, जानिए क्यों हुई बंद

क्या आपको पता है कि मध्यप्रदेश में एक ऐसी यूनिवर्सिटी भी है जहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में कराई जाती थी लेकिन अब इस कोर्स को बंद कर दिया गया है.

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अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय

आज विश्व हिंदी दिवस पर मातृभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार की बातें तो खूब हो रही हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि मध्यप्रदेश में एक ऐसी यूनिवर्सिटी भी है जहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में कराई जाती थी.  वहीं अब इस कोर्स को बंद कर दिया गया है. 

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दरअसल, भोपाल में स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय था जहां साल 2016 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी तरह से हिंदी में शुरू की गई थी. इसका मकसद था आमतौर पर अंग्रेज़ी क्षेत्र से जोड़ कर देखे जाने वाली इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा मिल सके लेकिन इस कोर्स को बंद करना पड़ा.

इस बारे में 'आजतक' से बात करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति खेमसिंह डेहरिया ने बताया कि कुछ तकनीकी खामियां थी जिसके चलते कोर्स बंद करना पड़ा. उन्होंने बताया कि हिंदी में इंजीनियरिंग को ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन की मंजूरी नहीं मिली थी. इसके अलावा छात्रों ने भी रुचि नहीं दिखाई थी.

दर्जनभर छात्रों ने लिया था दाखिला

यही वजह है कि करीब 90 सीटों वाले कोर्स में सिर्फ दर्जनभर छात्रों ने ही दाखिला लिया था और आखिरकार इस कोर्स को बंद कर दिया गया'. इसके अलावा कुलपति खेमसिंह डेहरिया ने बताया कि 'वर्तमान में विश्वविद्यालय के करीब 105 पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 29 फैकल्टी मेंबर हैं और यह सभी संविदा भर्ती पर है. हमारी कोशिश है, जल्द हम विज्ञापन दे रहे हैं ताकि स्थायी फैकल्टी मेंबर की भर्तियां हों और छात्रों को भी पढ़ाने वालों की कमी ना रहे जिससे कोर्स के प्रति उनका रुझान बढ़ेगा'. 

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अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति खेमसिंह डेहरिया ने छात्रों को भरोसा दिलाया है कि वो बिना झिझक के हिंदी में पढ़ाई के लिए हिंदी विश्वविद्यालय के अलग अलग कोर्स में दाखिला लें. हिंदी में उनका भविष्य सुनहरा रहेगा क्योंकि आने वाले समय मे यूनाइटेड नेशंस में भी हिंदी को दर्जा मिलने की पूर्ण संभावना है जिसके बाद दुनिया भर में मातृभाषा हिंदी का महत्व और बढ़ जाएगा.

 

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