कहते है हिंदी दिवस पर ही हमको हिंदी याद आती है, पर कुछ लोग साल भर इसको जिंदा रखते है. उनका प्रयास रहता है कि हिंदी सिर्फ भाषा का रूप न हो , बल्कि जीवन का हिस्सा हो. दिल्ली में सरकारी स्कूल की अध्यापिका अर्चना दुआ ने बाल साहित्य में हिंदी को जीवंत कर दिया है. उनकी लिखी कविताएं और साहित्य आज भी स्कूल के छात्रों में हिंदी की लौ जला रही हैं.
अर्चना दुआ की जिंदगी का मकसद है की वो हिंदी के आलेख को जन जन तक पहुंचाए. वह 25 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं. वह गणित, हिस्ट्री और न जाने कितने सब्जेक्ट्स को हिंदी से जोड़ कर पढ़ा रही हैं. उन्होंने अब तक 3 से जायदा किताबें और हजारों की सख्या में कविताएं हिंदी साहित्य पर लिख दी हैं. वे कहती हैं कि बड़ा मुश्किल होता है जब आप विषय को साहित्य के साथ जोड़ दें. कई बार लगता है मानो ये हमारे लिए चुनौती हैख् पर जब छात्र इस हिंदी साहित्य से जुड़ते है तो आनंद आता है.
वो कहती है मेरी कविताओं में प्राइमरी एजुकेशन पर जायदा जोर है. गणित में त्रिकोण, त्रिभुज, सर्किल आदि सभी विषयों पर कविता के माध्यम से बच्चे सीखते और याद करते हैं. अर्चना मानती हैं की हिंदी के प्रसार के लिए व्याकरण पर जोर देना होना. अगर सही हिंदी बोलना और लिखना है तो व्याकरण को याद करने के इस तरीके को अमल करें, वो भी कविताओं के माध्यम से.
अर्चना कहती हैं कि उनका जीवन में बस एक ही लक्ष्य है की हिंदी भाषा का सही रूप लोग समझें. हिंदी भाषा बोलना और हिंदी दिवस पर याद रखना ही एक मात्र विषय नहीं, रोजाना इसको जीना इसको पढ़ना, हिंदी साहित्य को आने वाली पीढ़ियों को बताना ये ही उनका मकसद है. हिंदी वाली दीदी के नाम से मशहूर अर्चना बीते 25 वर्षों से यह कर रही हैं.