UGC, AICTE और NCTE एजुकेशन बॉडी को खत्म करके सिंगल एजुकेशन रेगुलेटिंग बॉडी का एक मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है. भारत में हायर एजुकेशन के रेगुलेशन के लिए प्रस्तावित हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बिल पर संसदीय समिति ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं. समिति ने आगाह किया है कि यह विधेयक ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित शिक्षण संस्थानों को बंद करने और प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने का कारण बन सकता है.
राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सरकार को सलाह दी है कि एकल नियामक प्रणाली (Unified Regulator) के बजाय सरल और प्रभावी रेगुलेशन स्ट्रक्चर को अपनाया जाए, जिससे राज्य सरकारों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिल सके और केंद्रीकरण न हो.
ग्रामीण संस्थानों के अस्तित्व पर संकट
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित यह नया आयोग (HECI), वर्तमान में मौजूद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) को हटाकर सिंगल नियामक संस्था के रूप में काम करेगा. हालांकि, संसदीय समिति का कहना है कि इससे ग्रामीण इलाकों के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. ये संस्थान पहले से ही अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. अगर नए नियामक मानकों पर खरा न उतरने के कारण इन्हें बंद किया गया, तो इससे ग्रामीण छात्रों की उच्च शिक्षा तक पहुंच बाधित हो सकती है.
निजीकरण को बढ़ावा देने की संभावना
रिपोर्ट के अनुसार, HECI को उच्च शिक्षा संस्थानों को डिग्री प्रदान करने की अनुमति देने या उन्हें बंद करने का अधिकार होगा. इससे राज्य सरकारों का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक संस्थानों की संख्या घट सकती है. इसका सीधा लाभ प्राइवेट विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को मिलेगा, जिससे शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा मिल सकता है.
समिति ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों में 90% से अधिक छात्र पढ़ाई करते हैं और वे पहले ही राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नियामक निकायों के नियमों के बीच उलझे हुए हैं. अगर HECI को मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया, तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है.
राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि HECI के तहत एक संतुलित नियामक ढांचा तैयार किया जाए, जिसमें राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए और अत्यधिक केंद्रीकरण से बचा जाए.
समिति का कहना है कि मौजूदा बहु-स्तरीय नियामक प्रणाली में कई विसंगतियां हैं, जिससे संस्थानों के लिए सुचारू रूप से काम करना मुश्किल हो जाता है. इसमें राज्य सरकारों की भूमिका सीमित कर दी गई है.
मेडिकल और लॉ कॉलेजों पर नहीं होगा लागू
सिंगल हायर एजुकेशन रेगुलेटिंग बॉडी की योजना लंबे समय से विचाराधीन है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक इंटरव्यू में इस पर कहा था कि जल्द ही इसका बिल पार्लियामेंट में पेश किया जाएगा. ये बिल यूजीसी, AICTE और NCTE की जगह लेगा और सिंगल रेगुलेटिंग बोर्ड की तरह काम करेगा. हालांकि मेडिकल और लॉ कॉलेजों पर ये लागू नहीं होगा.
पहले भी उठ चुकी हैं आपत्तियां
गौरतलब है कि HECI का विचार नया नहीं है. 2018 में भी UGC अधिनियम को समाप्त करने और HECI को लागू करने के लिए एक मसौदा विधेयक (Draft Bill) सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था. इसके बाद 2021 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में इस पर नए सिरे से काम शुरू किया गया.
NEP 2020 के अनुसार, उच्च शिक्षा प्रणाली को एक प्रभावी नियामक ढांचे की आवश्यकता है, जो शिक्षा की गुणवत्ता को सुधार सके. हालांकि, संसदीय समिति ने चेतावनी दी है कि अगर HECI विधेयक बिना आवश्यक बदलावों के लागू हुआ, तो इससे शिक्षा क्षेत्र में असमानता और निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा. अब यह देखना होगा कि सरकार संसदीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार करती है या HECI विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही आगे बढ़ाया जाता है.