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NIT के कॉलेजों की लाइब्रेरी में भी आरक्षण...सोशल मीडिया पर क्यों छिड़ी ये बहस?

एक कंपनी की सीईओ अनुराधा तिवारी ने X पर एक लाइब्रेरी ड‍िटेल साझा करते हुए लिखा कि उनका दावा है कि ब्राह्मणों ने सदियों तक ज्ञान अपने पास रखा. तो अब, वे ब्राह्मणों और सामान्य वर्ग को किताबों तक पहुंच से भी वंचित कर देंगे? यह कोई सोशल जस्ट‍िस नहीं है, यह पूरी तरह से बदला है, ब्राह्मण और जनरल कैटेगरी नये 'दलित'हैं.

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Representational Image created by AI
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) कॉलेज की लाइब्रेरी में क्या कोई आरक्षण होता है? सोशल मीडिया पर इसी मुद्दे को लेकर बहस छिड़ी है. एक कंपनी की सीईओ अनुराधा तिवारी ने सोशल मीड‍िया पर दावा किया है कि कॉलेजों की लाइब्रेरी में कैटेगरी के  अनुसार स्टूडेंट्स के साथ भेदभाव होता है. आरक्षण के आधार पर किताबें दी जाती हैं. इसके बाद IITs-NITs के पूर्व छात्र भी इस बहस में शामिल हो गए हैं.

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कंपनी CEO ने शेयर की लाइब्रेरी की स्लिप

अनुराधा तिवारी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पहले ट्विटर) पर NIT के कॉलेज लाइब्रेरी की स्ल‍िप शेयर करते हुए आरक्षण का सवाल उठाया था. इस लाइब्रेरी स्ल‍िप के अनुसार यह दावा किया जा रहा है कि लाइब्रेरी में आरक्षण के आधार पर किताबें दी जाती है. अलग-अलग कैटेगरी को उनके टाइम पर किताबें इश्यू होती हैं, इनमें एससी एसटी कैटेगरी को ये किताबें सबसे पहले इश्यू की जाती हैं. 

ब्राह्मण और जनरल कैटेगरी अब नये 'दलित' हैं...

एक कंपनी की सीईओ अनुराधा तिवारी ने X पर यह लाइब्रेरी ड‍िटेल साझा करते हुए लिखा कि उनका दावा है कि ब्राह्मणों ने सदियों तक ज्ञान अपने पास रखा. तो अब, वे ब्राह्मणों और सामान्य वर्ग को किताबों तक पहुंच से भी वंचित कर देंगे? यह कोई सोशल जस्ट‍िस नहीं है, यह पूरी तरह से बदला है, ब्राह्मण और जनरल कैटेगरी नये 'दलित'हैं.

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लाइब्रेरी की पोस्ट के जवाब में कई यूजर्स ने इस पर कमेंट करके इसकी पुष्ट‍ि की. इन छात्रों ने खुद को एनआईटी या आईआईटी का पूर्व छात्र बताते हुए अपने अनुभव साझा क‍िए. 

एक यूजर ने ल‍िखा कि वो एनआईटी के पूर्व छात्र हैं, यह सच है. जनरल कैटेगरी के छात्र लाइब्रेरी से केवल दो किताबें ले सकते हैं, वहीं रिजर्व कैटेगरी के लिए चार का नियम है. छात्र सागर गौड़ा ल‍िखते हैं कि मेरे कॉलेज में अगर आप जनरल या ओबीसी हैं तो दो लाइब्रेरी कार्ड और एससी एसटी हैं तो चार लाइब्रेरी कार्ड मिल सकते हैं. इन सभी कमेंट्स को भी मुद्दा उठाने वाली अनुराधा तिवारी ने दूसरी पोस्ट पर शेयर किया हे.  

एक यूजर ने लिखा कि हां सभी आईआईटीज में भी यही होता है जहां कौन कितनी क‍िताबें इश्यू करा सकता है, यह जाति पर निर्भर करता है. जनरल कैटगरी छात्र कम और र‍िजर्व वाले ज्यादा करा सकते हैं. एक यूजर ने ल‍िखा कि यह सच्चाई है, एनआईटी श्रीनगर में हमें तीन और र‍िजर्व को आठ किताबें मिल जाती हैं. एक यूजर ने लिखा कि मेरे टाइम (2013-2017) में NITK में भी यही होता था. जनरल छात्रों को ती एससी एसटी को छह क‍िताबें मिलती थीं, यही नहीं उन्हें न पेनल्टी और न ही कोई लेट फीस देनी होती थी.

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सूत्रों के मुताबिक इस मामले में एनआईटी हमीरपुर की सेंट्रल लाइब्रेरी के पूर्व इनचार्ज के साथ टेलिग्राम पर अपना एक बयान जारी किया है, जिसमें कहा है कि बुक बैंक सेक्शन में पुस्तकें राज्य/केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए गए विशेष एससी एसटी अनुदान का उपयोग करके खरीदी गई थीं. इसलिए इन्हें सबसे पहले ये जारी किए जाते हैं. नियमित अनुदान से खरीदी गई पुस्तकों में कोई भेदभाव नहीं है. एनआईटीएच में मेरे कार्यकाल (23-02-2015 से 31-07-24) के दौरान इस खंड में एक भी किताब नहीं खरीदी गई है.

उन्होंने आगे लिखा कि जहां तक ​​मुझे याद है आखिरी खरीदारी 2005 या 2010 के दौरान की गई थी. यह एक नियमित प्रथा है जिसका इस अनुदान को प्राप्त करने के बाद से पालन किया जा रहा है. एससी एसटी छात्रों के लिए इस विशेष अनुदान का विवरण पुस्तकालय में उपलब्ध है. इस संग्रह से एक सेमेस्टर में मुश्किल से 100 पुस्तकें जारी होती हैं क्योंकि अधिकांश पुस्तकें पुरानी हो चुकी हैं. उन्होंने यह भी ल‍िखा है कि ऐसा लगता है कि कुछ लोग संस्थान का सौहार्द बिगाड़ना चाहते हैं. हम सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी अफवाहों या गलत व्याख्या वाली सूचनाओं पर अमल न करें.

फिलहाल एक्स पर यह मुद्दा काफी छाया हुआ है. अनुराधा तिवारी के ट्वीट पर सैकड़ों यूजर्स के कमेंट आए हैं और हजारों ने इसे लाइक और रीट्वीट किया है. लाइब्रेरी में भेदभाव के मुद्दे पर लोग अपनी राय रख रहे हैं, फिलहाल एनआईटी या श‍िक्षा मंत्रालय की ओर से इसको लेकर कोई प्रतिक्र‍िया नहीं आई है. आईआईटी की तैयारी कराने वाले श‍िक्षक शश‍ि प्रकाश सिंह ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि अंबेडकर ने लाइब्रेरी को श‍िक्षा का मंदिर माना है. उन्होंने स्वयं की लाइब्रेरी में कभी आरक्षण जैसी व्यवस्था नहीं की, लाइब्रेरीज में इस तरह के नियम लागू नहीं होने चाहिए, भले ही किताबें किसी भी अनुदान से खरीदी गई हों, लेकिन इन पर हर स्टूडेंट का हक होता है.

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