जिस संयुक्त भारत को आज़ाद कराने की चिंगारी साल 1857 के विद्रोह से शुरू हुई. जिस चिंगारी को हवा देते हुए भारत के शूरवीरों ने खुली आंखों से आज़ाद भारत का सपना देखा. जिस संयुक्त राष्ट्र भारत को अंग्रेजों की ज्यादतियों से मुक्त कराने के लिए लड़ाइयां लड़ी गईं, बलिदान दिए गए, अनगिनत कुर्बानियां दी गईं. उसी संयुक्त भारत के आज़ाद होने का जब समय आया तो मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ऐसी मांग कर डाली जिसने संयुक्त भारत की नींव को हिलाकर रख दिया.
जिन्ना ने संयुक्त भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग कर देश के विभाजन की पहल कर दी थी. एक अलग देश बनाने की मांग करने का साफ मतलब था देश का विभाजन और इसी के साथ एक खूनी संघर्ष को जन्म देना. जिन्ना की इस मांग से पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि भारत को आज़ादी तो मिलेगी लेकिन देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी.
कैसे हुई विभाजन की पहल?
देश के विभाजन का विचार ब्रिटिश सरकार की ही देन थी. साल 1857 के विद्रोह में हिंदू-मुस्लिम एकता ने ब्रिटिश सरकार को ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि अगर संयुक्त भारत के लोग इसी तरह उनके खिलाफ विद्रोह करते रहे तो भारत पर उनकी हुकूमत कमज़ोर पड़ जाएगी. यहीं से शुरू हुई ब्रिटिश सरकार की डिवाइड एंड रूल पॉलिसी. 1857 के विद्रोह के बाद इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) की स्थापना हुई.
आगे चलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) ने मांग रखी कि देश में जो भी पढ़े-लिखे भारतीय हों उन्हें सरकार में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी दी जाए. जल्द ही डफरिन को इस बात का एहसास हुआ कि INC की गतिविधियां ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा हैं. डफरिन ने INC को इस तरह की गतिविधियों के लिए रोका लेकिन जब INC की गतिविधियां नहीं रुकीं तो डफरिन ने उन्हें रोकने के लिए कई हथकंडे अपनाए. जिसका सबसे ज्यादा असर तब हुआ जब डफरिन ने अपने कुछ खास वफादार लोगों की मदद ली. इनमें से एक थे सय्यद अहमद खान, जिन्होंने टू नेशन थ्योरी (Two-Nation Theory) को जन्म दिया.
क्या है Two-Nation Theory?
लोगों को इंडियन नेशनल कांग्रेस के खिलाफ करने के लिए सर सैय्यद अहमद खान ने भाषण देने शुरू किए. अपने भाषणों में खान ने कहा कि अगर ब्रिटिश देश छोड़कर चले गए तो देश के मुस्लिम खतरे में पड़ जाएंगे. हिंदू लोग मुसलमानों पर जुल्म करेंगे. सैय्यद अहमद खान की बातों का असर होने लगा था और साल 1906 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई. ब्रटिश सरकार ने भी इस लीग को समर्थन दिया. इस लीग के तहत मुस्लिमों के हक में बहुत सी मांगे की गईं.
ब्रिटिश सरकार ने लीग द्वारा की गई सभी मांगों का समर्थन किया. इस डिवाइड एंड रूल पॉलिसी को हवा देने के लिए साल 1919 में दि इंडियन काउंसिल एक्ट लाया गया जिसके तहत देश में रहने वाले सिख, यूरोपियन और एंग्लो-इंडियन्स को भी मुस्लिमों जैसे अधिकार दिए गए. इस एक्ट के बाद देश के हिंदुओं को लगने लगा था कि देश का हिंदू खतरे में है. अब देश में हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही डर था कि उनका धर्म खतरे में आ जाएगा. इसका नतीजा ये हुआ कि देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे. जिन हिंदू-मुस्लिम ने देश को आज़ाद कराने के लिए एक साथ लड़ाई लड़ी थी वे अब एक दूसरे के दुश्मन बन चुके थे.
विभाजन में जिन्ना की भूमिका
देश के विभाजन में जिन्ना की अहम भूमिका रही. वो जिन्ना ही थे जिन्होंने संयुक्त भारत के मुस्लिमों के लिए एक अलग देश की मांग की थी. लेकिन जिन्ना शुरू से विभाजन की इस लड़ाई में शामिल नहीं थे. जिन्ना साल 1930 के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से जुड़े और उनका मत भी यही था कि देश की पहचान धर्म से होती है. साल 1933 में मुस्लिम लीग के नेता चौधरी रहमत अली ने एक अलग देश की मांग की जिसका नाम था "पाकिस्तान". 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर सेशन में एक अलग देश बनाने के संकल्प को ब्रिटिश सरकार ने भी मंजूरी दे दी. इस तरह हिंदुस्तान से अलग होकर एक अलग देश पाकिस्तान के बनने की पहल शुरू हुई.
क्या विभाजन को रोकने की कोशिश नहीं की गई?
जब मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने की मांग की तब इंडियन नेशनल कांग्रेस के ख़ान अब्दुल गफ़्फार ख़ान और महात्मा गांधी ही दो ऐसे नेता थे जो इस विभाजन के सख्त खिलाफ थे. जिन्ना किसी भी तरह से मुस्लिमों के लिए अलग देश चाहते थे. विभाजन की इस लड़ाई में बहुत से सांप्रदायिक दंगे हुए. जिन्ना की इस मांग ने बंगाल में ऐसा हिंसा भड़काई कि गांधी जी को खुद अपनी जान की परवाह न करते हुए वहां के हिंदुओं को बचाने के लिए जाना पड़ा. विभाजन की इस आग में न जाने कितने निर्दोषों ने अपनी जान गंवाई थी. धार्मिक आधार पर लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे.
लॉर्ड माउंटबेटन प्लान
3 जून 1947 को दिल्ली स्थित ऑल इंडिया रेडियो में गहमा-गहमी का माहौल था क्योंकि तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड लुइस माउंटबैटन वहां आने वाले थे और उनके साथ ही वहां मौजूद थे पंडित जवाहर लाल नेहरू, सिखों के नेता सरदार बलदेव सिंह और मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना. 3 जून को माउंटबैटन ने ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा करते हुए कहा- 'भारत की एकता को बचाए रखने के लिए किसी भी समझौते तक पहुंचना नामुमकिन हो गया था. इस बात का सवाल ही नहीं उठता है कि एक इलाके की बहुसंख्यक आबादी को ऐसी सरकार के हवाले छोड़ दिया जाए जिसमें उनका दखल न हो.
इस हालात से बचने का एकमात्र रास्ता है....विभाजन'. माउंटबैटन की इस घोषणा को लॉर्ड माउंटबैटन प्लान कहा गया. नेहरू ने भी ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से लोगों को बताया कि कांग्रेस माउंटबैटन के इस फैसले का समर्थन करती है. हालांकि नेहरू इस फैसले से खुश नहीं थे लेकिन समय और परिस्थितियों के चलते नेहरू ने इस फैलसे को स्वीकार किया. इस तरह संयुक्त राज्य भारत हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो राष्ट्रों में बंट गया था.