जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है. NIRF रैंकिंग में जेएनयू लगातार देश के टॉप-2 विश्वविद्यालयों में शामिल रहता है. इस संस्थान ने देश को कई इतिहासकार, शिक्षाविद और अर्थशास्त्री दिए हैं. फिर भी शैक्षणिक गतिविधियों से ज्यादा जेएनयू की चर्चा विवादों में होती है. कभी दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में CRPF जवानों के शहीद होने पर खुशी मनाई गई तो कभी महिषासुर की पूजा की गई. यहीं नहीं, जेएनयू कैंपस में भारत के टुकड़े होंगे के नारे तक लगाए गए हैं. इन्हीं वजहों से जेएनयू को वांमपथी का गढ़ भी माना जाता रहा है, खासकर 2016 में जब कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे स्टार छात्रों द्वारा कैंपस में विरोध प्रदर्शन राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे, तब से विश्वविद्यालय को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाता रहा है. लेकिन आपको जानकार हैरानी हो सकती है कि मोदी सरकार में जेएनयू को आर्थिक स्तर पर ज्यादा फायदा हुआ है.
दरअसल, पुणे के एक कार्यकर्ता को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली ताजा जानकारी से पता चला है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के तहत ही विश्वविद्यालय को सबसे ज्यादा अनुदान (सब्सिडी) मिला है. पुणे के रहने वाले RTI एक्टिविस्ट प्रफुल सारदा ने जानना चाहा था कि मोदी सरकार के सत्ता में रहने के दौरान और उससे पहले के करीब 10 सालों में विश्वविद्यालय को किस तरह की सब्सिडी मिली है.
मोदी सरकार में JNU की सब्सिडी 1.5 गुना बढ़ी
आरटीआई से सारदा को पता चला कि 2004-05 और 2014-15 के बीच JNU को कुल 2055 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिली थी. जो 2015-16 और 2022-23 के बीच बढ़कर 3030 करोड़ रुपये हो गई. इसका मतलब यह हुआ कि मोदी सरकार में जेएनयू को मिलने वाली सब्सिडी पिछले दशक की तुलना में 1.5 गुना अधिक थी.
सरदा ने कहा, 'हमें और अधिक राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि मुंबई और पुणे विश्वविद्यालय को प्राथमिकता के आधार पर यह लाभ मिलना चाहिए क्योंकि हर साल लाखों छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से दाखिला लेते हैं और इससे बड़े पैमाने पर लाभ होगा.'
2016 के बाद जेएनयू के 35 छात्रों के खिलाफ FIR
हालांकि, सारदा की एक आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ है कि 2016 से पहले जेएनयू के छात्रों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी, लेकिन उसके बाद से जेएनयू प्रशासन ने अपने ही छात्रों के खिलाफ 35 एफआईआर दर्ज की हैं. सारदा ने एफआईआर के बारे में डिटेल्ड जानकारी मांगी थी, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं मिली.
उन्होंने कहा, "इन दिनों आरटीआई के जरिए जानकारी हासिल करना बहुत मुश्किल काम है. आपको बहुत धैर्य रखना पड़ता है और लगातार फॉलोअप करना पड़ता है, जबकि आपका आवेदन एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर होता रहता है. और आपको कभी भी पूरी जानकारी नहीं मिलती. मेरे खास सवाल पर केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (CPIO) ने मुझे जेएनयू कैंपस का दौरा करने के लिए कहा, जो संभव नहीं है. मुझे लगता है कि सीपीआईओ को पूरी जानकारी न देने के बेहतर तरीके पता हैं."
सारदा ने कहा, '2016 में जेएनयू के इतिहास में पहली बार जेएनयू प्रशासन द्वारा 35 एफआईआर दर्ज की गई हैं. उन्होंने इसमें शामिल लोगों के नाम और संख्या शेयर नहीं की. और कई डिटेल्स का इंतजार है. बस उम्मीद है कि इस बार बिना किसी देरी के सीपीआईओ समय पर जवाब देंगे.'