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JNU 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग का हिस्सा नहीं, न ही 'एंटी-नेशनल': RSS कनेक्शन पर भी बोलीं वीसी

शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित साल 2022 में जेएनयू की कुलपति बनी थीं, उस वक्त विश्वविद्यालय छात्रों के आंदोलन से जूझ रहा था. साथ ही, 2016 के विवादों का साया भी बना हुआ था, जहां कैंपस में कथित तौर पर राष्ट्र-विरोधी नारे लगाए जाने का आरोप लगा था. उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में इन सभी मुद्दों के साथ-साथ अपने जीवन और विश्वविद्यालय में छात्रों की राजनीति के बारे में खुलकर बात की.

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित (Photo from @JNU_official_50 on X)
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित (Photo from @JNU_official_50 on X)

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है. इसके बावजूद कई बार जेएनयू पर 'देशी विरोधी', 'टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा होना', 'ब्राह्मण विरोधी विचारधारा' जैसे आरोप लगते रहे हैं. इन आरोपों को लेकर जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने खुलकर बात की है. उन्होंने कहा कि जेएनयू कभी भी "राष्ट्र-विरोधी" या "टुकड़े-टुकड़े" गैंग का हिस्सा नहीं था, उन्होंने कहा कि संस्थान हमेशा असहमति, बहस और लोकतंत्र को बढ़ावा देता है.

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जेएनयू का "भगवाकरण नहीं हुआ है": वीसी
दरअसल, गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पहली महिला कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुख्यालय में संपादकों के साथ कई मुद्दों पर बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि जेएनयू का "भगवाकरण नहीं हुआ है" और केंद्र सरकार का कोई दबाव नहीं है. हालांकि,  उन्होंने स्वीकार किया कि जब उन्होंने कार्यभार संभाला तो कैंपस में ध्रुवीकरण हो गया था और उन्होंने इस फेज को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया. उन्होंने दावा किया कि दोनों पक्षों (छात्रों और प्रशासन) से गलतियां हुईं और लीडर्स ने स्थिति को संभालने में गलती भी की है.

आरएसएस से जुड़ाव पर सवाल
जेएनयू की वाइस चांसलर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपने जीवन और विश्वविद्यालय में छात्रों की राजनीति के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने यह स्वीकार किया कि उनका बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ाव रहा है और उनके मूल्यों को काफी हद तक संघ से ही आकार मिला है. जेएनयू कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित बातचीत के दौरान कहा कि न तो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े होने पर कोई अफसोस है और न ही वह इसे छिपाती हैं. 

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पंडित, जिन्होंने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में पैदा होने से लेकर चेन्नई में एक मध्यम वर्गीय दक्षिण भारतीय परिवार में पले-बढ़ने तक के अपने जीवन के बारे में विस्तार से बात की, उन्होंने कहा कि उन्हें "संघी वीसी जिसने जेएनयू को QS rankings में उच्चतम स्तर लाया है" कहलाने पर गर्व महसूस होता है. हालांकि, उनका कहना है कि आरएसएस ने उन्हें कभी नफरत नहीं सिखाई और उनका मानना है कि दक्षिण भारत में आरएसएस उतना राजनीतिक नहीं है जितना उत्तर भारत में. उनका यह भी कहना है कि जेएनयू में भगवाकरण (saffronisation) नहीं हो रहा है.

विवादों से घिरे जेएनयू का नेतृत्व संभालना कितना मुश्किल?
पंडित, साल 2022 में जेएनयू की वाइस चांसलर बनी थीं, उस समय विश्वविद्यालय छात्रों के आंदोलन से जूझ रहा था. साथ ही, 2016 के विवादों का साया भी बना हुआ था, जहां कैंपस में कथित तौर पर राष्ट्र-विरोधी नारे लगाए जाने का आरोप लगा था. छात्रों को "टुकड़े-टुकड़े गैंग" का सदस्य बताया गया था. वीसी का मानना है कि उस समय दोनों तरफ से गलतियां हुई थीं. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्थिति को संभालने में गलती की और चरमपंथी विचारों वाले लोगों से निपटने का सही तरीका नहीं अपनाया. उनका यह भी कहना है कि जेएनयू कभी राष्ट्र-विरोधी नहीं रहा है.

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विश्वविद्यालय में असहमति और बहस का महत्व
वीसी का मनाना है कि विश्वविद्यालय में असहमति और बहस को राष्ट्र-विरोधी नहीं माना जाना चाहिए. उनका कहना है कि तत्कालीन प्रशासन जेएनयू को नहीं समझ सका और यही वह दुर्भाग्यपूर्ण दौर था. उनका यह भी कहना है कि सेना के विभिन्न अकादमियों को दी जाने वाली डिग्रियां भी जेएनयू से ही दी जाती हैं, तो क्या इस तर्क से भारतीय सेना को भी राष्ट्र-विरोधी माना जाएगा?

जेएनयू की पहली महिला कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित के बारे में
शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित का जन्म 1962 में रूस के लेनिनग्राद (वर्तमान सेंट पीटर्सबर्ग) में हुआ था. उनकी मां भाषा विज्ञान की प्रोफेसर थीं, जिनका दुर्भाग्य से बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही देहांत हो गया था. इसके बाद रूसी देखभाल करने वालों ने उन्हें करीब दो साल तक पाला और फिर नवंबर 1963 में उन्हें चेन्नई में उनके पत्रकार पिता के पास लाकर सौंप दिया गया. पंडित स्कूल टॉपर रहीं हैं और उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा करके एम्स, नई दिल्ली से पढ़ाई शुरू की लेकिन तीन महीने बाद ही पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि उन्हें स्त्री रोग (gynaecology) या बाल रोग (paediatrics) ही पढ़ाया जाएगा, न कि न्यूरोलॉजी. इसके बाद उन्होंने इतिहास की पढ़ाई की और एक एकेडमिक में करियर बनाया जो उन्हें पुणे विश्वविद्यालय के डीन के पद तक ले गया.

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