कोरोना से बचाव के लिए आप लाख ऐहतियात बरत रहे हैं लेकिन अगर आप इसे गंभीरता से समझ नहीं रहे तो भी नुकसानदेह हो सकता है. कई लोग सिर्फ तब चौकन्ने होते हैं जब उन्हें सामने वाले में कोई सिंप्टम नजर आता है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 80 प्रतिशत मरीज एसिंप्टोमेटिक हैं, जो अनजाने में ही कोरोना के वाहक बने हैं. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट डॉ केके अग्रवाल ने एसिंप्टोमेटिक मरीजों से जुड़ी कई खास जानकारियां aajtak.in से साझा कीं.
डॉ अग्रवाल कहते हैं कि अगर हमारे घर में कोई मरीज पॉजिटिव है तो घर के बाकी लोगों को मानना चाहिए कि हम भी पॉजिटिव हैं और वैसे ही ऐहतियात बरतना चाहिए. ऐसा नहीं किया तो बीमारी और लोगों में फैलती जाएगी.
वायरस की क्रिया प्रणाली के बारे में वो बताते हैं कि जब वायरस हमारे शरीर में घुसता है तो वो हमारी सेल को ओवरटेक कर लेता है और सेल में अपने प्रोटीन बनाता है. इस तरह वायरस हर सेल में घुसने की कोशिश करता है. वहीं, हमारी बॉडी उस सेल को खत्म करने की कोशिश करती है जिसमें वायरस है. इस तरह बॉडी में अगर डिफेंस मैकेनिज्म अच्छा हो तो वायरस के सिंप्टम उभरकर नहीं आते हैं.
औरतों और बच्चों में अक्सर कोरोना वायरस एसिंप्टोमैटिक ज्यादा होता है. डॉ अग्रवाल इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि बच्चों में थाइमस ग्लैंड अच्छी होती है. वहीं, औरतों में फीमेल हार्मोन होते हैं, इसलिए इन्हें सिंप्टम न के बराबर आते हैं ये लोग जल्दी ठीक हो जाते हैं. ज्यादातर एसिंप्टोमैटिक का मतलब ये है कि आपका इम्यून रेगुलेटेड है और वो वायरस मारने की क्षमता रखता है और उसे रेगुलेट करने की क्षमता रखता है.