इस साल देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है. इसी के अंतर्गत स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से टेलिमानस सेवाओं के जरिये भारत सरकार 'स्वस्थ मन स्वस्थ तन' अभियान के जरिये देशवासियों के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य सुधार पर कार्य कर रही है. मानसिक समस्याओं का समाधान करने के लिए गठित टेलीमानस हेल्पलाइन की ओर से जून का पूरा महीना में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर केंद्रित किया गया.
स्वस्थ तन-स्वस्थ मन अभियान के जरिये माता-पिता तक टेलीमानस तमाम ऐसी जानकारियां पहुंचा रहा है, जिससे न सिर्फ महिलाओं बल्कि बच्चों की मानसिक समस्याओं को भी समझा जा सके. टेलीमानस हेल्पलाइन इहबास अस्पताल दिल्ली की ओर से भारत के कई बड़े शहरों में सेवाएं दे रही है. टेलीमानस से जुड़े इहबास के डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि बीते कुछ महीनों से कोटा में आत्महत्याओं की घटनाएं माता-पिता को भी भीतर तक झकझोर रही हैं. बच्चों को दूसरे शहर में पढ़ने के लिए भेजने वाले माता-पिता कभी सपने में भी नहीं सोचते कि उनके बच्चों के साथ ऐसी कोई दुर्घटना हो सकती है. लेकिन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीर समझ न होने के कारण माता-पिता यह भी नहीं समझ पाते कि उनके बच्चे इस कदर मजबूर हो रहे हैं कि वो अपनी ही जान गंवा रहे हैं.
ऐसे में जरूरी है कि माता-पिता को कुछ ऐसे लक्षणों के बारे में जानकारी हो जो तनाव, डिप्रेशन से जूझ रहे बच्चों में नजर आते हैं. यहां हम विशेषज्ञों की ओर से बताए गए ऐसे ही लक्षणों का जिक्र कर रहे हैं. अगर आपके बच्चे में इन लक्षणों में से पांच या इससे ज्यादा लक्षण हैं तो आप अपने किशोर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजग हो जाएं.
डिप्रेशन से जूझ रहे बच्चों में हो सकते हैं ये लक्षण
बच्चे की नींद या भूख में बदलाव
आत्म-घृणा या आत्म-दोष की अभिव्यक्ति
मौत या आत्महत्या के बारे में बात करना या इंटरनेट पर सर्च करना
उनकी बातचीत, लेखन या सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसी घटनाओं के प्रति अति आकर्षण
आत्महत्या के तरीकों के बारे में अनुसंधान या चर्चा में संलग्न हो सकते हैं
उनके खुद को नुकसान पहुंचाने के संकेतों पर गौर करें, जैसे कि नस काटना, जलन या चोट
शैक्षणिक गिरावट: शैक्षणिक प्रदर्शन में अचानक और महत्वपूर्ण गिरावट हो
पेरेंट्स ऐसे में क्या करें
शांत रहें और सुरक्षा को प्राथमिकता दें: ऐसे में आपका शांत और संयमित रहना महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपका दृष्टिकोण संकटग्रस्त व्यक्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में उनकी सुरक्षा पर ध्यान दें.
सक्रिय रूप से उन्हें सुनने की कोशिश करें: उस व्यक्ति को अपना पूरा अटेंशन दें और बिना किसी आलोचना के सक्रिय रूप से उनके विचारों और भावनाओं को सुनें. उनकी भावनाओं के प्रति सहानुभूति, समझ और मान्यता दिखाएं.
जोखिम का आकलन करें: स्थिति की गंभीरता का आकलन करने के लिए सीधे और खुले प्रश्न पूछें. निर्धारित करें कि क्या उनके पास कोई योजना है, उसे क्रियान्वित करने के साधन हैं, और क्या उन्होंने आत्म-नुकसान की दिशा में कोई कदम उठाया है.
एकदम अकेला न छोड़ें: सुनिश्चित करें कि व्यक्ति को अकेला न छोड़ा जाए, खासकर अगर खुद को नुकसान पहुंचाने का तत्काल खतरा हो. अपनी उपस्थिति और समर्थन प्रदान करें, उन्हें बताएं कि इस कठिन समय में वे अकेले नहीं हैं.
पेशेवर मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें: ऐसे समय में बच्चे को पेशेवर मदद लेने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित करें.
मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता जैसे मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करने में सहायता प्रदान करें.
साधनों तक पहुंच हटाएं: यदि संभव हो, तो किसी भी वस्तु या पदार्थ को हटाने के लिए तत्काल कार्रवाई करें जिसका उपयोग आत्म-नुकसान के लिए किया जा सकता है. इसमें तात्कालिक वातावरण से दवाएं, हथियार या खतरनाक वस्तुएं सुरक्षित करना शामिल हो सकता है.
उनसे जुड़े रहें और सहायता प्रदान करें: तत्काल संकट बीत जाने के बाद भी, व्यक्ति की जांच करना जारी रखें और निरंतर सहायता प्रदान करें. उन्हें पेशेवर उपचार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें, और उनकी ठीक होने की इस यात्रा के दौरान सुनने और भावनात्मक समर्थन प्रदान करने के लिए उपलब्ध रहें.
याद रखें, आत्मघाती आपात स्थिति से निपटना एक गंभीर मामला है, और जब भी संभव हो प्रशिक्षित पेशेवरों को शामिल करना आवश्यक है. यदि आप खुद को ऐसी स्थिति में पाते हैं, तो आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइन या संकट प्रतिक्रिया टीमों तक पहुंचें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्ति को तुरंत आवश्यक सहायता मिले.
कोई सजा नहीं होगी
बता दें कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 अधिनियम की धारा 115(1)11 में कहा गया है कि दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 309 में कुछ भी शामिल होने के बावजूद, आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को, जब तक कि अन्यथा साबित न हो, गंभीर तनाव में माना जाएगा. उक्त संहिता के तहत उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और दंडित भी नहीं किया जाएगा.