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खिलजी ही नहीं, नालंदा यूनिवर्सिटी ने झेले कई बड़े हमले, तीन महीने तक धधकी थी अलाउद्दीन की लगाई आग

नालंदा विश्विविद्यालय के नए कैंपस का उद्घघाटन कर दिया गया है. एक वक्त ऐसा था जब इस यूनिवर्सिटी में 90 लाख किताबें हुआ करती थीं, लेकिन खिलजी ने सभी को जलाकर खाक कर दिया था. हालांकि, नालंदा लाइब्रेरी पर यह पहला हमला नहीं था...

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Nalanda Univesity
Nalanda Univesity

Nalanda Library: नालंदा यूनिवर्सिटी देश की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है. बिहार के पटना से 90 किलोमीटर दूर 1600 साल पुरानी ये इमारत आज भी इतिहास के पन्नों में एक ऐसी धरोहर के रूप में दर्ज है जिसने कई जख्म भी झेले हैं. मोटी मोटी लाइ ईंटों से बनी इस सदियों पुरानी यूनिवर्सिटी में हिंदू और बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी. यहां बड़ी-बड़ी क्लासेस, आवास और एक खास लाइब्रेरी हुआ करती थी. नालंदा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी का नाम धर्मगूंज था, यहां धर्मग्रंथ और ना जाने कितनी आर्युवेदिक किताबें हुआ करती थीं, लेकिन दो सुमादयों की लड़ाई के चलते इस लाइब्रेरी की किताबें खाक में मिल गईं, जिसके पीछे हाथ था मुस्ल‍िम शासक अलाउद्दीन खिलजी का.

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नालंदा लाइब्रेरी में 90 लाख से ज्यादा हस्तलिखित, ताड़-पत्र पांडुलिपियां रखी हुईं थीं. यहां बौद्ध ज्ञान का समृद्ध भंडार था. 23 हेक्टेयर में फैला हुआ हिस्सा जो आज मौजूद है, उसे यूनिवर्सिटी के वास्तविक कैंपस का बस एक छोटा सा हिस्सा माना जाता है. 1190 के दशक की बात हैं, उस दौरान तुर्क-अफ़गान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी हुआ करता था.

खिलजी के सेना ने लाइब्रेरी में लगा दी थी आग

खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की सैन्य टुकड़ी ने विश्वविद्यालय पर हमला कर दिया. उन्होंने पूरे कॉलेज कैंपस में आग लगी दी थी. आग की इन लपटों में 90 लाख किताबों के साथ नालंदा लाइब्रेरी भी जल गई. लाइब्रेरी इतनी बड़ी थी कि तीन महीने तक किताबें धधकती रही थीं. माना जाता है कि नालंदा को इसलिए नष्ट किया गया क्योंकि खिलजी और उसके सैनिकों को लगता था कि इसकी शिक्षाएं इस्लाम से प्रतिस्पर्धा करती हैं.

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इससे पहले भी हो चुके हैं नालंदा यूनिवर्सिटी पर हमले

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 5वीं शताब्दी में मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों द्वारा भी नालंदा यूनिवर्सिटी पर हमला किया जा चुका है. इसके बाद आठवीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा के आक्रमण के दौरान भी काफ़ी नुकसान हुआ था. हूण आक्रमणकारियों ने संपत्ति लूटने के लिए हमला किया था. दोनों बार हमला होने पर इमारत के कुछ हिस्सों का दोबारा निर्माण कराया गया था. इसके बाद अगले छह शताब्दियों तक नालंदा धीरे-धीरे गुमनामी में डूबता गया. 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने इसके बारे में पता लगाया और बाद में 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इन अवशेषों की पहचान प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के रूप में की. 

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