अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा 19 और 20 अप्रैल को आयोजित ह्यूमन एक्सपलोरेन्स रोवर चैलेंज कार्यक्रम के लिए नवगछिया के युवा वैज्ञानिक गोपाल जी की टीम का चयन हुआ है. गोपाल जी की संस्था यंग माइंड एंड रिसर्च डेवलपमेंट की टीम ने चंद्रमा पर उतरने वाला ह्यूमन रोवर तैयार कर लिया है जिसका नासा में प्रजेंटेशन दिया जाएगा. दुनिया में हाई स्कूल के स्तर से 30 ऐसी टीमों का चयन हुआ है.
मिल सकता है नासा के साथ काम करने का मौका
गोपाल जी की टीम में बिहार से तनिष्क उपमन्यु, कारुण्य उपमन्यु, सूर्यनारायण रजक, नई दिल्ली से आसना मिनोचा, कियान कनोडिया ओडिशा से आरुषि पैकरे, हरियाणा के लोकेश, आर्य और अरुण, राजस्थान की ऐश्वर्या महाजन, उत्तरप्रदेश से ओम , पल्लवी, समीर यासीन, उत्कर्ष और रोहित आंध्रप्रदेश से पठान सुलेमान और यूएसए से सुनैना साहू शामिल हैं. ये टीम एम 3 एम फाउंडेशन के सपोर्ट से नासा जाएगी. गोपाल जी ने बताया कि यह एक तरह से साइंस ओलंपिक है. अप्रैल में हमारी टीम एम 3 एम फाउंडेशन के सपोर्ट से नासा जाएगी और वहां रोवर प्रेजेंट करेगी. अगर नासा को यह पसंद आया तो हमें गोल्ड मेडल मिलेगा इसके साथ ही हम नासा के साथ काम करेंगे.
टीम में शामिल ग्रेटर नोएडा के छायसां गांव के 15 साल के उत्कर्ष अभी UP बोर्ड से दसवीं के एग्जाम दे रहे हैं. उत्कर्ष ने जनवरी में एक साइंस कॉम्पिरटीशन में हिस्सा लिया था जिसमें उन्होंने वायरलेस इलेक्ट्रिक वेहिकल चार्जर बनाया था. उत्कर्ष बताते हैं कि वहां सिर्फ मैंने अपना प्रोजेक्ट महज 150 रुपये में तैयार किया था जबकि कॉम्पिषटीशन में हिस्सा लेने वाले दूसरे बच्चों ने अपने प्रॉजेक्ट पर 25 हज़ार से एक लाख रुपया ख़र्च किए थे. उत्कर्ष को कुछ देर के लिए लगा कि वो इन दूसरे बच्चों के सामने कहां ही टिकेगा लेकिन इतनी कम उम्र में उत्कर्ष के आइडिया और इनोवेशन को सुनकर डीएम प्रभावित हो गए. डीएम ने ही उत्कर्ष को रोवर बना रही टीम का हिस्सा बनाया.
‘7 साल का था उत्कर्ष जब पिता को हुआ ब्रेन हैमरेज’
हालांकि उत्कर्ष का जीवन बहुत आसान नहीं है. उत्कर्ष की उम्र अभी महज़ 15 साल है. आठ साल पहले उनके पिता उपेंद्र को ब्रेन हैमरेज हुआ था. घर का ख़र्चा उत्कर्ष के दादा सुरेंद्र सिंह खेती करके निकालते हैं. उत्कर्ष खेती में उनका पूरा हाथ बंटाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्कर्ष शुरु से ही सरकारी स्कूल का स्टूडेंट रहा है. वो अभी भी सरकारी स्कूल में ही पढ़ाई कर रहा है. उत्कर्ष बताता है कि उसे आगे जाकर डिजाइनिंग इंजीनियर बनना है.
‘माता-पिता बोले इतने बड़े सपने नहीं देखे थे, बेटा नाम रौशन करेगा’
उत्कर्ष की मां कहती हैं कि पढ़ाई में तो वह हमेशा से बहुत सीरियस रहा है. स्कूल से आने के बाद तुरंत पढ़ाई करने बैठ जाता है लेकिन हमने कभी यह नहीं सोचा था कि हमारा बेटा नासा तक पहुंचेगा. उत्कर्ष के पिता बताते हैं कि मैंने बहुत बुरा समय भी देखा है, वो आगे बताते हैं कि ब्रेन हैमरेज के बाद जब वह घर वापस आए तब उनसे झूठ बोला गया कि वह सिर्फ़ तीन दिन वेंटिलेटर पर थे लेकिन असल में वे तीन महीने तक वेंटिलेटर पर रहे. आज मेरे लिए बेहद गर्व का दिन है. बेटा पूरे परिवार के सपने पूरे करेगा.