राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने कोई स्पष्टीकरण दिए बिना अचानक ही ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन (GMER) 2023 के तहत जारी गाइडलाइंस वापस ले ली हैं. इन नए दिशानिर्देशों के जारी होने के बाद 25 वर्षों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम का पहला सुधार होना बताया जा रहा था.
इस गाइडलाइंस के अनुसार एमबीबीएस पाठ्यक्रम को अधिक स्टूडेंट और पेशेंट केंद्रित बनाने की कवायद हो रही थी. इसमें मेडिकल शिक्षा को जेंडर सेंसिटिविटी, रिजल्ट ओरिएंटेड और एनवायरमेंट फ्रेंडली बनाने के उद्देश्य से परिवर्तन आगामी शैक्षणिक वर्ष में लागू होने वाले थे. इन दिशानिर्देशों को जल्दबाजी में रद्द करने से 2023 की एमबीबीएस प्रवेश प्रक्रिया पर प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि, अभी तक न तो एनएमसी और न ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस अप्रत्याशित कदम के लिए कोई स्पष्टीकरण दिया है.
दो हफ्ते बाद रद्द किए गए एमबीबीएस के नए दिशानिर्देश
नई गाइडलाइन जारी होने के दो सप्ताह से भी कम समय में एनएमसी ने 23 जून को एक सर्कुलर जारी किया. इसमें योग्यता-आधारित चिकित्सा शिक्षा, एमबीबीएस पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश विंडो और विकलांग छात्रों के लिए प्रवेश मानदंड समेत सभी दिशानिर्देशों को वापस ले लिया गया. अब 1 से 30 अगस्त तक एडमिशन विंडो निर्दिष्ट करने वाले दिशानिर्देशों को वापस लेने से छात्र वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए प्रवेश प्रक्रिया को लेकर असमंजस में हैं.
एमबीबीएस एडमिशन गाइडलाइंस को ऐसे महत्वपूर्ण समय में वापस लिया गया है, जब 700 से अधिक कॉलेजों में 1,07,000 से अधिक स्नातक मेडिकल सीटें अखिल भारतीय NEET परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले उम्मीदवारों द्वारा भरी जानी हैं. अब अधिकारियों की ओर से स्पष्टीकरण की कमी ने अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है.
GMER 2023 में क्या होने थे बदलाव
सप्लीमेंट्री बैच की व्यवस्था खत्म होनी थी:
इन नियमों द्वारा एक महत्वपूर्ण बदलाव ये होना था कि अब उन छात्रों के लिए सप्लीमेंट्री बैचों को खत्म किया जाना था जो अपनी वार्षिक परीक्षा में असफल हो जाते हैं. इसके तहत अभी तक जो छात्र वार्षिक विश्वविद्यालय परीक्षा उत्तीर्ण करने में असफल होते हैं, उनके पास सप्लीमेंट्री बैच में बैठने का विकल्प होता है, और इसका रिजल्ट मेन एग्जाम के रिजल्ट से तीन से छह सप्ताह के भीतर घोषित किए जाने का नियम है.
कॉमन काउंसिलिंग प्रोसेस:
इस बदलाव के जरिये छात्रों के लिए दाखिला प्रक्रिया आसान बनाने के लिए एक कॉमन काउंसिलिंग प्रोसेस को भी जोड़ने की बात कही गई थी. इसमें कंपलीट काउंसिलिंग प्रोसेस को एक ही मंच पर लाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय और स्टेट बातचीत कर रहे हैं. वर्तमान में, केंद्रीय अधिकारी एमबीबीएस की 15% सीटों के लिए काउंसलिंग आयोजित करते हैं, जबकि राज्य प्राधिकरण अपने संबंधित राज्यों में शेष 85% सीटों को संभालते हैं. इसके अतिरिक्त, केंद्रीय अधिकारी 50% पीजी सीटों के लिए काउंसलिंग आयोजित करते हैं.
कॉमन काउंसिलिंग प्रोसेस की शुरूआत से माना जा रहा था कि इससे छात्रों के लिए प्रक्रिया सरल हो जाएगी, क्योंकि अब उन्हें केंद्रीय और राज्य काउंसलिंग के लिए अलग-अलग पंजीकरण नहीं कराना होगा या काउंसलिंग के लिए फिजिकली अलग-अलग राज्यों में उपस्थित नहीं होना होगा.