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कहानी उम्मीद की: कोटा के माहौल में मैं भी मेंटली परेशान हो गया था... फिर हालात से ऐसे उबरा

कोटा में लगातार आ रही छात्रों की आत्महत्या की सूचनाएं नाउम्मीदी की तरफ धकेलती हैं. यहां कोचिंग पढ़ने आने वाले बच्चों के मन में प्रेशर का हर कोई अंदाजा लगा रहा है. यही प्रेशर सैकड़ों बच्चों को प्रेरित भी कर रहा है, तो वहीं तमाम बच्चों को भीतर से तोड़ भी रहा है. आप अगर स्टूडेंट हैं तो ये कहानी पढ़कर सोचिए, कि क्या अंधेरे में रोशनी की कोई किरण तलाशी जा सकती है.

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डॉ अरुण मौर्या केजीएमयू लखनऊ में एमबीबीएस के फाइनल इयर छात्र हैं  (Photo: aajtak.in/Special Permission)
डॉ अरुण मौर्या केजीएमयू लखनऊ में एमबीबीएस के फाइनल इयर छात्र हैं (Photo: aajtak.in/Special Permission)

'कई बार जिन्दगी में हालात सभी के लिए एक जैसे होते हैं, बस उन्हें डील करने का तरीका अलग होता है. मैंने गलत समय पर सही सोचा, शायद इसीलिए आज यहां हूं' कोटा से आ रही तमाम दुखद खबरों पर केजीएमयू के मेड‍िकल छात्र डॉ अरुण मौर्या अपना पुराना समय याद करते हुए यही लाइनें कहते हैं. 

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साल 2019 में कोटा में रहकर तैयारी करने वाले अरुण मौर्या के साथ भी वही हुआ जो कोटा जाने वाले हर छात्र के साथ होता है. माता-पिता से दूर कंपटीशन का माहौल, पढ़ाई और परफॉर्मेंस का प्रेशर लेकिन उन्होंने कुछ अलग सोचा. आइए जानते हैं, डॉ अरुण की कहानी, उन्हीं की जुबानी... 

मैं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में पला. मेरे पिता आर्मी में लोअर कमीशंड अफसर थे. घर में मां के अलावा हम दो भाई. जब तक हम दोनों भाई पढ़कर नौकरियों में जाने लायक हुए, इससे पहले ही पापा रिटायर हो चुके थे. उनके पास एक तय रकम थी, जिसे वो हम दोनों भाईयों पर इनवेस्ट करना चाहते थे. भाई और मैं दोनों ही अपना करियर बनाकर परिवार को गौरवान्व‍ित महसूस कराना चाहते थे. 

मेरे लिए मेरे घरवालों ने डॉक्टर बनने का सपना देखा था. उनका यह सपना बचपन से सुनते-सुनते मेरा भी लक्ष्य बन चुका था. फिर जैसे ही साल 2018 में मैंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की, परिवार ने नीट की तैयारी के लिए बेस्ट जगह यानी कोटा जाने की सलाह दी. मेरे मामा मुझे कोटा लाए और यहां की बेस्ट कोचिंग में दाख‍िला दिलाकर, कमरे वगैरह का इंतजाम करके वापस चले गए. 

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मेरे लिए यह एकदम अलग अनुभव था, शुरू में तो यह रोमांच‍ित करने वाला था. घर से दूर अलग तरह की आजादी जहां पढ़ने, खाने और सोने का टाइमिंग मुझे ही सेट करना था. लेकिन धीरे धीरे जैसे ही मैं कंपटीशन में घुसने लगा, यहां के दूसरे छात्रों का परफॉर्मेंस देखता, मन एक अजीब-सी निराशा में डूबता. मन में अजीब-अजीब ख्याल आने शुरू हो गए थे. ऐसा लगता था कि अगर मैं नहीं कर पाया तो कैसे वापस लौटकर पेरेंट्स को मुंह दिखाऊंगा. मुझे अजीब सा मानसि‍क तनाव घेरने लगा था. 

ऐसा लगता था कि ये अलग ही दुनिया है जहां इतना कंपटीशन है. उसी निराशा के दौर में जब लगा कि मैं बहुत अकेला हूं, मैंने सबसे पहले अच्छे दोस्त बनाए. उन दोस्तों के सामने खुलकर बात करने लगा. जब मुझे लगा कि सिर्फ मैं ही नहीं इस तरह की समस्या से हरेक जूझ रहा है. इसका विकल्प क्या है, क्या खुद को खत्म करना कोई विकल्प है. मेरे माता-पिता के लिए क्या ज्यादा इंपार्टेंट होगा, मेरा सही-सलामत होना या फिर मेरा न होना. 

मैंने अपने टीचर से भी इस बारे में बात की तो उन्होंने भी यही कहा कि सिर्फ नीट ही दुनिया नहीं है. दुनिया में हजारों हजार विकल्प हैं जो कि इससे भी बेहतर हैं. टीचर ने मुझसे कहा कि सबसे पहले तुम अपने विचारों पर कंट्रोल पाओ और ये सोचो कि मेरा काम है अपना बेस्ट देना. अगर तब भी कसर रह जाती है तो फिर बी-प्लान पर काम करना है. एक सपना कभी जीवन का इकलौता लक्ष्य नहीं होता. तब मैंने अपने मन में बी-प्लान बनाना शुरू किया. 

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मैंने तय किया कि अगर मैं अपने 100 पर्सेंट प्रयास के बावजूद नीट में सेलेक्ट नहीं हो पाता तो मैं टीचिंग लाइन में जाऊंगा. मुझे यहां से जो भी ज्ञान मिल रहा है, वो कभी बेकार नहीं जाएगा. ये भी मेरी प्रोफाइल का हिस्सा होगा. मैं यूपीएससी या क‍िसी दूसरे कंपटीशन के लिए भी कोश‍िश करूंगा. ये सारे ख्याल मुझे पाजिट‍िव मोट‍िवेट करने लगे. मैंने आठ महीने की तैयारी के बाद ही नीट के एग्जाम में अच्छा रिजल्ट हासिल क‍िया. 

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आज कोटा की घटनाएं देखकर मेरे मन में यही ख्याल आता है कि काश मेरे इन जून‍ियर साथ‍ियों को भी ये बात समझ आ जाए कि जिंदगी अगर एक प्लान पर न चल पाए तो उसे दूसरे प्लान की तरफ मोड़ दो. लेकिन, जीवन और सफलता का विकल्प मौत को कभी नहीं बनाना चाहिए. मैं यह भी सोचता हूं कि जब मैं तैयारी कर रहा था तब मेरी उम्र इस तरह का फैसला लेने की नहीं थी. आपको भी यही सोचना है कि ये आपकी उम्र नहीं है, कि आप अपने लिए ऐसे फैसले लें. इसे वक्त पर टाल दें. अपने अच्छे दोस्त बनाएं, अपने टीचर्स से बात करें. किसी प्रोफेशनल काउंसलर की सलाह लें. 

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