Medical Education in India: भारत में प्राइवेट कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई काफी मुश्किल है. प्राइवेट कॉलेजों की पूरे कोर्स की फीस 50 लाख से 1.2 करोड़ तक हो सकती है, जिसके चलते छात्र या तो केवल सरकारी कॉलेजों से डिग्री लेना पसंद करते हैं, या फिर विदेश से डिग्री लेकर लौटते हैं. नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने प्राइवेट कॉलेजों को दिशा-निर्देश देने का फैसला किया है, जिसके तहत वे अपनी अधिकतम फीस तय कर सकेंगे. कमीशन ने निर्देश दिया है कि प्राइवेट कॉलेजों में कम से कम 50 फीसदी सीटों के लिए फीस सरकारी कॉलेजों के बराबर होनी चाहिए.
जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटी में 50 प्रतिशत सीटों की फीस उसी राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होनी चाहिए. यह नियम अगले शैक्षणिक सत्र से प्रभावी होगा. दिशा-निर्देशों को प्रत्येक राज्य की फीस निर्धारण समिति द्वारा अपने-अपने मेडिकल कॉलेजों के लिए अनिवार्य रूप से लागू करना होगा.
क्या है NMC का निर्देश?
NMC ने 03 फरवरी को एक ऑफिस नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें कहा गया है प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत सीटों की फीस उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होनी चाहिए. कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, इस शुल्क संरचना का लाभ पहले उन उम्मीदवारों को मिलेगा, जिन्होंने सरकारी कोटे की सीटों का लाभ उठाया है, लेकिन संस्थान की कुल स्वीकृत संख्या के 50 प्रतिशत तक सीमित है. हालांकि, यदि सरकारी कोटे की सीटें कुल स्वीकृत सीटों के 50 प्रतिशत से कम हैं, तो शेष उम्मीदवारों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर शुल्क का भुगतान करने का लाभ मिलेगा. यह लाभ विशुद्ध रूप से योग्यता के आधार पर मिलेगा.
प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटी में फीस और अन्य शुल्क तय करने में जिन नियमों का पालन किया जाएगा, उनके अनुसार किसी भी संस्थान को किसी भी तरीके से कैपिटेशन शुल्क लेने की इजाजत नहीं होगी. यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि शिक्षा के सिद्धांत 'not for profit' का कड़ाई से पालन किया जाए. सभी जरूरी लागत और रखरखाव के लिए अन्य खर्चों को फीस में शामिल किया जाना चाहिए.