
नालंदा यूनिवर्सिटी का 2010 में बड़े जोरशोर के साथ आगाज हुआ था. इसका मकसद यही था कि प्राचीनकाल में यहां इस नाम से जो विश्वविद्यालय मौजूद था, शिक्षा के उसी स्वर्णिम काल को दोबारा लौटाया जा सके. इतिहासकारों के दावे के मुताबिक नालंदा विश्व में शिक्षा के सबसे पुराने केंद्रों में से एक रहा है. 5वीं सदी में यहां स्थापित विश्वविद्यालय 12वीं सदी तक जारी रहा. इसके अवशेष अब भी इसके पुराने सुनहरे दिनों की याद दिलाते हैं.
नालंदा के प्राचीन शिक्षा केंद्र से प्रेरणा लेकर ही आधुनिक नालंदा यूनिवर्सिटी के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया. इसके मुताबिक विश्वविद्यालय को ‘बौद्धिक, दर्शन, इतिहास और अध्यात्म के अध्ययन के लिए उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय संस्थान’ बनाने का सपना देखा गया.
स्थापना के 10 साल बाद इसकी मौजूदा स्थिति जानने के लिए इंडिया टुडे ने विदेश मंत्रालय (MEA) के पास सूचना के अधिकार (RTI) के तहत याचिका दाखिल की. इस विश्वविद्यालय के लिए विदेश मंत्रालय ही नोडल एजेंसी है. RTI में हमने कई सवालों का जवाब जानना चाहा. जैसे कि भारत सरकार ने इस पर कितना पैसा खर्च किया है; दूसरे देशों से कितना पैसा आया है; कितने छात्र यहां पढ़ रहे हैं और कितने यहां से पास आउट हुए हैं; यहां मौजूदा समय में मुख्य कोर्स में कितने रेगुलर छात्र हैं; कितना टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ है? यूनिवर्सिटी के टॉप 10 अधिकारी कौन हैं जो अधिकतम वेतन और भत्ते हासिल कर रहे हैं? यहां वर्तमान में कुल कितने छात्र हैं?
विदेश मंत्रालय से मिले जवाब के मुताबिक नालंदा यूनिवर्सिटी 2010 में अस्तित्व में आई लेकिन शैक्षणिक कोर्स 2014 से शुरू हुए. अभी तक इसे सरकार से 964 करोड़ रुपए का अनुदान मिल चुका है. विदेश से इसे एंडाउमेंट (चंदा) फंड के तौर पर 18 करोड़ रुपए मिले हैं.
2014 से 2020 के बीच यहां 710 रेगुलर स्टूडेंट्स ने दाखिला लिया जिनमें से 97% पास आउट हो चुके हैं. मौजूदा स्थिति में यहां 172 रेगुलर स्टूडेंट्स, 24 टीचिंग स्टाफ, 18 विजिटिंग फैकल्टी/गेस्ट फैकल्टी और 40 नॉन-टीचिंग स्टाफ है.
वाइस चांसलर का वार्षिक वेतन करीब 80,000 अमेरिकी डॉलर है जो 4.83 लाख रुपए प्रति महीना बैठता है.
अनुमोदन के मुताबिक 10 टॉप कर्मचारियों का वेतन
कई देशों, जैसे कि चीन, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने एंडाउमेंट फंड के तौर पर योगदान दिया है. ऐसी कुल रकम करीब 18 करोड़ रुपए है.
अगर सरकार और विदेश से मिले योगदान को मिला दिया जाए तो यूनिवर्सिटी को अब तक 982 करोड़ रुपए मिले हैं. अब तक 710 रेगुलर स्टूडेंट्स नालंदा यूनिवर्सिटी में दाखिला ले चुके हैं. इसका अर्थ ये है कि हर छात्र पर यूनिवर्सिटी का खर्च अब तक 1.38 करोड़ रुपए बैठा है. अगर अन्य कार्यक्रमों में एनरोल होने वाले 992 छात्रों को मिला जाए तो प्रति छात्र के हिसाब से ये खर्च 57 लाख रुपए बैठता है.
हालांकि प्रति छात्र के हिसाब से लागत की गणना से सही तस्वीर नहीं मिलती क्योंकि एक नए संस्थान के लिए अधिकतर लागत का हिस्सा इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में जाता है, लेकिन निश्चित तौर पर चिंता की बात ये है कि इतना मोटा निवेश करने के बाद भी यूनिवर्सिटी अभी तक कोई धमक दिखाने में कामयाब नहीं हो रही है.
नालंदा में प्राचीन विश्वविद्यालय 8 सदी पहले तक मौजूद था. ज्ञान के लाइट हाउस के तौर पर इसकी ख्याति देश-विदेश में दूर दूर तक फैली थी. नालंदा में नई यूनिवर्सिटी को अभी लंबा सफर तय करना है न कि सिर्फ वक्त के लिहाज से बल्कि उन पुराने सुनहरे दिनों के सपने को फिर साकार करने में.